पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२९४

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कैरता कैरर्धन करतारी- सज्ञा स्त्री० [हिं० करतारी दे० 'करवाली' ।। करतील-सच्चा पुं० [सं०] १ दोनो हथेनियो के परस्पर माघात का शव्द । २ लकडी, कोसे अादि का एक बाजा जिसका एक एक जोडा हाथ में लेकर जाते हैं। लकडी के करताल मे झाँझ यह घधरू बंधे रहते हैं। उ०—मनेहद बाजे बजे मधुर धुन विन करतील लॅबूरा 1-कबीर श०, पृ० ८५ । ३. झाँझ । मंजोरा ।। करतालिका- चा ओ० [सं०] थोडी । थप ताली [को०]।। करताली -- सच्चा स्त्री० [सं०] १ दोनो हथेलियों के परस्पर आघात का शब्द । ताली । हयोडी २ करताले नाम की बाजा ।। करती–सच्चा स्त्री० [सं० फुति] गाय के मरे बछडे का, भूमी भर हुमा चमड़ा जो विनकुल बछड़े के आकार का होता है । इसे गाय के पास ले जाकर अहीर दुध दुहते हैं ! करतू–सञ्चा जी० दिश०] स्खेत सीचने की दौरी की रस्सियो के सिर पर लगी हुई लकड़ी जो हाथ में रहती है। करतूत- संज्ञा स्त्री॰ [हिं० करना +ऊत (प्रत्य॰)] [स० कर्तृत्व १. कर्म । करनी । काम । जैसे,—यह सब तुम्हारी ही करतूत है। २ कला । गुण । हुनर । उ०—हमारी करतूत तो कुछ भी नहीं, पर तुम्हारी तो बहुत कुछ है ।—भारतेंदु अ ०, भा० १, पृ० ३५८ ।। करतूति --सच्चा स्त्री० [हिं० करना ऊत, आवत (प्रत्य॰)] १ कर्म । करनी । काम। करतव । उ०सोइ करतूति विभीषन केरी 1 सपनेहु सो न राम हिय हेरी ।-मानसे, १ । २६ । क्रि० प्र०—करना । २. कला । हुनरे । गुण । उ० कहि न जाई कछु नगर विभूती। जनु इतनिय विरचि करतूती ।—तुलसी (शब्द०) । क्रि० प्र०---विखानी । करतोयी-सच्चा स्त्री० [सं०] एक नदी । विशेष--यह जलपाईगोडी के जगलों से निकलकर रगपुर होती। हुई, चोगड़ा जिले के दक्षिण कुलहलिया नदी में मिलती है । यहाँ से इसकी कई शाखाएँ हो जाती हैं। फूलझर नाम से एक पाखा अत्राई नदी में मिलती हैं। कोई इसी फूलझर को करतोया की धारा मानते हैं। यह नदी वहुत पवित्र मानी गई है। वर्षा में सब नदियो की अशुचि होना कहा गया है। पर यह वप काल में भी पवित्र मानी गई है। इसी से इसका नमि सदानीरा' या 'सदानीरवहा' भी है । इसके विषय में यह कया है कि पार्वती के पाणिग्रहण के समय शिवजी के हाथ से गिरे हुए जल से इसकी उत्पत्ति हुई, इसी से इसका नाम । ‘करतोया' पहा । करेथरा-सी पुं० [देश॰] हाल पहाड का सिलसिला जो सिंधु नदी के पार सिंघ और बलूचिस्तान के बीच में है। करद–वि० [सं०] १. करदेनेवाला । मालगुजार । अधीन। जैसे,-- करद राज्य । २ सहारा देनेवाला । ३०--रक सिरोमनि काकिनी भाव विलोकत, लोकप को करदा है --तुलसीं । (शब्द०) । करद--संज्ञा सी० [फा० कारद] छु । चाकू । बेड़ा छु । उ०-- (क) करद मरद को चाहिए जैसी तैसी होय ।-(शब्द॰) । (ख) गरद 'मई हैं वह, दरद वतावै कौन, सरद मयक मारी करदे करेजे थे।--बेनी प्रवीन (शब्द॰) । करद. -संज्ञा पुं० [सं०] १ मालगुजारी देनेवाला किसान ।। विशेष-चाणक्य ने लिखा है कि जो किसान मारगुजारी देते। हो, उनको हलके सुधरे हुए खेत खेती करने के लिये दिए। जायँ बिना सुघरे खेत उनको न दिए जाये । जो खेती न करें, उनके खेत छीन लिए जाये । गाँव के नौकर या वनिए उसपर खेती करे । खेती न करनेवाला सरकारी नुकसान दें । जो लोग सुगमता से कर दे दें, राजा उनको धान्य, पशु, हुल अदि की सहायता दे । २. कर देनेवाला राजा या राज्य । ३ वई घर जिसका राज्य को कर मिले ।-(को०)। करदम -सच्चा पुं० [सं० कर्दम] दे॰ 'कर्दम ।। केरल, करदला--संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का छोटा वृक्ष । विशेष—इसकी छाल चिकनी और कुछ पीलापन लिए हुए होती है। इसकी टहनियों के सिरे पर छोटी छोटी पत्तियों । के गुच्छे होते हैं 1 पतझड़ के बाद नई पत्तियाँ निकलने से पहले इसमे पीले रग के फूल लगते हैं जिनके बीच में दो दो। बीज होते हैं। हिमालय में यह वृक्ष पांच हजार फुट की ऊँचाई तक पाया जाता है। यह मार्च अप्रैल मे फूलता है। और इसके वीज खाए जाते हैं। करदासज्ञा पुं० [हिं० गर्द] १ विक्री की वस्तु में मिला हुआ कहा करकट या खुदखेद । जैसे, अनाज में घुले, बरतन में लगी हुई लाख । जैसे,—अनाज में से इतना तो करदा गया । क्रि० प्र०——ाना -निकलना । २ किसी वस्तु के विकने के समय उसमे मिले हुए कूड़े करकट का कुछ दाम कम करके या माल अधिक देकर पूरी करना। क्रि० प्र०काटना !-—देना ।। ३ दाम में वह कमी जो किसी वस्तु बिकने के समय उसमे मिले कूड़े करकट आदि की वजन निकाल देने के कारण को जा। } धडा । कटौती ।। क्रि० प्र०-कटनी !-काटना ।—देना । ४ पुरानी वस्तु को नई वस्तु से बदलने में जो भौर धन ऊपर से दिया जाय । बदलाई। चट्टा । फेरवट । वधि । विशेप--इस शब्द का प्रयोग प्राय बर वनों को बदलने में | होता है । करदात-सच्चा यु० [सं० करदातृ] कर देनेवाला (को०) । करदौना--सच्चा पुं० [सं० फर + हि० वौना] दौना नामक पौधा जिसकी | पत्तियां तक सुगधित होती हैं। करधई----संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] झाडीदार वृक्ष विशेष । उ०—-पहाडी के ऊपर करेघई की घनी हलकी कत्थई रग की झारी थी । मृग०, पृ० ५० ।। करधन-सबा जी० [हिं० करधनी] दे॰ 'झरधनी' ।