पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२८०

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कृमनैती ७६४ कमरकोठा है ।—पद्माकर (शब्द०) । (ख) नई कमनत नई ये कमान नए (२) दे० 'कमर कसना' । उ०--खैरवाही कर उसकी नए बान नई नई चोटें ।---(शब्द॰) । &ारी पर कमर वाँधी है ।--प्रेमघन०, भा॰ २, पृ॰ ३५१ । कमनैती-सज्ञा स्त्री० [फा० कमान + हि० ऐती (प्रत्य॰)] तीर चलाने कमर बैठ जना = दे० 'कमर टूटन' । कमर सीधी करना= की विद्या । तीरदोजीं । धनुर्विद्या । उ०—(क) तिय कत ओठंगकर विश्राम करना । लेटकर थकावट मिटाना । कमनीती पठी, विन जिह भौंह कमान । चित चल वेझे चुकवि २ कुश्ती का एक पैच जो कमर या कूल्हे से किया जाता है। नहि, बक विलोकनि वान' ।- विहारी (शब्द॰) । (ख) क्रि० प्र०—करना । निरखत वन घनश्य। म कहि, मेंटन उठति जु बाम । विकल बीच मुहा०—-फमर की देंगडी = कुश्ती का एक पॅच । ही करते जनु, फरि कमनैती काम।- पद्माकर (शब्द॰) । विशेष--जब शत्र पीठ पर रहता है और उसका बायाँ हाय कमर कमबख्त–वि० [फा० कमबख्त] भाग्यहीन । अभागा । वदनसीब । पर होता है, तब खिलाडी अपना 'मी वायाँ हाय उसकी वगल उ०—किसी तरह यह कमबख्त हाथ अाता तो यौर राजपूत मे से उपर चढ़ा कर कमर पर ले जाता है मौर वाई टुंगडी खुद चखुद पस्त हो जाते |--भारतेंदु ग्र०, मा० १, १० ५२१ । मारते हुए चूतड से उठाकर उसे सामने गिराता है। कमबख्ती-सज्ञा स्त्री॰ [फा० कमबख ती] बदनसीवी । दुर्भाग्य । ३ किसी लवी वस्तु के बीच का वह भाग जो पतना या घेता अभाग्य । हुआ हो । जैसे--कोल्हू को कमर = कोल्हू का गडारीदारी क्रि० प्र०—अनि ।। मध्य भाग जिसपर कनेठ शोर भुजेला घूमते हैं । ४ मुहा०-- कमबख्ती का मारा= दुर्भाग्यग्रस्त [को०] । अँगरखे या सलूके ग्रादि का वह भाग जो कमर पर पड़ता कुमाव-वि० [फा०] जो कम मिने । दुष्प्राप्य । दुर्लभ । है । लपेट ।। कमरग-सज्ञा पु० [हिं० फमरण] दे० 'कमरख' । यौ०-कमरपट्टी। कमरद-वि॰ [फा० फम + हि० रिध या रव] कम उदाला। कच्चा ) कमर--सा पुं० [अ० फमर] चाँद । चद्र । चद्रमा । उ०-- । जो ठीक से सीझा न हो । ल्खा। मोदी । उ०—सहज सून्य, वैठे जो शाम से तेरे दर पर सहर हुई। अफसोस प्रय चिता नाम अावरण, वरण, त्रिकुटी, वासा विबेक धर, अजपा कमर कि न मुतलक पवर हुई ।-भारतेंदु अ०, भा० २. द्वार, निहुकाम पैसार, सतोप निसार, कमरद अहार, अगम पृ० ८५५।। व्यौहार। इन चित मारग जीव अनुसरे तो स्वरूप युक्त सोमवे। कमरकश संज्ञा पुं० [फा०] बहादुर । वीर पुरुष । -गोरख०, पृ० २३४ । कमरकस-सज्ञा पुं० [हिं० फमर+फा० कश] पलसि का गोद । कमर - सच्चा स्त्री॰ [फा०] १ शरीर के मध्य भाग जो पेट और पीठ ढाक को गोद । चुनियो गोद । के नीचे पेड़ और चूतर के ऊपर होता है। शरीर के बीच विशेप-यह गोद पलास के पेड़ से अापसे आप भी निकलता का घेरा जो पेट और पीठ के नीचे पडता है। कटि । है और छीलकर भी निकाला जाता है । इसके लाल लाल यौ०--कमरकस । कमरदोग्राल । कमरवव । फमरवस्ता । चमकीले टुकडे बाजारों में विकते हैं जो स्वाद में कसैले होते मुहा०—-कमर करना=(१) घोड़ो का इस प्रकार कमर उछलनी हैं। यह गोद पुष्टई की दवाओं में पता है । वैद्यक में इसे कि सवार का मासन उखड़ जाय । (२) कबूतर का कलवाजी मलरोधक तथा सग्रहणी अौर खाँसी को दूर करनेवाला माना करना। कमर कसना= (१) किसी काम को करने जाता है । के लिये तैयार होना । उद्यत होना। उतारू होना । तत्पर कमरकस -सा पुं० [फा० कमर+हि कसना] १ करधनी । होना । कटिवद्ध होना । (२) चलने को तैयारी करना । | २ पेटी कमरबद । ३ फेटा ।। गमनोद्यत होना । (३) किसी काम को करने की दृढ प्रतिज्ञा कमरकसाई-सज्ञा स्त्री॰ [फा० कमर - हिं० फसना] वह रुपया पैसा करना । संकल्प करना। इरादा करना । उ०—दुसरा उसी जो सिपाही लोग अगले समय में अपने असामियो को पेशवे को अश्लील मानकर वाद केरने के लिये कमर कस लेता है। पाखाने की छुट्टी देने के बदले में वसूल करते थे । -रस क (विशेष), पृ० ४ । फमर खोलना=(१) कमरवद कमरकोज–वि० [फा० फमर झ० कौज = पक्रता] कुबड़ा। कमर उतारना । पटका खोलना । (२) विश्राम करना । दम लेना। | टूटा । कुन्ज । सुरताना । ठहरना । (२) किसी काम को करने का इरादा कमरकोट- संज्ञा पुं० [फा० कमर + हि० कोट] १ कमर भर छोड़ देना । संकल्प छोडना । (४) किसी उद्यम से मन हटाना । या मोर ऊंची दीवार जो प्राय किसी और नगरो की किसी उद्योग का ध्यान छोड देना । निश्चित वैठना। (५) चारदीवारियो (परकोटे या शहरपनाह) के ऊपर होती है। हिम्मत हारना । हतोत्साह होना । कमर टूटना = अाशा टूटना। और जिसमे करे अौर खेद होते हैं । २ रक्षा के लिये घेरी निराश होना । उत्साह का न रहना । जैसे,—जब से उनकी हुई दीवार ।। लड का भरा है, तब से उसकी कमर टूट गई । कमर तो ३ना = कमरकोटा --सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'कमरकोट' । हताश करना। निराश करना। कमर बाँधना=(१) कमर कमरकोठा--संज्ञा पुं० [फा० फमर + हि० कोठा] कोठे की वह कई में पट्टा या दुपट्टा बाँधना । कमरवद बोधना। पेटी लगाना । यी धरन जो दीवार के बाहर निकली हो ।