पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२८१

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कमरख कमरिया कमरख-संज्ञा पुं॰ [स० कर्मरङ्ग, प्रा० कम्मरग] १. मध्यम आकार पैर की जाँच और पिंडली के बीच फंसाता है फिर बाएँ हाथ के एक पेड़ का नाम जो हिंदुस्तान के प्राय सभी प्रातो में के पजे को विपक्ष के वांए हाथ के घुटने के पास भीतर से मिलता है। कुमंरग । कमरग । अहाता और दाहिने हाथ से उसकी दाहिनी मुत्रा निकालकर विशेप–इसकी पत्तियाँ अँगुल डेढ अँगुल चौड़ी, दो अंगुन लंबी या आगे बढाकर हफ्ते के पेंच से उसे चित करता है । और कुछ नुकीली होती हैं तथा सीको में लगती हैं । यह कमरवद'- प्रज्ञा पुं० [फा०] [भाव सच्चा फर्मरबदी] १. लंदा जेठ असाढ़ में फुलता है। फूल झड़े जाने पर लंबे लबे पाँच कपडा जिससे कमर वाँधते हैं। पटुको । २ पेदी । ३ इजार- फाकवाले फल लगते हैं, जो पुस माघ में पकते और पककर बद । नाडा । ४ वह रस्सी या छोरी जो किसी पदार्य के खूब पीले होते हैं। कच्चे फल खट्टे और पक्के खटमिठे होते मध्य भाग के चारों और लपेटी जाये । हैं। इनमें कमाव बहुत होता है, इसीलिये पक्कै फनो में चुना क्रि० प्र०—बाँधना-- लगाना । लगाकर खाते है। फल अधिकतर अचार चटनी आदि के ५ लहासी जिसमें एक जहाज को दूसरे जहाज़ से बाँधते हैं या काम में आता है। कच्चे फल रंगाई के काम में भी आते हैं। जिसमें लगर वांवते हैं। ६ जहाज के किनारे शैवठ से नीचे इससे लोहे के मुचे को रग दूर हो जाता है । वैद्य लोग इसके बाहर की तरफ चारों ओर कॅगनी की तरह निकले हुए तब्वे फल, जड़ और पत्तियों को ग्रौपचे के काम लाते हैं। खाज के जिनमे कुलावे लगे रहते हैं। ये तख्ने बाहर से जहाज की लिये यह अत्यंत उपयोगी माना जाता है । मजबूती के लिये लगाए जाते हैं। ७. जहाज के किनारे बाहरी २ उक्त पेड के फल का नाम । तरफ की रगीन लकीरें या धारियां ।। कमरखी-वि० [हिं० फमरख]कमरख के जैसा । कमरख के समान कमरवः३.-वि० कमर कसे हुए । तैयार । मुस्तैद । कटिबद्ध । फोकदार । निसमें कमरख के ऐसी उमडी हुई फाँक हो । कमरेवदी-संज्ञा [फा०]लडाई की तैयारी । मुस्तैदी । सनद्धता । जैसे, कमरखी गिलास । कमरखी चितम् ।। कमरबंध-संज्ञा पुं॰ [फा० कमर+स० वन्य] कुश्नों का एक पंच। कम रखी- सज्ञा झी० किती गोन चीज के किनारे पर कटी हुई विशेप-जब दोनो पहलवानो को कमर परस्पर वैधी रहती है। कंगूरेदार फांक। थौर दोनों ओर से पूरा जोर लगता रहता है, तृव खिलाडो क्रि० प्र०—-काटना !--काढ़ना ।—बेनानी । विपक्षी को छाती के बल से अपनी और खीचकर दाता हैं ! कमरचंडो -मृज्ञा स्त्री॰ [फा० कमर+सं० चण्डी ]तलवार ।-डि० । । और वहिरी टाँग मारकर चित्त करता है। कमर टूटा--वि० [फा० कमर+हि० टूटना] १. कुञ्ज । कुबडा । २. कमरवल्ला--संज्ञा पु० [फा० कमर + वल्ला छपडे को छाजन में वह | नामदं । सुस्त ।। लकड़ी का पटुका जो तडक के ऊपर प्रौर करो के नीचे कमरतेगा--संज्ञा पुं० [फा० कमर+हि० तेग] कुश्ती का एक पॅच । लगाई जाती है । कभरवस्त्रा। कमरदोल---सज्ञा स्त्री॰ [फा० कमर+दोल] चमड़े को वह कमरवस्ता-वि० [फा० कमरदस्तह]१ तैयार । प्रस्तुत 1 कटिवद्ध । तमा जिससे घोड़े की पीठ पर जीन अादि कसी जाती है । सनद्ध । २ हुयियावद। ३ दे० 'कमरकला' । उ० कमरपट्टी- सज्ञा स्त्री॰ [फा० फमर + हिं० पट्टी] एक पतली पट्टी जो कमरयम्ता हिम्मत का भारी किया । अटल कस्द की हत अंगरखे, सलके आदि के घेरे मे छाती के नीचे और कमर के मतारी किया ।—दक्खिनी॰, पृ॰ १४७ । पर चारों ओर लगाई जाती है । कमरपेटा चश पु० [फा० कमर+हि० पेटा] १. मालवम की एक - कमरा–मज्ञा पु० [लै ० कॅमेर] १ कोठरी । २ फोटोगफी का एक औजार जो संदूक के ऐसा होता है और मुह पर लेंस या कसरत । प्रतिबिंब उतारने का गोल शीशा लगा रहता है। विशेष---यह दो प्रकार की होती है। एक मै तो बेंत कमर विशेप--इस संदपा को झाबग्रकतानसर फैला या मकर ने में लपेटते और उसके छोर को दोनो अँगूठ को तानकर ऐसा खींचते हैं कि ऐडो चूतड़ के पास लग जाती है और कसरत करनेवाला अपनी घड नीचे झुकाकर हाय छोडता हुआ झोका खाता है। दूसरी में पहले मालधभ पर सीधी पकड़ से चदते हैं। फिर जब पुर्वकार्य नीचा होता है, तब कतरत करने वाला एक तरफ की टांग से मालभ को लपेटता और खुव दवाती है तथा रियारी को पकड़े करता हुआ बराबर रद्द देता है ।। यो०-~~-फमर लपेटे की उलटी = मालतर्भ की एक कसरत । विशेप---इसमें पहले कमरलपेदा वाँधकर अगली घड़ हाथ समेत : पीठ पर उलटा लटकाता और दूसरी मोर निकालकर बाँएँ