पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२८८

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कृमोदिन ६०३ कयामत कमोदिन+---मज्ञा स्त्री॰ [स० कुमुदिनी] दे० 'कुमुदिनी' । उ०—चद केम्मान--सझा चौ॰ [फा० कमान दे० 'कमान'। उ०—गहे वान वेदरदी ते ग्रा, देरदी कमोदिन क्या किया ।—घट०, कम्मान समसेर नेजे । सुनी बात काने लिवी अखि दीखे |--- पृ० ११२ ।। हम्मीर०, पृ० ५।। कमोदिनी सुज्ञा स्त्री० [सं० कुमुदिनी दे० 'कुमुदिनी' । जल में कम्युनिक-सज्ञा पुं० [फा०] सरकारी विज्ञप्ति या सूचना । वह बसे कमोदिनी, चदा बस अकासे -कवीर सा० सं०, सरकारी वक्तव्य जो समाचारपत्रों को छापने के लिये दिया पृ० ५३ ।। जाता है । जैसे,—सरकार ने एक कम्युनिक निकालकर इस कमोरा-सज्ञा पुं० [स० कुम्भ+ हिं० रा (प्रत्य०)] [स्त्री० कमोरी, समाचार का खइन किया । कमोरिया]१ मिट्टी का एक बरतन जिसका मुह चौडा होता कम्युनिज्म----संज्ञा पु० ]अं॰] वह मतवाद या सिद्धात जिसमें संपत्ति है और जिममे दूध दुहा और रखा जाता है तथा दही का अधिकार समष्टि या समाज का माना जाता है। व्यक्ति जमाया जाता है। २ घडा । कछरा । ३ मटका । विप या व्यष्टि का स्वरव नहीं माना जाता । समष्टिवाद । कमोरिया—संज्ञा पुं० [स० कर्मार] छोटा, पतला और हलका कम्युनिस्ट----सा पुं० [अं॰] वह जो कम्युनिज्म या समप्टिवाद के बसि । सिद्घात को मानता हो । कम्युनिज्म के सिद्धात को विशेष—यह मसहरी लगाने या ढाबे की पाटन अादि के काम माननेवाला । । आता है ।। कम्र–वि० [सं०] १ कामी । कामुक । २ सुदर। उ०—तव थे कमोरिया-सज्ञा स्त्री० [हिं० कमोरा छोटा कमोरा या मटकी । | लोचन मीन कम्र थे ।--साकेत, पृ० ३४५ । कमोरी–सज्ञा स्त्री० [हिं० फमोरा] चौड मुह का छोटा मिट्टी का कथिनि सज्ञा स्त्री० [हिं० फायथ का सी० दे० 'कैयिन' । उ०—वरतने जिममे दूध नहीं रखा जाता है । मटकी । गगरी । वानिन चली सेंदुर दिए माँगा । कायिनि चली समाई उ०—मली करी हरि माखन खायो । इतौ मानि लीनी न अगा ।—जायसी प्र ०, पृ० ८१ ।। अपने सिर उपरो सो उरकायो। राखी रही दुराइ कमोरी कथ्थ —सज्ञा पुं० मि० फपित्य, प्रा० कइत्य] दे॰ 'कपित्य' उ--- सो ले प्रगट दिखायो - सूर (शब्द०)। सुन् करि कदम कयेय्य करील । कमोदनि कुदह केतक कमोला--वि० [म० कम्र] कमनीय । सूदर। उ०—कहाँ अधर बील 1-पृ० रा०, पृ० २।३५५।। रंग सुरग अमोल । कहाँ मदन वह सिहर फमोला ।--हिदी कयपती-भज्ञा स्त्री॰ [मला० कयु+पेड़+पूती = सफेद] एक सदाप्रमा०, पृ० २७६ ।। | बहार पेड़ जो सुमार, जावा, फिलिपाइन अादि पूर्वीय द्वीपकमोवेश-वि० [फा०] थोडा बहुत । न्यूनाधिक । उ०—अपनी थका समूह में होता है । देनेवाली गरीबी की जिंदगी की जिसे वे सुदूरपूर्व के रेगिस्तान विशेष-जावा और मैनिला आदि स्थानों में इसकी पत्तियों का में, जगल में, कमोबेस बसर करते रहे ।--प्रेम और गोर्की, तेल निकाला जाता है जिसकी महक चहूत कडी होती हैं और पृ० ३७७ ।। जो बहुत साफ, कपूर की तरह उड़नेवाला सौर स्वाद में क्रमौरी सज्ञा स्त्री० [हिं० फमोरी] दे० 'कमोरी'। उ०—-ऊपर चरपर होता है । यह तेल दर्द के लिये बहुत बहुत उपकारी है। ते कृष्णाग भरि 'भरि डारति कनक कमौरी }---छीत ०, गठिया के दर्द में यह और दवा के साथ मला जाता है । पृ० २ । कम्मू -संज्ञा पुं० [स० कर्म, प्रा० फम्म] दे० 'कर्म' । उ०—कवह कयर--सज्ञा पुं० [देश॰] दे॰ १ कर' या 'कल' । उ०—-जिण एहू नहि कम्म करिअई ।—कीति०, १० १८ । मुइ पन्नग पीयणी, कयर-कैटाला रूख । अाके फोगे छहडी, कुम्मखत -वि० [फा० कम्बख्त] दे॰ 'कवखत' । उ०—झझ्झा छूछा भाँजई भूख ढोलः०, ६० ६६१ ।। | क्या सच्चा स्त्री॰ [स० काया दे० 'काया' । उ०—रानी उतर झवत फिरत कम्मखत रोये के जन म गॅवावै [----पलट ० दीन्ह के मया । जो जिउ जाइ रहे किमि कया ।—जायसी पु० ७१ । ग्र ० (गुप्त) पृ० १५७ । कम्मर —सज्ञा स्त्री॰[हिं० फमर] दे० 'कमर' । उ०—-कम्मर को न । कयाधू-संज्ञा स्त्री० [सं०] हिरण्यकशिपु व पदनी और प्रह्लाद की कटारी दई ।—भूपण ग्र०, पृ० ४६ ।। " माता का नाम [को०। कम्मरधु-सज्ञा पु० [सं० कम्बल] दे॰ 'कम्वल'। उ०—चिता वाढे। कयाम–सच्चा पु० [अ० कयाम] १ व्हराव । टिकान । विश्राम । रोग लगा, छिन छिन तन छीजै । कम्मर गरु। होय, ज्यो क्रि० प्र०—करना ।—फराना ।—होना ।। ज्यो पानी से भीजै ।---पलटू०, पृ० ६६ । २ टिकने की जगह । ठहरने की जगह । विश्राम स्थान । कम्मल--सज्ञा पुं० [सं० कम्वल दे० 'कवल' । उ०—Tरतु इस ठिकाना । ३ ठौर ठिकाना । निश्चय । स्थिरता । जैसे—कम्मल को लाल टोपी का सत्यानाश हो ।--प्रेमघन॰, 'भा० उनकी वात का कुछ कयाम नही । २, १० २५८ । कयामत सज्ञा पुं० [अ० कयामत १ मुसलमानो, ईसाइयो और कम्मा–ज्ञा पुं॰ [देश॰] ताड़पत्र पर लिखा हुप्रा लेख । यहूदियो के अनुसार सृष्टि का वइ अतिम दिन जब सब मुर्दै कम्मा सञ्चा पुं० [सं० कम, प्रा० कम्म] काम । उठकर खड़े होंगे और ईश्वर के सामने उनके कर्मों का लेखा यौ॰—दोहरकम्मा =.वही कम फिर उसी प्रकार करना । रखा जायगा । अतिम ।