पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२९९

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कॅरमची ६१३ करमाला सय पु० [देश०] अमलताम । | करर—सच्चा पु० [देश॰] १ एक जहरीला कीड जितके शरीर में करमाली-सज्ञा पु० सि० करमालिन्] सूर्य । उ०-दीनदयाल दया कर बहुत सी गाँठे होती हैं । २ रंग के अनुसार घोड़े का एक देवा कर मुनि मनुज सुरासुर सेवा । हिम तम करिकेहरि भेद । ३ एक प्रकार का जुगली कुसुम वा बरे का पौधा । करमाली । दलन दोष दुख दुरित जाली ।—तुलसी (शब्द॰) । विशेष—यह उत्तरपश्चिम में पजात्र, पेशावर, अादि सूखे स्थानो करमिया–वि० [स० कर्म+हिं० इया (प्रत्य॰)] १ कर्मी । २ में बहुत होता है। जहां यह अधिक होता है वहीं इसके वीज कृर्मण्य । का तेल निकाला जाता है जो पोली का तेल कहलाता है। करमी--वि० [हिं० कमी] १ क में करनेवाला । २ कर्मठ । अफरीदियो का मोमजामा इसी तेल से बनाया जाता है। इसमें कर्मरतु । उ०—-महा कुटिल वड करमो गृहियो, ताते नरक फूल बहुत अधिकता से लगते हैं। इसकी लकडी बहुत अघोर बहपरिया ।—कबीर स०, पृ० ४९९ । मुलायम होती है । इसकी टहनियों और पत्तियाँ चारे के रम् हा —वि० [हिं० काला+मु ह] काले मुहवाला । उ०— काम मे ग्राती हैं । जरी लगूर सु राती उहाँ । निकसि जो भाग गए करमूडा। करना, कर राना---क्रि० अ० [अनु॰] १. चरमराकर टूटना । —जायसी (शब्द०)। २ कल की । मरमराकर टूटना। २ कर्णकट शब्द करना। कर्कश शब्द करमुक्त'- वि० [सं०] फर से विमुक्त। जिसे या जिसपर कर न वोलमा । उ०----मधुर वचन कटु वोलिवो विनु थम भाग - चुकाना पड़ (को॰] । अमान। कुहु कुहू कलकठ रव का का कररत काग -- करमुक्त-स्छा पु० फेंक कर प्रहार के काम आनेवाला हथियार तुलसी (शब्द॰) । ]ि । ' कररा—संज्ञा पुं० [फा० गरी] गिराव ! छ । ३०–छीट छिरकत करमुखा–वि० [हिं० कालो + मुख] [स्त्री० करमु] काले मुहै अग रग के उठत भभूके । मनमथगोलदाज मन सो कर वाला । कलंकी। उ०—(क) सुरुज के दुख जो सृसि होइ । फूके ब्रज० ग्रं॰, पृ० २० । दुखी । सो कित दुख माने करमुबी 1—जायसी (शब्द०) । कररान संज्ञा स्त्री॰ [अनु०] घनुप चलाने का शब्द । धनुप की (ख)कित करमुखे नयन भै हर जीव जेहि वाट । सरवर नीर टंकार । उ०—कररान धनुष सुन्नी । मरमरान वीर दुन्नी । बिछोह ज्यौं, तडक तृडक हिय फाट ।—जायसी (शब्द०)। –सुदन (शब्द०)। करमूल-संज्ञा पुं॰ [स० कर+मूल] कलाई [को॰) । कररी--सज्ञा पुं० [स० कबुर] वनतुलसी । ववरी। ममरी । उ०— करमूली सच्ची पु० [३०] एक पहाड़ी पेड । ऊधो तृनिक सुयश श्रीनन सुन । कंचन काँच, कपूर कररि विशेष—यह गढ़वाल और कुमाऊँ में अधिक होता हैं। इसकी रस, सम दुख सुख, गुन गुन ।—सूर (शब्द॰) । लकडी कड़ी अौर ललाई लिए हुए भूरे रग को तथा वजन में करी- सच्चा स्त्री॰ [सं० कुररी] बटेर की जाति की एक प्रकार की चिडिया । प्रति घन फुट २२ सेर के लगभग होती है। यह इमारतो में। । लगती है और खेती के औजार बनाने के भी काम आती है। विशेप--यह साधारण बटेर से कुछ वडी और बहुत सुंदर होती पहाडी लोग इस लकड़ी के कटोरे भी बनाते हैं। है। यह हिमालय में प्राय इसी जगह पाई जाती है। इसकी केरमेस--सच्चा पु० [देश॰] करगह की एक लकढी । कुलवाँसी । खाल का बहुत बड़ा व्यापार होता है। | कुतर । अभैर। सुत्तर ! कररुह-सज्ञा पु०[स०] नख । नाखुन । विशेष—यह ऊपर की ओर बँधी रहती है। इसी में दो नवनियाँ कररचकरन्स च्चा पुत०] नृत्य म ५१ प्रकार के चालकी या हाथ लटकती हैं जो कंघियो की कॉडी से बँधी रहती है। इन घमाने फिरने की मुद्रा में से एक जो वहुत कठिन समझी जाती है । नचनियो को पैर से दवाकर जुलाहे ताने का सुत ऊपर का । विशेप-इसमें दोनों हाथो को कमर पर रख स्वस्तिक कर माथे नीचे और नीचे का ऊपर किया करते हैं ।। पर ले जाते हैं तथा हाथो को महलाकार करते हुए ऊपर लाते करमंत -वि० [हिं० करम +ऐत (प्रत्य०)] उत्कृष्ट कर्म करने हैं। फिर एक हाथ नित्व पर रखकर दूसरे हाथ को पहिए वाला । उ०—हरनाय जसौ करमेत कुल, वयण लवं वध की तरह घुमाते हुए दोनों हाथों को झुनते हैं और सिरे व विकयौ ---रा० ६०, पृ० १५७ । सरल उतारी करके सीधा फैलाते हैं । फिर उद्वेष्ठित, प्रसारित करमंती -सच्चा भी० [हिं० करम + ऐत (प्रत्य॰)] कृष्ण की एक अादि कई प्रकार के कंधो के पास दोनो हाथ घुमाते हैं। इसी | उपासिका भक्तिन जो शेपावती नगरी के राजा के पुरोहित प्रकार की और बहुत सी क्रियाएँ करते हैं। परशुराम की कन्या थी । कर'-सज्ञा पुं० [सं० कटाह] कडाह । कडाही । उ०—ओरल चढ़ करमल सञ्चा पुं० [३०] एक प्रकार का तोता ।। तेहि पाहि पूरी। मूठी माँझ र सौ जूरी —जायसी विशेष—यह साधारण तोते से कुछ वडी होता है । इसके परों (शब्द॰) । पर लाल दाग होते हैं। करल -संज्ञा स्त्री० [स० करय मुष्टि। उ०—(क) तीखा करमोद-सज्ञा पुं० [सं० मोद+कर ?]एक प्रकार का धान जो अगहने लोयण, कटि करल, उर रसड़ा विवीह | ढोला यकी मारुइ | के महीने में तैयार होता है। जणि विलुछ सीह 1-बोल०, ६० ४५६ । (ख) स्यामा