पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२८६

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कैमानदर कमीनीवाछ यौ०-बालकमानी = घडी का एक बहुत पतली कमानी जिसके कमासुत - वि० [हिं० कमाना+सुत] १, कमानेवाला । कमाई सहारे कौमा या चक्कर घूमता है । करनेवाला । पैदा करनेवा।। २. उद्यमी ।। ३ झकाई हुई लोहे की लचीली तीली । जैसे, छाते की कमानी, कमाहक्कह - वि० [अ० कमहिक्कह ! बखूबी । उचित रूप में। चश्मे की कमान । ३. एक प्रकार की चमड़े की पेटी जिसके ठीक ठीक । उ०--आज जमाने की रफतार र चलन भीतर हे की लचीली पट्टी होती हैं और सिर पर गद्दियाँ है, उसी पर कमोहक्क अमल करते । - प्रेमधन०, 'भा० २, | होती हैं । पृ० १५६ ।। विशेष—इसे अति उतरनेवाले रोगी कमर में इसलिये लगाते हैं कमिक्षा(५-- सझा जी० [सं० कामाक्षा] दे॰ कामाख्या' । उ-क्रमक जिसमें अति उतरने का मार्ग बद रहे । माह के मिझा देव । नीमखार मिसरख जम लेवी ।कबीर ४ कमान के प्रकार की कोई झुकी हुई लकही जिसमें दोनो। स०, पृ० ६०४ ।। सिरो के बीच में रस्सी, तर या वाल बँधा हो जैसे, सारगी। | कमिटी--संज्ञा स्त्री० [अ० सभा । समिति । की कमानी, (वढई के) वर मे को क मानी, हुक्काकों की कमिता--वि० [सं० फमितृ] [स्त्री॰ कमित्र] १ कामुक । कामी । कमानी (जिससे नगे या पत्थर काटने की सान घुमाई जाती। । २ कामना रखनेवाला । चाहनेवाला ।। है) । ५. वाँप की एक पतली फट्टी जो दर बुनने के करघे में काम आती है। कमिया--संज्ञा पुं० [हिं० काम> कम +इया (प्रत्य०)} दे० कमानदार-वि० [फा०]जिसमे कृ मानी लगी हो। कमानीवाला । 'कमकर' । उ०--अधिकाश जनता दास और कमियाँ थी । जैसे, कमानीदार एक्का। मान०, पृ० १०५।। कमायच-सज्ञा सो० [हिं० कमायज] दे॰ 'कमायज । उ०-~-सितार। कमिश्नर--संज्ञा पुं० [अ०] १, माल का वह बड़ा अफसर जिसके अधिकार में कई जिले हो । ३ वह अधिकारी जिससे किसी कमायच अरु मुहुचेगा। ताल मृदग न फेरी सगा |--कवीर । स०, पृ॰ २४९। कार्य के करने का अधिकारपत्र मिला हो । ३ अायुक्त । कमायज-सज्ञा स्त्री० [फा० कमानचा सारी अादि वजने कमिश्नरी--संज्ञा स्त्री० [अ० कमिश्नर १, वह भूमग जो किसी | की कमानी । कमिश्नर के प्रवंधाधौन हो। २. डिवीजन । प्रमडल । जस,कमाल-सज्ञा पुं० [अ०] परिपूर्णता । पूरापन । वनारस एक कमिश्नरी है। २. कमिश्नर की कचहरी । जैसे, - मुहा०-~-कमाल को पहुचाना = पूरा उतारना । कमिश्नरी में मामला चल रहा है । ३. कमिश्नरो का काम या २. निपुणता | कुशलतः । ३ अद्भुत कम । अनोखा कार्यं । । पद । जैसे --उन्होने कई वर्ष तक कमिश्नरी की थी । ३०-वेगम से व कमाल हैं । अल्ला जानता है कमाल है । कृमीण(G)-- वि० [फा० कमीन] दे॰ 'कमीन!'। उ०-कौन अपनी - फिसाना०, ३, पृ० २ । कमीण विचारा, किसक पुर्ज गरीव पियारा १–दाई क्रि० प्र०—करना ।—दिखाना । पृ० ६२८ । ४ कारीगरी। सनत । ५ कबीर के बेटे का नाम, जो कदीरदास कमी--सज्ञा स्त्री० [फा०] न्यूनतः । कोताही । घटीव । अस्पती । ही की तरह फकई साधु था । कहते हैं, जो बात जैसे,—अभी पचास में दस की कमी है। कबीर कहते थे, उसका उलटा ये कहते थे । जैसे, कवीर ने क्रि० प्र०—करना । कहा--- मन का कहना मानिए, मन है पक्का मीत । परब्रह्म । २. हानि । नुकसान । टोटी । घाटा । जैसे,---उन्हें इस साल ५) पहिचानिए, मन ही की परतीत ! कमाल ने कहा--मन का |सैकहे की कमी आई। कहा न मानिए, मन है पक्का चोर । ले बोरे मजझारे में, देय । क्रि० प्र०—अमर }---पड़ना —होना ।। हाथ से छोड । इसी बात को लेकर किसी ने कहा है कि वह कमीज--सझा बी० [अ० कमीस, फा० शेमीज] एक प्रकार की । वैसे कवर का उपजा पूत कमाल' ।। कुतो ।। कमाल—वि० १ पूरा । सपूर्ण । सब । २ सर्वोत्तम । पहुँचा हु प्रा । । विशेष—इसमे कली और चौबले नही हो । पीठ पर चुनन, ३ अत्यत । वहुत । ८ दि। उ०—विचारे तमाल कमाल हाथो में कफ और गले में कालर होता है। यह पहिनदि सोच में पड़ काले पड़ गए -प्रेमघन॰, भा० २, पृ० १६ । । अँगरेजो से लिया गया है। कुमाला--सज्ञा पुं० [अ० कमल] पहलवानो की अपसी कुश्ती । कमीन--सञ्ज पु० म०] धात, शिकार या वार के निये भोट । विशेप---यह केवल अभ्यास बढ़ाने था हुनर दिखाने के लिये कमीन-वि० [फा०] नीच । अधम । खल। धृते । अकुलीन । | होती है और इसमें हार जीत का यान नहीं रखा जाता । कमीनगाह–सञ्च? पु० [अ० कमीन + फा० गाह] वह स्थान जहाँ से कमलियत-- सच्चा स्त्री० [अ०] १. परिपूर्णता । पूरापन । २. ओट में खड़े होकर तीर या बदूक चलाई जाती है । निपुणता । कुशलती ।। कमीना--वि० [फा० कमोनह.]{ लौ० कमीनी] ओछा। नीच । क्षुद्र । कमाली -सुज्ञा पुं० [हिं० कपोली] दे॰ 'कपाली' । उ०---जुळे | कमीनापन-मज्ञा पुं० [हिं० मीना+पन (प्रत्य॰)] नीचता । जराण, उभे अप्रमाण । हुई वीर हुक्क, कमाली किलक्क -- भोछापन । क्षुद्रत ।। रा० ६०, पृ० १६१ ।। कृमीनीवाछ-सज्ञा स्त्री० [फा० कृमीना+हि छाछ-उगाही दाई