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कॅरण

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करतारी विशेप--इसके चार भेद हैं--प्रवेष्ठित, उद्वेष्ठित, व्यावतत करणीय--वि० [सं०] करने योग्य । करने के लायक । कर्तव्य है। और परिवर्तित । जिसमें तिरछे फैले हुए हाय की उगलियां करतव-संज्ञा पुं॰ [सु० कर्तव्य] [वि० करतदी] १. कार्य । काम । तर्जनी से आरभ कर एक एक करके हथेली में लगाते हुए हाय करनी 1 करतूत । कर्म । उ०—(क) वचन विकार करतेबऊ को छाती की और लाएँ, उसे अवेष्ठित कहते हैं। जिसमे दुअरि मन विगत विचार कलिमल को निधान है ।---तुलसी इसी प्रकार एक एक उगली उठाते हुए हाय को लाएँ उसे (शब्द०) । (ख) जै जनमे कलिकाल कराला। करतव बायस, उद्वेष्टित कहते हैं। जिसमें तिरछे फैले हाव की उगलियाँ | वैप मराला —तुलसी (शब्द॰) । कनिष्ठिका से प्रारंभ कर एक एक करके हथेली में मिलाते। क्रि० प्र०—करना ।। हुए छाती की ओर लाएँ, उसे व्यावर्तित कहते हैं और जिसमें २. कला । हुनर 1 गुण । इसी प्रकार उगलियां उठाते हुए हाथ को लाएँ उसे परिर्वातत क्रि० प्र०—दिखाना । उ०—देखिए, अब क्या तमाशा होंगा, कौन कहते हैं। सा करतब दिखाया जाएगा ।—फिसाना०, भी० ३, पृ० ६॥ ११. गणित (ज्योतिष) को एक क्रिया । १२. एक जाति ।। ३. कामात । जादू । विशेप-ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार करणे वैश्य और शूदा से करतविया--वि० [हिं० करतब+इया (प्रत्य॰)] दे० 'करती । उत्पन्न हैं और लिखने का काम करते थे। तिरहुत में अब करतवी--वि० [हिं० करतब +ई (प्रत्य॰)] १. काम करने वाला । भी करण पाए जाते हैं। पुरुषाय । २. निपुण । गुणी । ३. करामात दिखानेवाला । १३. कायस्यों का एक अवातर भेद । १४. प्रासाम, वरमा और बाजीगर । स्याम की एक जगली जाति । १५ वह सख्या जिसका पूरा करतरी - सज्ञा स्त्री० [स० कर्तरी] दे० 'कर्तरी । । पूरा वर्गमूल निकल सके। करणीगत सुन्या । १६• देह (को०)। का करतल-सज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० करतली] १. हाय की गदोरी । १७. क्षेत्र (को०)। १६, लिखित या लेख प्रमाण (को०)। १६. हथेली। उ०—-धरवहन से स्कध नत थे और करतल लाल । परमात्मा (को०) । २०, एक रतिवध (को०)। २१. धामक उठ रहा था श्वासगति से वक्षदेश विशाल ।--शकू०, कृत्य (को०)। २२ कारण ! उद्देश्य (को०)। १३, उच्चारण पृ० ७।। (को०) । २४. करण का कार्य या प्रयोग (को०)। २५. यौ॰—करतलगत । वराह मिहिर की एक कृति जिसमें ग्रहों की गति को विवेचन हैं (को॰) । २ माविक गणों में चार मात्राग्रो के गण (गण) का एक रूप यौ०-करणग्राम = इद्रियममूह। करण्त्रण = सिर । करण जिसमें प्रथम दो मात्राएँ लघु और अत में एक गुरु होती है। विभक्ति का करण कारक का सूचक पद । फरणविन्यय = जैसे, हरि जू । ३ छप्पय के एक भेद का नाम । उच्चारण की पद्धति ।। करतल ध्वनि- समा ची[सं० करतल ध्वनि थपोडी । ताली[को०] । करण–वि० [१०] करनेवाला । उ०-दादू दुख दूरि करण, दूजा । करतली-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ हुयेनी । २. हथेली का शब्द । ताली। नहि कोई - दादू०, पृ: ५३ ।। करतली.-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] वैलगाड़ी में होकनेवाले के बैठने की करण--सज्ञा पुं० [सं० कण] १ फान् । उ०—शमु शाज्ञसन गुण । जगह । करौं करणालवित अाज ।—केशव (शब्द॰) । २ कौरव पक्ष के करतव्य}--सञ्ज्ञा पुं० [स० कर्तव्य दे० 'कतव्य' । एक महारथी जो कृती की कुमारी अवस्था में उत्पन्न माने करत'-- सच्चा पु० [स० कर्ता] दे० 'क'। उ०—वा करता'- संधी पु० [सं० कता] दे॰ 'क'। उ० करता को जाते है। कणं । ३०–मारयो और गगसुत द्रौना। सबको | सेइए, जिन सृष्टि उपाई --घरम०, पृ० १० । मारि कियो दल मूना ।—कवोर स०, पृ० ५० । यौ०--करतासानदीन = परिवार का प्रधान प्रबंधक पुरुप। करता करणाविप—सद्मा पु० [म०] १ करण अयति इंद्रियों का स्वामी । घरती = संस्था या कुटुव की प्रधान प्रवधसचालक । | मन । आत्मा 1 २ कार्याधिकारी [को०] । करता-सच्चा पुं० १ एक वृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण में एक नगण करणान--सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'करनाल । उ०--वीद चढ़े जी में और एक लघु गुरु होता है। उ०—न लुग मना । अघम जना । बलों, वज कुणाल सुवेस --रघु० रू०, पृ० ६४।। सिये भरती । जगे करता । २. उतनी दूरी जहाँतक बदूक से करणि-सा छौं० [स०] कार्यं । कतु त्वं । करनी । करतूत [को०] । छुटी हुई गोली जा सकती है । गोनी का टप्पा या पल्ला । करण'--संज्ञा स्त्री० [सं०] १ गणित में वह संख्या जिसका परा पूरा करतारसा पु० [सं० कतरि] सृष्टि करनेवाला। इन। वर्गमुल न निकल सके । वाहियात सध्या । २. मिथित अर्थात् उ०—-जेड चेतन गुन दोष मय विस्व कीन्ह करतार । सत दोगनी जान्त्रि की स्त्री (को०] } इस गुन गहहिं पय परिहरि वारि विकार तुलसी यो०---करणीसुता = गोद ली हुई लडकी । (शब्द॰) । करणी-वि० [सं० करणिन्] करणवाला 1 करण सहित। करतार--- संज्ञा पुं० [सं० करताल] दे० 'करताल' । करणीगर--सच्चा पु० [सं० फरणि+फा० गर] कार्यकर्ता। कर्ता । करतारी'-सा जी० [हिं० करतार] ईश्वर की लीला । उ०---- उ०---करणीगर हैं क्या किया, अँसा तेरा नाम ।--दाद् प्र ०, केशव और की और भई गति, जानि न जाय कछु करतारी । १० ११७ । केशव (शब्द०)।