पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२९०

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कर भक ६०४ केरकर भूसी अलग करके भूनकर पीसते थे और उसकी सरा, एवं प्रतिवि वित असमूच । वीध्यो कनकपास शुक सुदर करके बीज दही में मिलाकर नमक भोज्य पदार्थ धनाते थे ।-हिंदु० गहि चूच ।—सूर (शब्द०)। ३ कचनार । ४ पलास । सभ्यता, पृ० ८० । ५. व कुल । मौलसिरी । ६ करील का पेड ! ७ नारियल करभक-संज्ञा पुं० [सं० फरम्भक ! १ दलिया। २. दही में सेना की खोपड़ी । ८ ठठरी । ९ हस्त ! हाय (को०)। १० कर। हुआ सत्त, [को०] । महसूल (को०)। ११ उपल । करका । मोना (०) । १२ करभका-- सच्चा स्त्री० [सं० करभका] १ सत्त । २ दही में सेना एक पक्षी का नाम (को०)। १३ उच्चघोष । ऊँची ध्वनि (को०)। सत्त । ३ अनेक उपभाषाग्रों में लिखित प्रलेख [को०)। करक’---सा पुं० [अ० कलक] १ रुक रुककर होनेवाली पीड़ा । करभा-सूझा ० [सं० करम्भा १ शतावरी । २ दही मथने का पीडा । व्याकुल । धेचैनी । २ कसक ! विनक । उ०— पात्र [ये०] । वावले ६६ वुलाइया रे, पकड दिखाई म्हारी वाँह । मूर। कही-सद्या स्त्री० [सं० कर+हिं० गहना] मोचियो या चमारो का वैद मरम नहिं जाने, करक कलेजे माह --सूतवाणी०, मा० एक हाथ लवा, ६ अगुल चौड़ा और ३ अगुल मोटा एक | २, पृ० ७१ ।। औजार जिसपर जूता सिया जाता है। करक-सज्ञा पुं० [हिं० कडक १ रुक रुककर और खेलने के साय कर-संज्ञा पुं० [सं०] १ हाथ । पेशाव होने का रोग । मुहा०—कर गहना=(१) हाथ पकडना । (२) पाणिग्रहण या क्रि० प्र०—यामना !-पकडना । विवाह करना । कर मलना = हाथ मलना । पश्चाताप करना २ वह चिह्न जो शरीर पर किसी वस्तु की दाव, रगड या आघात उ०- ननद देखि क रहहि रिसाइ । तव चलिहढ़ कर मलि से पड़ जाता है । साँट । उ०—दिग्गज कमठ कोल सहसानन पछताय |--जग० श०, पृ० ७०। २ हाथी की सुई। ३ धरत घरनि धर घीर। वारहि बार अमरखत करखत करके सूर्य या चद्रमा की किरण । ४ ओला। पत्थर। ५ प्रजा | प्री परीर 1-तुलसी (शब्द॰) । के उपाजित घन मे से राजा का भाग। मालगुजारी। करक+----संज्ञा पुं० [सं० कर्क]दे० 'कर्क' । उ०० -दो, सक्रात का भेद महसूल । टैक्स ।। वताई। एक मकर दूजा करक कहाई ।--कवीर सा०,१०५५९। क्रि० प्र०- चुकना ।-चुकाना ।—देना ।—बांधना ।—लगना। करकच-सच्ची पुं० [देश॰] १ एक प्रकार का नमक जो समुद्र के ---लगाना ।—लेना ।। पानी से निकाला जाता है । २ टुकडा । खड । उ०-~-जगभग ६ करनेवाला । उत्पन्न करनेवाला । जगमग करे नग, जौं जराय सग होइ । काच करकचन बिच विशेष———इस अर्थ में इस शब्द का प्रयोग केवल यौगिक शब्दों में खचे, मल कहै नहि कोइ --नद ग्र०, पृ० ११७ । ३ गिद्ध । होता है, । जैसे -कल्याणकर, सुखकर, स्वास्थ्यकर इत्यादि । चील ।--तिनके तन को करकच छेदै, बहुत भौति चोवन |७ छल । युक्ति । पाखड । जैसे,- कर, वल, छन । उ०—कीरतन सो भेद।--कवीर सा०, १० ४६४।। करत कर सपनेहू मथुरादास न मडियो ।—नाभा (शब्द॰) । करकच–सझा पुं० [सं०] ज्योतिष का एक योग (को॰] । कर -प्रत्य० [सं० कृत] का। उ०—(क) राम ते अधिक राम कर करकचहा--सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'अमलतास' । दासा ।-- तुलसी (शब्द॰) । (ख) वे सब कीन्ह जहाँ लगि करकट-संज्ञा पुं० [हिं० खर+स० कट] कहा। झाड ।। वह कोई । वह नहिं कीन्ह काहु कर होई ।—जायसी ग्र०, पृ० ३। घास पात । घास फूस । फतवार । करइत"f- सच्चा पु०[देश॰]एक तरह का कीडा जो अनुमानतः छह । यौ॰—कूडा करकट। | अगुल लंबा होता है और हवा में उडता है। करकटिया-सुज्ञा स्त्री॰ [स० कर्करेट] एक चिडिया । दे० 'करक' । करइत-- मज्ञा पुं० [हिं० करैत] दे० 'करैत' । करना--क्रि० अ० [हिं० कक वा करक] किसी कड़ी वस्तु का करइला--सच्चा पुं० [हिं० करेला] दे० 'करेला' । उ०--दूरे पटाइम, कर कर शब्द के सथि टूटना । तुडकना। फटना। फूटना । सीची नीत । सहज न तेज करइ ला तीत ।--विद्यापति, चिटकना। उ०—फर कि फरकि उठे वहिँ अस्त्र वाहिबे को पृ० ४२३ । । कर कि करकि उढे करी वर की।--रिकेस (शब्द॰) । करई-मज्ञा स्त्री० [हिं० करवा +ई (प्रत्य॰)] पानी रखने का एक कुरकन -क्रि० अ० [अ० कलक> हि० करक से नीम०]रह रहक प्रकार का टोटीदार वरतन । छोटा करवा । दर्द करना । कसकना । सलिना । खटकना । ३० बचत करईसज्ञा स्त्री० [स० करक] एक छोटी चिडिया जो गेहू के छोटे विनीत मधुर रधुवर के । सूर सम लगे मातु उर करके । छोटे पौधों को काट काटकर गिराया करती है। --तुलसी (शब्द॰) । करकंटक सज्ञा पुं० [स० करकण्टक] नख । नाखून । करकनाथ- सच्चा पु० [सं० कर्करेट] एक काला पक्षी जिसके विषय करक'– स ० [सं०] १. कमंडलु । करवा । उ०—कहु मृगचर्म । में यह प्रसिद्ध है कि उसकी हड्डियाँ तक काली होती हैं । कतहु कोपीना। कह कया कह करक नवीनी [-या ० दि० करकमल--सज्ञा पुं० [सं०]कमल जैसे, सुंदर एव कोमल हाथ । (घाब्द०) ५ २ दाडिम् । अनार । उ०—सहज रूप की राशि करकर'- संज्ञा पुं० [सं० कर्कर] एक प्रकार का नमक जो समुद्र नागरी भूपए अधिक विराज । नासा नथ मुक्ता विवाघर पानी से निकाला जाता है ।