पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२७८

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कर्म ७६२ कमची कमगरी-सज्ञा पुं० [फा० फेमनगर] १ कमान बनाने का पेशा या कम से कम एक र यह हो तो प्राइए । ( मुटाव के | इनर । २ दृड्दी वैठाने का काम । ३ मुमौवरी ।। म तो' प्रायः ग्रaf है ।) कार्यकुशलता [को०)। | २ बुरा । जैसे,--कमपरत । कामप्रति । कृमचा-- सज्ञा पुं० [फा० कमनचह] बढ़ई का कमाने की तरह का फम----fit० f० प्राय नई । ३तुर्था नहीं । न--(२) ५ अ एका टेढ़ा औजार जिसमें वैधी रस्सी को परम में लगेट र उमे। कमें ग्राते हैं। (i) 4 या 'म मिते ३ ।। घुमाते हैं । कुम --- fF• fird० किमि) से । 'यदर । 39---ध-rr] कम कमडल-सज्ञा पुं॰ [सं० फमण्डलु] ६० 'कमलु' । उ० --ब्रह्म में इन | छः दामि ?-वॉ० रन, पृ॰ ६० । मुडन, भव खर्धन सुर सबसे ।-मारतेंदु ग्र०, मा० १, फम प्रक्न--० [अ०] वर [६ । नाम-६ । न दाना (मे] । | पृ० २८२ ।। फम अमल १० [फा० फम + प० प्रस्त] वरकर । दोगन । कमडली'.--वि० [हिं० फम इल+ई (प्रत्य॰)] १ फगइलु रन- कमउम्र---[फा० फम + १० उन्नपपाय 1 7 प्रा6 || [] वाला । साधु । वैरागी । २ पावडी । प्राइवरी । 8ोटो उर का । कमडली.-सी पुं० ब्रह्मा । उ०—मुख तेज सहस दत्त मती बुधि । | मकर-- स] j० [H० कर्म गर] १. फाकत। २ ५६ । काम दस सस कमडी। नृप चहू और सोहित भी मुड़ती को। है वाला व्यक्ति । उ०—ह कमर पर कौर मइली।-गोपाल (शब्द॰) । येणियो न ई -मान०, पृ० २।३ नु¥ार । कमडल- सा पुं० [सं०] १ सन्यासियों का जलपाने जो धातु, कमलम--विः | मु० कम+कतना ] कान में इनेबाना । मिट्टी, तुमड़ी, दरियाई नारियल आदि का होता है। २. काहिल । नुक्त 1 कामचोर । उ०—जिन देश के इस मनुष्य पाकर या पक्कड़ का पेउ । उ० –कमडलु घोटी चामर त'। सावधान र उद्योगों होते हैं, उन की उन्नति होनी जाती है। अर्धा पूला तिलपती मा जम ग्राटहेर ---पुं०, पृ० १२ । प्रौर जिन देश में प्रावधान र कफ विप होत हैं, कमडलुतरु--सज्ञा पुं॰ [स० कमण्डलुत] पाकर या पक३ का वा । उसकी अवनति होती जाती है। परीक्षगुरु (३५०) । वह वृक्ष जिसकी लकड़ी से कम इलु बनाया जाता है (०} ।। फेमकीमत----० [फा० फन + १० फोनत] कम दाम का । भोई कमडलुधर--सी पुं० [सं० फमण्डलुपर] शिव । महादे।। मुल्प कर । मम्ता [२] । शकर (को॰) । कमर्च-० [फा० कम+एवं] किफायतसार । प्रपश्य [ने । कुमुद -सज्ञा पु० [सं० फेबग्घ] बिना सिर का घड़। कबध । महा०—rमचं वाल; नशा = सस्ती पोर उपा। उ०—(क) शीश सिख साँई लखें, भल बोका असवार । क मेद । कमखाव--सा मुं० [फा० फमस्याय] एक प्रकार का मोटा मोर करा किलकिया, केता किया शुमार ।-कीर (शब्द॰) । गफ रेशमी कपड़े। (ख) जब लग घर पर सौस है, सूर फहावे योग । माया विशेप--इसपर होनापलू के पेल बुटे बने होते हैं। यह एक टूटे धर लरे, कमैद कहावं सोप –फवीर (शब्द०) । र योरुया दोनों तरह का होता है । इस गाने चार नावं कमद-संज्ञा स्त्री॰ [फा०] १ रेशम, सूत या चमड़े की फदेदार चार गने का होता है पर बड़े दामों पर बिकता है । यह कान रस्सी जिसे फेंककर जंगली पशु अादि फँसाएँ जाते है । लडाई में चुना गाती है। में इससे शत्रु भी वधेि और बीचे जाते थे । फद। पाश । कमखुराक-वि॰ [फा० कम +पूराको स्वल्पाहारी। मिताहारी । २ फदेदार रस्सी जिसे फेंककर चोर, डाकू आदि ऊँचे मकानो। | फर्म पानेवाला । पर चढ़ते हैं। फदा । क्रि० प्र०—डालना ।-पड़ना -फेंकना 1-लगाना । फमखोरा-सा पुं० [फा० फोर चौपायों के मुंह की एक रोम जिसमें वे gाना नहीं पा सकते ।। कमध--सज्ञा पुं० १. दे० 'कवध'। २ कलह । लडाई । झगडा । ३. ७ राठौर । उ०—कुल महिमा करणे फपण बुध बल मख्वाब'--सय पुं० [फा० फममाव] दे० 'कमया३' । उ० -- पीढ़ी वध । सारा सूर जवासियों कुल रखवाल केमध ।—रा० | (क) हीरा मोती पॅसते ४ मते, जरी मोर कमराव ।-हिम०, रू०, पृ० १०। । पृ० ५४ । (ख) बनारस के कमवावे वगैरे अब तक सब क्रि० प्र०–मचना। --भचाना। देश में प्रसिद्ध है-श्रीनिवास ग्र० (निये०) पृ० १२ । कम--वि० [फा०] १. थोडा । न्यून । तनिक । अल्प । उ—क्या कमत्वव-वि० [फा०] कम सोनेवाला । योडा सोनेवाला (को०] । केज अदाइयाँ हैं क्या कम निगायिौं है ।--कविता क०, मा० कमगो--वि० [फा० कम +] मितमापी । कम बोलनेवाला । ४, पृ० ४३ ।। कमचा-सा पुं० [तु० कमच] दे० 'कमची' । यौ०-~-कमल = अल्पबुद्धि का । कमजोर । कमजात । कमचा-सा पुं० [फा० कमानच.] ८० 'कम चा' । कमसिन = थोडी अवस्या का । कमची--सज्ञा स्त्री० [नु०. सं० कञ्चिका १ बस, झाऊ अादि की मुहा०—कम से कम = अधिक नही तो इतना अवश्य । जैसे,- पतली लचीली दवुनी जिससे टोकरी बनाई जाती है। वोस