पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२८२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

कमरिया। ७९६ कमल कमरिया-सज्ञा स्त्री० [हिं० कमरा] दे॰ 'कमली' या 'कमरी' । कमरिया+- सज्ञा स्त्री० [हिं० कमर] ३० कमर' । कमरी-सज्ञा स्त्री० [हिं० कमरा] दे॰ 'कमल' । कमरी--सज्ञा पुं० [हिं०] एक रोग जिसके कारण घोडे सवार या वोझ को देर तक पीठ पर लेकर नहीं चल सकते, उनकी पीठ दवने या काँपने लगती है। कमरी-वि० [हिं० कमर] चलने मे पीठ मारनेवाला (घोडा) । | कमजोर या कच्ची पीठ का (घोडा) । कुवड़ा । विशेष-कमरी घोडे की पीठ कम बोर होती है, इसी से यह बोझ या सवारी लेकर दूर तक नहीं चल सकता, थोड़ी ही देर में उसकी पीठ कॅप जाती है और बार बार पीठ के रात। है । ऐसा घोडा ऐवी समझा जाता है। कमरी-संज्ञा स्त्री' [देश॰] १ चरी की मू ही में लगी हुई डेढ़ | वालिश्त को लवी लकडी । २ छोटी फतुई । सलूका।। कमरी-सज्ञा पुं॰ [देश॰] जहाजे जिसकी कमर टूट गई हो । टूटा जहाज।। कमरू-सज्ञा पुं० [सं० कामरूप] दे॰ 'कामरू। उ०—कमरू माह कमिक्षा देवी । नी मखर मिसर ख जम लेवी ।—कबीर सा, पृ० ८०४ ।। कमरेंगा- सज्ञा पुं॰ [देश॰] वगाल की एक प्रकार की मिठाई । कमर्शल-वि० [अ०] व्यापार सवधी । व्यापारिक । कमल--सज्ञा पु० [सं०] पानी में होनेवाला एक पौधा । विशेष --यह प्राय संसार के सभी भागों में पाया जाता है । यह झीलो, तालाबो और गडहो तक में होता है। यह पेड वीज से जमता है । रग और अाकार भेद से इसकी बहुत सी जातियाँ होती हैं, पर अधिकतर लाल, सफेद और नीले रंग के कमल देखे गए हैं । कही कही पीला कमन भी मिलता है। कर्म न की पेडी पानी में जड से पांच छ अँगुल के ऊपर नहीं आती। इसकी पत्तियाँ गोल गो न वडो याली के प्रकार की होती हैं। और वीच के पतले डठल मे जही रहती हैं। इन पत्तियों को पुरइन कहते हैं। इनके नीचे का भाग जो पानी की तरफ रहता है, वहुत नरम और हलके रंग का होता है। कमन चैत बैस ख मे फूलने लगता है और सावन भादो तक फूलता है । फू लंबे इठल के सिरे पर होता है या इठल या नाल मे वहुत से महीन महीन छेद होते हैं । इठल का नाल तोडने से महीन सूत निकलता है जिसे वटकर मदिरो में जलाने की बत्तियाँ बनाई जाती हैं । प्राचीन काल में इसके कपड़े भी बनते थे । वैद्यक में लिखा है कि इसे सूत के कपड़े से ज्वर दूर हो जाता है । कमल की कली प्रति काल खिलती है । सब फूलो की पखडियो या दलों का सख्या समान नहीं होती। पखडियो के बीच में केसर से घिरा हुआ एक छा होता है। कमल की गघ भौरे को बड़ी प्यारी लगती है। मधुमक्खियाँ कमल के रस को लेकर मधु बनाती हैं जो अाँख के रोग के लिये उपकारी होता है । भिन्न भिन्न जाति के मन के फू नो की प्राकृतियाँ भिन्न भिन्न होती हैं । उमरा (अमेरिका) टापू में एक प्रकार का कमल होता है जिसके फल का व्यास १५ इंच और पते का व्यास साढे छह फुट होता है। पखडियों के झड जाने पर छत्ता चढ़ने लगता है और थोड़े दिनों में उसमें बीज पड़ जाते हैं । वीज गोल गोल लवोतरे होते हैं या पकने और सूखने पर काले हो जाते हैं और कमलगट्टा कहलाते हैं । कच्चे कमलगट्ट को लोग खाते हैं और उसकी तरकारी बनाते हैं, सुखे दवा के कमि आते हैं। कमल की जड़ मोटी और सूखदार होती है और मसीड, भिस्सा या मुरार कहलाती है। इसमे से भी तोडने पर सूत निकलता है। सूखे दिनों में पानी कम होने पर जड़ अधिक मोटी थोर बहुतायत से होती है। लोग इसकी तरकारी बनाकर खाते हैं । अकाल के दिनो में गरीब लोग इसे सुखाकर आटा पीसने हैं और अपना पेट पालते हैं। इसके फूलो के अकुर या उसके पूर्वरूप प्रारंभिक दशा में पानी से बाहर आने से पटले नरम और सफेद रग से होते हैं और पौनार कहलाते हैं । पौनार खाने मे मीर होता है । एक प्रकार का लाल कमल होता है जिसमे गध नहीं होती और जिसके बीज से तेल निकलता है। रक्त क ल भारत के प्राये सभी प्राती में मिला है। इससे संस्कृत मे को नद, रवतोपले हल्लक इत्यादि कहते हैं। श्वेत कमल काजी के अासपास और अन्य स्थानों में होता है। इसे शतपत्र, महापद्म, नल, सीतावुज इत्यादि कहते है । नील कमल विशेपार कश्मीर के उत्तर शौर कहीं कहीं चीन में होता है । पीत कमल अमेरिका, साइवेरिया, उत्तर जर्मनी इत्यादि देशो में मिलता है। यौ०–कमलगट्टा । कमलज । कमलनाल । कमलनयन । पर्या० --अरविंद । उत्पल । सहस्रपत्र । शतपत्रे । कुशेशप । पक्रज पकेसह । तामरस । सरस । सरसोरुह । विपप्रसून। राजीव । पुष्कर । पकज । अ मोह। अभोज । अबुज । सरसिज । श्रीवास । श्रीपूर्ण । इदिराल ।। जल जाते । कोकनद बनाउ इत्यादि । विशेष—जलवाचक सव शब्दों मे ज', 'ज त’ अादि लुग ने से कमलवाची शब्द वनने हैं, जैसे, व रिज, नीरज कज अादि। ३ कमल के प्रकार का एक पासवर्ड जो पेट में दाहिनी | ओर होता है। वलोमा । मुहा०—कमल खिलना=चित्त नदित होना । जैसे,—माज तुम्हारा कमल खिला है। ३ जल । पानी । उ०-हृदपकमल नैनकनल, देखिकै कमेनन, होगी कमलनैनी और हौं कहा कहौं ।--के गव (शब्द॰) । ४. तवा । ५ [ली कमली] एक प्रकार का मृग । ६ सारस । ७ ख का कोया । डेला। ६ क मल के अकि र का पहल काटकर बना हुआ रत्न वड़ । ६ योनि के भीतर कमलाकार अँगूठे के अगले भाग के रार एक गाँठ जिसके कपर एक छेद होता है। यह गर्भाशय का मु या अग्न माग हैं। फुल । घरन । टेणा । महा०—-कमल उलट जाना = वच्चैद नो या गर्भाशय के मुह का अपवर्तित हो जाना जिससे स्त्रियाँ वध्य हो जाती हैं। १० ध धताल का दूसरा भेद जिस में गुरु, लघु, द्रुत, द्रुतविराम,