पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२९१

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कॅरेकेर ६8 । करग्रहण करकर-वि० [हिं० करकर] १ ३० ‘करकरा' । २ दे० 'करकट' । ता दिन अखिल खलभलै खल खलक मैं, जो दिन सिवी जी उ०--उसमें दुर्गध से भरा हुआ। कूडा करकर देखा --कबीर गाजी नैक करवत हैं 1-भूषण ग्र०, पृ० ४२ । म०, पृ० २५६ । करखना--क्रि० मु० [स० कपण] खीचना । कर्पण करना । करकरा-सज्ञा पुं० [सं० कर्क रेट] एक प्रकार का सारस जिसका । उ०—बहुरि निरवि रघुवरहि प्रेम मन करखइ ।—तुलसी १०, पेट वृथा नीचे का भाग झाला होता है और जिसके सिर पर पृ० १२ । एक चोटी होती हैं। करकटिया। करखा- सज्ञा पुं० [स० कड़खा] १ दे० 'कड़वा' । ३ एक छद विशेप---इसका कठ काला होता है और बाकी शरीर करज के जिसके प्रत्येक पद में ५, १२, ६ र ६ ॐ विराम से ३७ रंग का खाकी होता है । इसकी पूछ एक वित्ते की तया टेढी मायाएँ होती हैं और अंत में यगण होता है। उ०—नमो होती है। नरसिंह वलवत प्रेम, संत हित काज, अवतार धारो । बंभ तें करकरा - वि० [सं० कर्कर] [जो० करकरी] छूने में जिसके रवे या निकस, भू हिरनकश्यप पेटक, झटक दै नखन सो, उर कण उगलियों में गड़े। खुरखुरा। उ०---वाल जैसी करकरी विदारो । उज्जल जैसी धूप । ऐसी मीठी कछ नहीं जैसी मीठी चुप -- करखा-संज्ञा पुं० [सं० कप १ उत्त जना । बढ़ावा । २ रणगीत । कवीर (शब्द॰) । उ० --जहें अगरे करखा कहूँ । अति उमगि अानंद को लहुँ ।:करकराता-वि० [हिं० कड़कना]खुरखुरा । माडी इत्यादि से जिसमें पद्माकर ग्र०, पृ० ८।३. लॉगइट । ताव । उ०-नैननि कृरकराहट आ गई हो। उ०-अप लोगो के समान परम होड बदी बरखा सों। राति दिवस बरसत झर लाये दिन दूना प्रियतम सफेद करकरावा इपट्टा ओढ़ने वाली अनाथ बाला ने करखा सो - सूर (शब्द॰) । (ख) मलेहि नाथ सब कहहि ही सिखलाए होंगे --मारत दु ग्र०, भा० १, पृ॰ ३५४ । सहरसा। एकहि एक वढ़ावह करपा ।-तुलनी (शब्द॰) । करकराना' -क्रि० अ० [हिं० कटकट] कटकटाना । उ०--डावरी करखा-सा पु० [हिं० कालिख ६० 'कालिख'। करेवर करकरइ ।—वी० रासो, पृ० ५९। करगत–वि० [सं० कर+गत] हार्य में रखा हुप्रा । हुम्तगत । करकराना-क्रि० अ० [हिं० कडकड़नी= अत्यत कडा या कठोर प्राप्त । प्रस्तुत । उ०—करगत बैदेवत्व सव तौरे ।होना] प्रचड होना । कठोर होना । उ०—पास जाकर मानस, १ । १५ ।। उनसे कहा अब रियासत नहीं है। अग्र जी करकरा उठी है। करगत–स। पुं० [सं० कटि+गता] १ सोने वा चांदी की करधनी । ठिकाने से काम करो, नहीं तो वाल टूटती फिरेगी !---झाँसी०, २. सूत की करधनी । कटिसूत्र [क]। पृ० १६० । करगस—स पुं० [फा०] गिद्ध । करकराहट-सा पुं०[हिं० करकरा+अहिट (प्रत्ये०)] १. कड़ापन ! करगस--सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] नीर। उ०—करस सम दुर्जन वचन, करगमता in In खुरतुराहट । २ अाँख में किरकिरी पढने की सी पीडा । | रहै सुने जन टारि --कवीर सा०, पृ० ५० ।। कुरकल+--सुश पुं० [हिं० करकट] १• कूडा | कतवार ( २. करगह -सच्चा पु० [फा० कारगाह] १ जुलाहा के कारखाने की | किरकिरी । केन । वह नीची जगह जिसमें जुलाहे पर लटकाकर वेते हैं और केरकलश--संज्ञा पुं० [स०] अजलि (को॰) । कपड़ा बुनते हैं। २ जुलाही का कपड़ा बुनने का यत्र । ३. करकस-वि० [स० कर्कश] दे० 'कर्कश' । जुलाहा का कारखाना । उ०-करगह छोड तमाशे जामि । करका-सज्ञा पुं० [स] ओला ! वर्षा का पत्थर । नाइक चोट जुलाहे माय !-(शब्द॰) । करकाघन- संज्ञा पुं० [सं० फरका+घन] ओल बरसाने वाले बादल । करगहना--संज्ञा पुं॰ [स० कर+० गहना परयर या लेकही जिसे उ०—-‘ाह । घिरेगी हृदय लहलहै खेतो पर करकाधन सी । खिडकी या दरवाजा वनाने मे चोयटे के ऊपर रखकर ने छिपी रहेगी अतरतम में, सबके तु निगूढ़ घन सी --कामायनी । | जोड़ाई करते हैं। भरेठा। १० ६! * करणही—स वी० [हिं० कार, काला+पर एक मोटा जुदाई करकायु--सज्ञा पुं० [सं०] धृतराष्ट्र के पुत्र का नाम । धान जो अगहन में तैयार होता है। करकोटक+---सज्ञा पुं० [सं० कर्कोटक] दे॰ 'कर्कोटक' ।—प्रा० भा० कगीसा झी० [हिं० कर+गहना] १. चीनी के कारणाने ३ | १०, पृ० १६५। । माफ की हुई चीनी बटोरने को चुरचनी । Gf २ वाइ। रकोप--सा पुं० [सं० फर+कोप] अंजनि । चुल्लू (०] । बुढ़ा। उ~-राही ने पिपराही बहो । कगो प्रावत फाडू न करक्कना --हिं० अ० [हिं० करफना दे० 'कडकना' । उ॰--- कही जायसी (शब्द॰) । घरकै घरन्नी करके सुसोय |–१० रा०, पृ० ८५। करग्ग -सा पुं० [सं० करोग्र] इथे । हाय । उ०—रे व फरक्कन –क्रि० स० [हिं० करकना दे० 'क्रकन'। उ०--- | तुरंत , ढोले पुग्म करग |–० ०, १० ३२ ।। भोरा प्रभग लग्यौ रहसि । काम करके प्रनियो ।--पृ० करग्रह-सा पुं० [३०]१ पाणिग्रहण । ब्याह । २ । ०, १।१२० । पा लगाना (०) । फरखना--कि० म०६० इयंता]मावेरी या जोय में अनि । उ० करग्रहण-चम पुं० [सं०] दे॰ 'करपट' [६० ।