पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२८३

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कैमल केमन्नाकार लघु और गुरु, यथाक्रम होते हैं । यथा-‘धिधिकट धाकिट विनि- कमलवंधु-सज्ञा पुं० [३० कमलबन्धु नूर्य । घरि, वरकु, गिडि गिरि, दिदिंगने यो। ११ दीपक राग का कमनवाई-सजा त्रिी० [हि कमत+वाई| एक रो। जिन जोर, दूनरा पुत्र। इसकी भार्या का नाम जयजयवंती है । १२. विशेष कर पढ़ें पीनी पडे जाती है । मात्रिक छंदो में छह मात्रा का एक छद जिम में प्रत्येक चरण कमलभव--सः पुं० [सं०] ब्रह्मा । में गुरु लघु गुरु लबू (s si) होता है । जैसे, दीनबंधु । शील कमलभू--सा पुं० [नं०] ब्रह्मा । सिंधु । १३. छप्पय के ७१ भेदों में से एक । इसमें ४३ गुरु, कमलमूर --नश पुं० [सं० कमत + मूल]दे० 'कमनमून'। 3०-- ६६ लघु, १०९ वर्ण और १५२ मात्राएँ होती हैं। १४ तिरपुटिय भाल शिल कमनमुरे । इह मन ताव नप तपनि एक प्रकार का वर्णवत जिसका प्रत्येक चरण एक नगण का जूर --पृ० ०, १४:६ । होता है । जैसे,—न बन, भजन, कमल, नयन । १५ कोच का कमलमल-नाश पु० [न०] १ नसीङ । मुरार । २ मस्तकम्धित एक प्रकार का गिलास जिसमे मोमबत्ती जलाई जाती है । १६ सहन्नदल कमल का मुन भाग । एक प्रकार की पित्त रोग जिसमें अखिं पीली पड़ जाती है कमलपोनि--सनी पू० [मं०] ब्रह्मा । और पेशाब भी पीला ग्राता है। पील 1 कमला । काँवर । १०. कमलवन-मा प० [सं०1 कमो का पज्ञ या समद किये। मूत्राशय ! मसाना । नृतवर । कमलवायु-- स ० [सं०] एक व्याधि जिनमें शरीर, विशेष कर कमल - सुज्ञा पुं॰ [स० कपाल या देश॰] शिर । मस्तक । उ०— अखें पीली पोली पड़ जाती हैं। पीनि। पाडुरोग । ६० (क) कर यापट फुटे कमल, नावै नयेणा नीर –धाकी ग्र०, कमलबाई । भा॰ २, पृ० २०। (छ) गोवदराज गहलौत अाइ । वैठो कमलमभव--सण पु० [सं० कमलेसम्भव] ब्रह्मा फेo] । नु कुअर कमन नवाई। - पृ० ०, ६५१३४ । (1) वेट कमल कमल'-सधा स्त्री० [मु०] १ लक्ष्मी। उ०--ही है ज्यो चाह लघौ खग वाहे –० ०, पृ० २६० ।। दीनजन को कमना की। यी चिंतागभरि चिन में प्रकूनला कमलप्रडा सा पु० [स० कमल = हि० ग्रडा] कमलगट्टा । की ।-शकु०, पृ० १० | २ धन । ऐश्वर्य। ३ एक प्रकार कमलकंद संज्ञा पुं० [३० कमलकन्द] कमल की जड । भिस्सा । की वही नारगी। मंत।।४ एक नदी का नाम जो तिरहुन भसीड। मुरार । में है । दर भगा नगर इल्ली के किनारे पर है। ५ एक वर्णवृत्त कमलक--- संज्ञा पुं० [सं०] लघु प्रकार का कमल । छोटा कमल (को॰] । का नाम । ३० 'रतिपद' । कमलगट्टा-सा पु० [सं० कमल +प्रन्यिक,>प्रा० कमल +गट्ट] । कमला'.-सरा पु० [सं० कम्वत] १. एक कीड़ा जिनके ऊपर रोएँ क्रय कमल का वीज । पद्मज । कमलाक्ष । होते हैं। मनुष्य के शरीर में इसके छू जाने से युजलाहट विशेष—कमल के वीज छरो में से निकलते हैं। इनका छिनका होती हैं । झोझो सुडी । २. ग्रेनाज या सूडे का ग्रादि में कडा होता है । छिनके के भीतर सफेद रंग की गिरी निकली पडनेवाला लता सफेद रंग का कोड़ा । ढो। ढोनट । है जिने वैद्य लोग ठडी प्रौर मूत्रकारक मानते हैं तथा वमन, कमलाई-सा पुं० [म० कमते = कमल के समान लाल एक पद छ। उकार अदि कई रोगों में देते हैं। कमलगट्टा पुष्टई में भी नाम जो राजपूताने की पहाड़ियों और मध्य प्रांत में होता है। पता है । विशेप--यह पेड़ मियाने कद का होता है और जाड़े में इसके पत्तों कमलगभं--सा पुं० [सं०] कमल का छत्ता । भड जाते हैं। इसके हीर की लकड़ी चीरने पर नाल पौर कमलज-सरा पुं० [सं०] ब्रह्मा ।। र सूखने पर कुछ भूरी हो जाती है। यह बहुत चिकनी कमलजीत--सा पु० [म०] ३ह्मा । उ०—दिवि महिमा जमुमनि तात और मजबूत होती हैं या गाडी र कोल्हू नान के काम | को । सुधि बुधि गई मलजीत को—नंद॰ ग्रं२, पृ॰ २६२। में आती है। अलमारियों और ग्राम समान भी इस कमलनयन--वि० [स०]| लो० कमलनैनो] जिसकी प्रायें कमल की अच्छे बनते हैं। पत्तियां चारे के काम अनी हैं। हाथी इते | पचडी की तरह वह और सुदर हे । सुदर नैनवाला। बड़े चाव से वाते हैं। अल चमडा गर्ने । चिये नगद कमलनयन'--- पु० १. विष्णु । २ म । ३ कृष्ण । कागज बनाने पर कपडा रेंगने के कान माती है। इसे गम् । कमलनाभ--सी पुं० [सं०] विष्णु । मनाल--सा बी० [३०] कमल की इंडो जिसके ऊपर फून रहवा भी कहते हैं। है। मृणाल । कमला कर--सा पु० {नं०] वरीपरे । तनाव । पुर। कमलपाणि-वि० [१०] जिसके हाय कमले के मान हो । ३० - कमलाकात-उवा ५० [६० कलाकान] दिगु । नेनोपति । विनायक एक हूप मायै ना पिनाक ताहि, होमन कमलपाणि । विशेष—यह शब्द राम, कृष्ण प्रादि विश्णु के प्रवेना है ये राम केसे त्यावः ।-केव (शब्द॰) । भी प्राज्ञा है। कमलचध--- पुं०[सं० क्रमपन्य Jए के प्रार का चित्र काव्य जिसके पामलाकार'मा पुं० [सं०] छ यि हा एक ने। इसन २३ नु, मारो को एक विशेष कम से लिने पर कभप के साकार का । २८ नयु, १२५ वर्ण ग्रोर १५२ मा २९ ।। ।।। चित्र बन जाता है । कमवाकार--- [सं०][• कमलाकारा कनन के पार ।।