पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२९६

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करनाई करपल्ली विशेप-सच्ची शब्दों के साथ करना' लगाने से बहुत सी क्रियाएं करनी--सा स्व० [हिं० फरना से मुं०] १ कार्य । फर्म । कलुव । | बनती हैं। जैसे,—प्रशसा करना, सुस्ती करना, अच्छा करना, करतव । उ०---(क) करनी वयारी योय कर, रहनी कर रवबुरा करना, ढीला करना। सब भाववाचक और गुणवाचक वार–फर ०,१० २१ ।(7)दयो । 'रनी कमल की, कोनों सज्ञाम्रो में इसका प्रयोग हो सकता हैं । पर वस्तु या व्यक्ति जल सा हेत । प्राण तज्यो प्रेम न तुज्यो, मुख्य सहि समेत - वाचक साम्रों के साथ यह केवल कही कहीं लगता है और सूर(शब्द०) । (ग) अपने मुख तुम अपनि करनी । वार अनेक भिन्न भिन्न अर्थों में 1 जैसे,—गड्ढ़ा करना, छेद करना, घास ‘मति च वर नी ।---तुलसी (शब्द०)। २ मृत श्या । करना, दाना पानी करना, लकीर करना । अत्येष्टि कर्म । मृतक सुम्कार। उ०—पितु हित भरत कीन्ह करनाईसच्चा स्त्री० [अ० फरनाय] तुरही। जस करनी । सो मुप लाख जाइ नहि बरनी !---नुतनी करनाट–सुज्ञा पुं० [सं० फण:) ३• ‘कर्णाट' । उ०—करनाट हवस (शब्द०)। ३ पेवराज या कारीगरों का लोहे का एक प्रौजार फिरगहू विलायती वलख रूम अरि तिय छतियाँ दलति हैं : जिससे वे दीवार पर पन्ना या गारा लगाते हैं । झन्नी ।। भूपण ग्र०, पृ० ८६ ।। विवाह में कन्या के निमित्त दी हुई अपत्ति । करनाटक---सज्ञा पुं० [सं० कटक कणटिफ नामक देश का करनैल-सज्ञा पुं० [अ० फनेल) सेना का एक उच्च कर्मचारी । फौज एक भाग ।। | का एक बड़ा अफसर । विशेष—यह पूर्वी और पश्चिमी घाटो के बीच, दक्षिण में पलि• | करन कः -सा पुं० [सं० कणं, प्रा० फशरा, करन] दे॰ 'कर्ण । घाट से लगाकर उत्तर में वोदर तक फैला हुमा है। यह प्राय उ०--दोन सो भाऊ, करन्न करन्न स्रो, और नवे दस सो दल कन्नड भाषा बोली जाती है। अाजकल इस प्रदेश का नाम मार्यो ।--सूपण ग्रं १, पृ॰ ६ । । मैसूर राज्य है । करनफूल -सग पै० [हिं० करनफूल] २० ‘करनफून' । करनाटकी--सच्चा पु० [सं० कदकी] १ करनाटक प्रदेश का उ०५-रत्नफले राजय, उभे कि भन सा जय }--हुम्भीर निवासी । २ कलाबाज । कसरत दिवानेवाला मनुष्य । ३ रा०, ८० २४ ।। जादुगर । इदजाती। उ०—करनाटको हाटको सुदर सभा करनी--सा श्री० [हिं० फेरनी] ३० 'करनी' । उ०---हैं। सकर तुरत बनाई 1 दो न बजाय वखानि भूप कँह दिय अवर्त लगाई। भैरव की करनी -हम्मीर रा० पृ० ८५ ।। --(शब्द०) । करन्यास-मज्ञा पुं० [सं०] मत्रों को पढते हुए दोनों हाथों द्वारा करनाटकी-संज्ञा स्त्री॰ [सं० कर्णाटकी] कर्नाटक प्रदेश की मापा । विशेप प्रकार की मुद्रा रचना । ३०--नहि सध्या सूत्र ने कन्नड भाषा । करन्यसि । नहि होम ने यज्ञ न व्रत उपासे -सुदर ग्र, करनाटी -सज्ञा पुं० [सं० कटी दे० 'कर्णाटी' । उ०— मा० १, पृ० ७८ । करनाटी, हसावती, पदमावतो, ससिवृता, इच्छिन पवाँरी, करपकज, करपद्म--सज्ञा पुं० [सं० करज, फरपद्म ३५ कर ये पच पटरानी बुलवाय हजूर लई |–प० रासो १० ५५ । कमल’ (को० ।। करनाल--सझा पुं० [अ० करनाय] १. सिघ । नरसिंहा। मॉप । करपत्र, करपत्रक—सा पुं० [सं०] रा [को॰] । धुतू । उ०—कहू भरे करनाल बीना मुरारी ---१० असो, करपना-कि० अ० [देश॰] पल्लवित होना । वढ़ाना 1 डहइहाना । पृ० १७६ । २ एक वडा ढोल जो गाडी पर लदकर चलता। करपर'--सरा स्त्री॰ [सं० फर] पोपडी । है। ३ एक प्रकार की तोप । उ०—(क) भेजना हैं भेजो। करपरी --वि० [सं० कृपण] कजूस । सो रिसाले सिवराज जू को बाजी करनाले परनाले पर माय- करपरी -सरा स्त्री॰ [देश॰] पीठी की पकौड़ी। वरी। उ०—-भई के ।---'मूपण (शब्द॰) । (ख) तिमि घरनाल और करनाले भुगोछे मिरचहि परी। कीन्ह मु गौरा म फरपरी । सुतरनाल जजालै । गुरगुराव रहँकले तहुँ लाये विपुल जायसी (शब्द॰) । कृरपलई -सज्ञा स्त्री० [हिं० करपल्लवी दे० 'करपल्लवी' । वैयाले' (--रघुराज (शब्द॰) । ४ पजाव का एक नगर । करनास-सुज्ञा पुं॰ [देश॰] दे० 'कटनास' । नीलकंठ पक्षी । उ०--- करपल्लव- सज्ञा पुं० [सं०] उँगली। बहू करनास रहि तेहि पासा । देखि सो सग भाग जेहि करपल्लवो-सज्ञा स्त्री० [सं०] उगलियो के सकेत से शब्दों को प्रकट करने की विद्या ।। वासी ।—चित्रा०, पृ० ६२ । । विशेप-इस विद्या का सूत्र यह है-अहिफन, कमल, चक, टकार करनि--संज्ञा स्त्री० [सं० फरिणी] दे० 'करिन उ०—ारुनी तुरु, पर्वत, यौवन, शृ गार । अँगुरिन अच्छर, चुटकिन, मत्र। बस पूनं लोचन विहरत वन सचुपाए । मनहूँ महा गजराज कहें राम बुझे हनुमत । जैसे,--कमल का किार दिखाने से ‘विराजत, करनि जूथ सँग लाए ।---पौद्दार अभि० अ ०, कवर्ग का ग्रहण होता है। उसके बाद एक उगली दिखाने से'क', पु० २५७'। दो से ख, इसी प्रकार और अक्षर समझ लिए जाते हैं । करनिका —सच्चा स्रो० [सं० कणिका] दे॰ 'कणिका' । उ०—-सोहत करपल्लौG-संज्ञा पुं० [स० करपल्लव] दे॰ 'करपल्लव' । उ० सव नै सन्मुम्वे ऐसे । कमले के बीच करनिका जैसे,—नद० दीन्हेसि कठ बोल जेहि माहां। दीन्हेसि करपल्लो,बर वाहाँ । ५ ०.१० २६४ । जायसी ग्र०, पृ० ५।