पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३००

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करेलवे ६१४ करवाचौथ कटि कुटि मेखला समरपित क्रिस अग मापित करल । मुहा०—करवट लेना= करवट के नीचे सिर कटाना। 'च०- वेलि०, ६० ६६ । | तिल भर मछली खाइ जो कोटि गऊ दे दान । काशी करवट करलव--- सच्चा पुं० [सं० कलरव] दे० 'कलरव' । उ० - कूझडियाँ ले मरै तौ हू नरक निदान ---(शब्द॰) । | कर लव कियउ, धरि पछिले वणोहि । सूती साजण सभरया, करवट-सज्ञा पु०[देश॰]एक प्रकार का वडा वृक्ष । जसूद 1 नताउनु । द्रह भरिया नयणोहि ठोला०, ६० ५४ । विशेष—इसका गोद जहरीला होता है और जिसमें तीर जहरीले करला-सज्ञा पुं० [हिं० कल्ला] दे० 'कला' । करने के लिये बुझाए जाते हैं। करली - सच्चा स्त्री॰ [स० करील] कल्ला । कोमल पत्ता । कनखा । करवट सच्ची पुं० [सं० करपन्न, प्रा० करवत अथवा हिं० करवट उ०—-वही भौति पलही सुख बारी । उठी कर लि भइ कोप दे० 'करवट"। उ०-गारी मति दीजो मो गरीविनी को जायो। संवारी ।—जायसी (शब्द॰) । | है। काशी करवट्ट लीनो द्रव्य हूँ लुटायो है ।—(शब्द०)। कुरलुरा–संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार की कांटेदार लता जिसमे करबत--सञ्ज्ञा पुं० [सं० करपत्र, प्रा० करवा] एक दाँतेदार प्रौजार सफेद और गुलावी फूल लगते हैं । जिससे लकडी काटी जाती है । अगर । उ०—-दादू सिरि विशेप---यह समस्त भारत में पाई जाती है और फरवरी से करवत वहै, विसरै अतिम राम ।—दादू०, १० ५२ ।। मई तक फूलती तथा अगस्त सितबर में फलती है। इसका फूल सुख लिए भूरे रंग का होता है और उसका अचार पडता करवर -सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] अलप। घात । विपत्ति । शौचट । हैं। हाथी इसकी पत्तियों अौर टहनियाँ बही रुचि से खाते हैं । आफत । सकट । अापत्ति । कठिनाई। मुसीवत । जानजोखिम् । करनँट- संज्ञा स्त्री० ]देश॰] एक प्रकार की लेता जो अवघ, वगाल, उ०—(क) ईश अनेक करवर टारी ।—तुलसी (शब्द॰) । दक्षिण और लका में पाई जाती है । (ख) क्यों मारीच सुबाहु महावल प्रवल ताका मारी। मुनि विशेष- इसमें ४-५ इच लवी पत्तिय लगती हैं और पीले फूल प्रसाद मेरे राम लखन की विधि बढि करवटै टारी ।-तुलसी । होते हैं। इसकी हाल छाजन या दौरियाँ बनाने के काम में (शब्द०)। (ग) कुवरि सों कहति वृपभानु घरनी । वड़ी अाती है। करवर टरी साँप सो ऊबरी, बात के कहत तोहि लगति करनँदा--सज्ञा पुं० [सं० करमर्द ] दे० 'करोदा' । ३०---वैर करदे जरनी ।—सूर (शब्द॰) । (घ) बुझडू जाय तात सों वात् ।। | हॅस सिहोर अनासे ।—प्रेमघन॰, भा॰ १, पृ० ७५ ।। जव ते जनम भयो हरि तेरो कितने करवर टरे कन्हाई। सूर करवट---सज्ञा स्त्री॰ [सं० करवर्त, प्रा० फरवट्ट] हाय के बल लेटने की स्याम कुल देवनि तोको जहाँ तही करि लिए सहाई । मुद्रा। वह स्थिति जो पावं के बल लेटने से हो । उ०—गई —सूर (शब्द॰) । मुरछा रामहि सुमिरि, नुप फिरि करवट लीन्ह । सचिव राम क्रि०प्र०——टलना ।—पना । अागमन कहि विनय समय सम कीन्ह ---तुलसी (शब्द०)। करवरनापु---क्रि० अ० [सं० कलरव, हिं० करवर, फलबलकलरव क्रि० प्र०--फिरना ।—फेरना ।—-बदलना ।—लेना। या शोर करना । चहकार करना । चहकना । ३०-सार। महा-करवट बदलना=(१) दूसरी और घूमकर लेटना । (२) सुअा जो रहचह करही। कुर हि परेवा ) करवरही । पलटा खाना । और का और कर बैठना । (३) एक ओर से जायसी (शब्द॰) । दूसरी ओर जाना । एक पक्ष छोड कर दूसरे पक्ष में हो जाना। करवल-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] जस्ता मिली हुई चाँदी । वह चाँदी करवट लेना = (१)दूसरी ओर फिर कर लेटना । मुह फेरना। जिसमें रुपए में दो अाने भर जस्ता मिला हो । पीठ फेरना । (२) और का अौर हो जाना। पलट जाना । करवा'--सा पुं०स० करक]१ धातु या मिट्टी का टोटीदार लोटा । (३) बेरुख होना । फिर जाना । विमुख होना । करवट खाना बघना । उ०—क हाथ करवा दुसर हाये रसरी त्रिकुटो या होना=(१) उलट जाना। फिर जाना । (२) जहाज का महल को इगरी पकरी ।—कबीर श॰, भा॰ ३, ५० ४० । किनारे लग जाना । (३) जहाज का टेढ़ा होना वा झुक २ जहाज में लगाने की लोहे की कोनिया या घोडियो । जाना ।—(ल०)। करवट न लेना = किसी कर्तव्य का ध्यान --(ल श०) । न रखना। दम न लेना। साँस न लेना। सन्नाटो खीचना । कुवा--सज्ञा पुं० [सं० कर्क = केकड़ा] एक प्रकार की मछली जा जैसे,—इतने दिन रुपएँ लिए हो गए, अबतक करवट न ली। पंजाब, बंगाल तथा दक्खिन की नदियों में पाई जाती है । करवटें बदलना=बार वार पहलू बदलना। विस्तर पर वेचैन करवा सज्ञा पुं० [हिं० कारा+वा (प्रत्य॰)] श्याम गवाना रहेना 1 तड़पना। विफल रहना । करवटो में काटना = सोने । अर्थात् कृष्ण । उ०—भने लगाई प्रीति कीजै कर करवा से का समय व्याकुलता में बिताना । नृज वीथिन दीजै सोहनी ।—पोद्दार अभि० अ ०, १० १६६ । करवट- सच्चा पुं० [सं० करपत्र, प्रा० करवत्त]१ एक दाँतेदार भौजार करवागौर--सज्ञा स्त्री० [हिं० करवा+गौर] ३० 'करवा चौथ' । । जिससे बढई बडी वडी लकडियाँ चीरते हैं 1 करवत । राि । करवाचौथ-सच्चा स्त्री० [सं० करका चतुर्थी कार्तिक कृष्ण चतुर्थी, । २ पहले प्रयाग, काशी आदि स्थानों में मारे बा चक्र रहते विशेष—इस दिन स्त्रियाँ सौभाग्य प्रादि के लिये गौरी का व्रत थे जिनके नीचे लोग फल की अाशा से, प्राण देते थे, ऐसे अरे करती हैं और सायकल मिट्टी के करने से चद्रमा को अध्ये वा चक्र को 'करवट' कहते थे, जैसे, 'काशीकरवट' । देती हैं तथा पकवान के साथ करने का दान करती हैं ।