पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२९७

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करभरु ६११ फरपा करपुट मिलकर किसी वस्तु कपूर'। करवरना --क्रि० अ० [म० फलरव पक्षियों आदि का कलरव करपा सज्ञा पुं॰ [देश॰] अनाज के तैयार पौधे जिनमें वाल लगी करना । उ०—सारों सुअा जो रहचहू करहीं। कुहि परेवा औ हो । लेना । डाँठ। कवरही ।—जायसी (शब्द )। करपात्र--संवा पुं० [सं०] वस्तुग्रहण के लिये गहरी की हुई दोनो हाथो की संयुक्त हथेली [को०] । | करवाना--क्रि० अ० [हिं० कलवल से नाम०] हलचल करना । बडबडाना । चंचल हो उठना । करपात्री–वि० [सं० करपात्रन] अन्न जल आदि के ग्रहण के लिये अजुलि ही जिसका वर्तन हो । विरक्त साधु [को०)। | करवली--संज्ञा स्त्री० [अ०] १ अरव का वह उजाड मैदान जहाँ क़रपान-सुवा पुं० [देश॰] एक चर्म रोग जिसमें बच्चो के शरीर पर । | हुसैन मारे गए थे। वह स्थान जहां ताजिए दफन किए | लाल लाल दाने निकल आते हैं। जाये । ३. वह स्थान जहाँ पानी न मिले । करपाल–संम्रा पुं० [सं०] १ खग । २ तलवार । ३. लाठी । ४ । करवस -सज्ञा पुं॰ [देश०] दरियाई घोड़े के चमड़े का बना हुआ एक प्रकार का चावुक । गदा (झो। करपालिका- अशा खी० [सं०] १ लाठी । सोटा । २ तलवार [को०] । विशेप-यह अफ्रिका के सिनार नगर में बनता है और भिन्न में करपिचकी--संज्ञा स्त्री०स०कर-हाय+हिं० पिचकी(पिचकारी)] । वहुत काम में लाया जाता है। दोनो हाथो के योग से बनाई हुई पिचकारी । उ०—–छिडके करवाल- संज्ञा पुं० [सं०] दे॰ १ 'करवाल' । ३ हाय की नाह नवोढ दृग, करपिचको जल जोर। रोचक रंग तानी उगलियों का नव [को॰] । भई विर्य तिय लोचन कोरी--विहारी (शब्द॰) । करवी-संज्ञा स्त्री० [न० खर्ब] ज्वार के पेड़ जो काटकर चौपायो को विशेप-प्राय लोग दोनों हाथों के बीच में, कई प्रकार से जल बिलाए जाते हैं । कांटा। उ०—वह कढी मगरवी अरिगन भरकर इस प्रकार और ऐसे दवाते हैं कि उसमें से पिचकारी चरवी चापट करती सी काटे ।- पद्माकर ग्र०, पृ० १६२ । सी छूटती है इसी को क रविचकी कहते हैं। | करवी -संज्ञा स्त्री० [हिं० फरवी] दे० 'मरवी' । ३०-क सैन करपीइन--सज्ञा पुं० [स० करपीडन] पाणिग्रहण । विवाह । उ०—कर-पीड़न-प्रेम याम था। कह, स्वं कार कहू कि त्याग था ? चहृवान मानहु करवी -प० रासो, पृ० ८४ ।। —साकेत, पृ० ३५८ । करवुर--सज्ञा पु० [सं० कर्दुर या कवुर] दे॰ 'कवुर' । करपुट–सज्ञा पु[स०]१ समानार्थ हाथ जोड़ना। २ अजलि । दोनो । करवूम--सज्ञा पुं॰ [देश॰] घोड़े की जीन या चारजामे में टेकी हुई हथेली मिलकर किसी वस्तु के ग्रहणार्थ बनाया गड्ढा(को॰) । रस्सी या तस मा जिनमें हथियार या और कोई चीज लटकाते हैं। करपूर संज्ञा पुं० [स० पूर] दे॰ 'कपूर' । उ०-उसिर, गुनाद । फरम- संज्ञा पु० [सं०] [स्त्री- फरभी] १ हथेली के पीछे का नीर, करपुर परसत, विरई-अनल-ज्वाल-जालने जगतु है ।-- भाग । करपृष्ठ । २ ऊँट का वच्चा । ३ हाथी का बच्चा । नद० ग्र०, पृ० २६५ । ४ ऊँट । उ०—पच सहस सादी परे, करम कट्ठि मृत पेत् । करपृष्ठ-सज्ञा पुं० [अ०] हथेली के पीछे का भाग । देठ अहुन रण भुम मह, वही श्रोण मिलि रेत ।—प० रोसो, करफ्ल—संज्ञा पुं० [हिं० कर+फूल] दे॰ 'दौना'। पृ० १५४।५ नख नाम की सुगंधित वस्तु । ६. कटि । कमर । करफ्यू-संज्ञा पु०[अं॰ कपर्यं] १ घटा बजना जो निश्चित समय पर ७. दोहे के सातवें भेद का नाम जिसमें १६ गुरु अौर १ • लघु सायकाल सकैत के लिये वजता था, जिसके कारण रौशनी बुझा होते हैं। जैसे,—भए पशू तारे पगू सुनी पशुन की वात । दी जाती थी और आग को ढक दिया जाता था । रोशनी मेरी पशुमति देखि के काहे मोहि विनात् । ३ कनिष्ठा बुझा देना। रोशनी की ऐसी व्यवस्था जिससे वाचूर पा ऊपर से (छिगुनी) अँगुली नै लगाकर उसके नीचे तक हथेली का प्रकाश का पता न चले। उभरा भाग (को०)। विशेप- द्वितीय विश्वयुद्ध के समय हवाई हमले की अाशका के करभा'-सज्ञा पुं॰ [देश०] एक प्रकार का जगली गाना जो प्राय कारण इस प्रकार की व्यवस्था की गई थी अोर साइरन कोल, भील आदि गाते हैं। बजाकर इसकी सूचना दी जाती थी। करभा-सा पु० [न० कारभा] दे॰ 'करम' । उ०—जानु जंघ, २ विशेष प्रकार की राजकीय निर्पधाज्ञा जिसके द्वारा घर से सुघटन करमा, नही रमा तुल । पीत पट काछनी मानहु जलज बाहर निकलना या किसी विशेप मागं या स्थान पर जाना आदि निषिद्ध होता है । करफ्यू आउर। केसर झूल ।सुर०, १०1१७५५ । यौ०--करफ्यू प्रार्डर= प्रकाश हीनता का प्रदेश या करफ्यू की करभार--संज्ञा पुं० [त० कर+भार] कर का बोझ । भारी कर । व्यवस्था । करभीर-सज्ञा पुं॰ [सं०] सिंह। करकच----सबा पु० [देश॰] वैलो पर लादने का दोहरा ! यैला ।। करभूपण-सज्ञा पुं० [सं०] हाथ में पहनने का अभूपण । कडा या तुरजी। गौन । ककण जैसा नहना [वै] । कैरर्वर –सजा पु० सि० कर्वर] चीता । उ० --डारी सारी नौल करभोर'—सद्मा पु०म०] हाथी की मूड जैसा सुडौल जघा । उ०—पर्व की ओट अचक, चकै न । म मन मन कवर गहू अह अहेरी नितब कर भोरु कमल पद नख मणि चद्र अनूप । मान लब्ध | नैन ।-विहारी र०, दो० ५० । भयौ वारिज दल इदु किए दश रूप —सूर (शब्द॰) । २-३६ अगतु है।-- करफ्यू- ताकत के लिये बनता जाता था । ।