पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२८९

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कैयारी ६°३ करंभ क्रि० प्र०--अनि । करज-सज्ञा पुं० [स० कलिङ्ग, फा० कुलंग] मुरगा । २., प्रलय । ३. अफत । विपत्ति ! हलचल | खलबली । उपद्रव । यौ-करजखाना । क्रि० प्र०—-ना-उठना ।उठाना । टना।--दाना । करवाना--संज्ञा पुं० [हिं० करज+फा० खान, (घर)] वह स्थान --वरपा करना ।—मचना ।—मचाना । —लाना --होना । जहाँ बहुत से मुरगे पले हो। पालतू मुरगो के रहने का स्थान । मुहा०—कयामत का=(१) गजद का । हद दरजे का । (२)अत्यंत उ०—हिरन हुरमखाने, स्याही हैं सुतुरखाने, पाढे पीलखाने ।। अधिक प्रभाव डालनेवाला । कयामत का सामना होना=नारी और करजखाने कोच हैं --भूपण (शब्द॰) । संकट आ जाना। उ०----ौर मैं तो थर थर कांपती थी कि करंजा-सज्ञा पुं० [सं० झरञ्ज] दे० 'कजा' । जो कहीं उनको खवर हो गई तो कयामत ही का सामना करजा-वि० [छी० करंजीकरजु या कर्ज के रग की ली अखवाला। होगा ।—सर कु०, पृ० १६ । कयामत वरपा करना= कयामत भू अखवाला । दाना । प्रलय मचाना । अफित लाना । उ०—-सवं कामत करंजुवा--संज्ञा पुं० [सं० करज] दे॰ 'करज' या 'कजा' । गजब की चाल से तुम । क्यो कयामत चले चपा करके। करंजुवा-सुज्ञा पुं॰ [देश॰] १. एक प्रकार के अकुर जो वाँस, ईख भारतेंदु ग्र॰, भा॰ २, पृ० २२० । या उसी जाति के और पौधों में होते हैं और उनको हानि कयारी-संज्ञा पुं० [हिं० कोयर] सूखी घास ! सूखा चारा ।। पहचाते हैं। घमोई । २. जौ के पौधे का एक रोग जो खेती कयास--सच्चा पु० [अ० कुयास] [वि० कपीसी] । अनुमान । अट को हानिकारक हैं। - कल 1 सोच विचार । ध्यान ।। करंजुवा--वि० [सं० करञ्ज] करंज के रग का । खाकी । क्रि० प्र०—करना ।—होना । कृरजुवा–संज्ञा पुं० खाकी रग ३ करंज का सो ग । महा०---कयास लगाना, लड़ानो वा दौड़ाना=अनुमान वाँधना । विशेप—यह रंग माज़, केसीस, फिटकरी और नासपाल के योग । अटकलपच्चू विचार करना। खयाल दौड़ाना । कयास में से बनता है। ग्राना= समझ में आना | मन में बैठना । कयासी--वि० [अ० कयास +फा० ई (प्रत्य॰)] काल्पनिक । करंड-सज्ञा पुं० [सं० करण्द्ध] १ मधुकोश । शहद का छत्ता। ३. | अनुमित 1 अनुमान के आधार पर माना हुया या माननेवाला । तलवार । ३ कारडव नाम का हँस । ४. वांस को बनी हुई कयौ?--क्रि० अ० [हिं० कहना की मूत कृ०, कह्यो] दे॰ 'कहा। टोकरी या पिटारी । डला ! इली उ०--मन भुजग गुरु गारडी | उ०---मुनसों कयौ नवाव सू', जीव रहैं सुजवाव |--रा० राखे कील करड।—रज्जव०, पृ० २० ।। ५ एक प्रकार । ६०, पृ० ३३८ । की चमेली । हजारा चमेली । करक'---संज्ञा पुं० [सं० करडू] १ मस्तक ) २, करवा । कमंडलु ! करङ–सञ्चा पु० [सं० फुरदिन्द] कुरुल पत्यर जिसपर रखकर छूरी ३. नरियरी । नारियल की खपड़ी । ४ पंजर । ठठरी ।। | और हथियार आदि तेज किए जाते हैं। उ०—(क) चारों ओर दौरे नर अाए ढिग टरि जानी कैट करंडक--सज्ञा पुं० [सं० फरण्डको वाँस का वना छोटा पिटारा या के करक मध्य देहू जा दुराई है। जग दुर्गध कोऊ ऐसी बुरीं । बक्स [क]। लागी जामें बडू दुर्गंध सो सुगंध ल सराई है --प्रिया करडिका–संज्ञा स्त्री० [सु० करण्डिका] वाँस की वनी छोटी पिटारी (शब्द॰) । (ख) कागी रे करक परि वोलइ । खाई मास | या पेटी (को०)। अरु लगही डोलइ 1-दादू (शब्द॰) । करंडी-सच्चा स्त्री० [हिं० अडी1 कच्चे रेशम की बनी हुई चादर। करक---संज्ञा पुं॰ [देश॰] भोज में अनाहूत रूप में डटने और करंडी–मज्ञा स्त्री० [सं० करण्डी] वास की धनी छोटी पैटी या भोजन किए बिना न हटनेवाला व्यक्ति | कैगला । पिटारी [को०] । करगण-सज्ञा पुं० [सं० करङ्गण] १ हाद। बाजार । २. मुला[को०] । करंडी सज्ञा पुं० [सं० करण्डिन् मछली (को०] । करेंगा--सुज्ञा पुं० [हिं० काला या कारा+अंग] एक प्रकार का * मोटा घान । करंतीना-सज्ञा पुं० [अ० क्वारंटाइन दे० 'क्वारटाइन' । करंद-सज्ञा पुं॰ [देश॰1 विना भोजन किए न टलनेवाला व्यक्ति। बिशेप–इसकी भूसी कुछ कालापन लिए होती है। यह क्वार महीने में पकता है। कैगला। करेगी--सज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ करेंगा] दे॰ 'करेंगा'। करबय–वि० [सं० करन्घय] हाथ का चुवन करनेवाला । हाथ विशेष---करंगों का दाना प्रकार में कुछ छोटा होता है। | चुमनेवाला [वै] । करंज-सज्ञा स्त्री० [हिं० करञ्ज] १. कजा। २. एक छोटा जंगली करव--संज्ञा पुं॰ [सं० करम्व] [वि० अरम्वित मिश्रण । मिलावट । पेड जिसकी पत्तियों सीसम की सी पर कुछ वडी होती हैं। कवित-वि० [सं० करवित] १. मिथिते । मिलवां । मिला हुआ। इसकी डाल वहुत लचीली होती हैं। इसकी टहनियों की लोग | २ खचित । वना हुआ ! गढ़ा हुआ। दातून करते हैं । ३ एक प्रकार की प्रातिशवाजी । । करभ-- सज्ञा पुं० [स० करम्भ] १. दही में सेना सत्त। २ दलिया। ३. मिली जुली गघ । ४. पम्। उ०—जौ को कूटकर