पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२७७

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कमगर कजकुशी ७६१ मुहा०—ह फज़ होना=हत गुम होना । कब्ज़ि पत--सहा जी० [अ० कब्जियत पायवान का साफ न अाना । २ दम्त का साफ न होना । मनविरोध । ३ मुसनमाने राज्य के मलावरोध । समय का एक नियम जिसके अनुसार कोई फौजी अफसर फौज कव्जुलवसूल-सा पुं० [अ०] वह कागज जिसपर तनवाह पानेवाले की सुनवाई के लिये किसी जमींदार में सरकारी लगान वुमूल की भरपाई लिखी हुई हो। करता वा । कव्र--सज्ञा स्त्री० [अ० क्त्र] १ वई गट्टा जिनमें मुसलमान, ईसाई, विशेप- यह दो प्रकार का होता या (१) कलाम और (२) यहूदी अादि अपने मुद्दे नाडते हैं 1 २ वह चबूतरा जो ऐसे अमानी या वमूली । कब्ज नाकलामी वह कहलाता था। गड्ढे के ऊपर बनाया जाता है। निक अनुसार फौजी अफचर को तनवाहू का नियमित यौ---कब्रिस्तान । पया पहने ही देना पड़ता था, चाहे उसे उस जमींदार से महा०-अपनी कब्र खोदना=अपने विनाश का कार्य करना । कत्र उतना वसूल हो या न हो। कब्ज अमानी या बसूनी बहु का मुह झांकना या झक अना= मरते मरते वचन । उ०--- फलोता था जिसके अनुसार वह फौजी अफसर उतना रुपया वह कई वार कद्र का मुंह झाँक चुका है। कंत्र में पैर या वनुन करता या जितना वह कर सके । इसके लिये उनी फौजी पाँव लटकाना= मरने को होना । मरने के करीब होना । अफसर को ५) लँडा कमीशन भी मिलता या। इस दस्तुर बहुत बुड्ढा होना ! कत्र में तीन दिन भारी = मुसमानों का को अकबर ने वद कर दिया था, परतु अवध के नवाबों ने इसे ख़याल है कि कत्र में मुर्दे का तीन दिन तक हिसाब किताब फिर जारी किया था। होता है । कत्र में साथ ले जाना= मरते दम तक या मरकर ८. वह शाही हुक्मनामा जिसके अनुसार वह फौजी अफमर उक्त भी न भूलना । कत्र ते उठकर ना= मरते मरते बचना । कृपया वसूल करता था। पुनर्जीवन या नवजीवन । यौ०-कन्जदार । कब्रिस्तान-सुज्ञा पुं० [अ० फव्र+फा० स्तान] वह म्यान जहाँ बहुत | सी कर्वे हो। वह स्थान जहाँ मुर्दे गाई जाते है। कञ्जकुच्चा--वि० [अ० कब्ज -+फा फुशा] रेचक । कञ्जनिवारक । कुल–अय्य० [अ० फल पूर्व । पहल । पैत्र । कव्जा-सा पु० [सं० जह.] १ मुठ । दस्ता । जैसे-तलवार । यो०-कदल अज वक्त = समय से पूर्व ।। | का कञ्जु ! दराज का कब्जा ।। कभी-क्रि० वि० [हिं० कध+हो] १ किसी समय । किसी घडीं । मुहा०--कन्ने पर हाय दालना=(१) तनवीर खींचने के लिये । किसी अवसर पर । जैसे,—(क) तुम वहाँ कभी गए हो ? मुठ पर हाथ १ जाना। (२) दूसरे की तलवार की मूठ को (ब) हम वहाँ कभी नहीं गए हैं। पकड लेना और उसे तलवार ने निकालने देना । दूसरे को विशेष-----‘कव' का प्रयोग उस स्थान पर होता है जहाँ क्रिया तलवार प माहस में पकड़ना । करने पर हाथ रखना= निश्चित होती है। जैसे,—तुम वहाँ कब गए थे ? 'कमी' किसी के मारने के लिये तलवार की मूठ पकड़ना । तुलवार का प्रयोग उस स्थान पर होता है जहाँ क्रिया और समय सुचने पर उनलि होना । दोनों अनिश्चित हो । जैसे तुम बहाँ कभी गए हो ? २ लोहे या पोतन की चद्दर के बने हुए दो चौखटे टुकडे जो महा०-~-कभी का=बहुत देर से । कभी कभी कुछ काल के पकड़ में जुड़े रहते हैं और सलाई पर घूम सकते हैं। इनसे अतर पर बहुत कम । कनों के मार= कभी कभी कभी न दो पन या टूकड़े इस प्रकार जोड़े जाते हैं जिसमें वे घूम कभी = किसी न किसी समय ! अगे चलकर अबश्य किसी सकें। किवाडौं और सदूको अादि मे ये जड़े जाते हैं। नर अवसर परे । जैसे,--कभी न कभी तुम अवश्य हमसे माँगने मादगी ! पकड ! ३ दखल । अधिकार । बश । इब्तियार । आप्रोगे । कभी कुछ कभी कुछ = एक दुग पर नही । (इस यौ6--जादार । । वाक्य का व्याकरण सवध दूसरे वाक्य के साथ नहीं रहता, क्रि० प्र०-- करना |--जमन 1--पाना ।-मिलना ।—होना । जैसे, उनका कुछ ठीक नहीं, कभी कुछ कभी कुछ) । मुहा०--ज्ञा उठना = अधिकार का जाता रहना ।। कभुवक+--क्रि० वि० [हिं० कबहू क] दे० 'कबहु'क' । उ०--कमुवक | ८ दडे । भुजदड । ढांड । चाबू। मुश्क । ५ कुश्ती का एक पेंच। तेरा बाप है कभुवक तेरा पूत !- सहजो०, पृ० २३। विशेष—यदि विपक्षी कन। पकडता है तो खिलाड़ी दूसरे हाथै कमू--क्रि० वि० [हिं० कभी] दे० 'कमी' । उ०—करतु पारस ३ भयर चोट करता है अथवा अपने खानी इथि से उसकी जलकेनि कमू मीनहि हि लावतु |--मुजान०, पृ० ७ । कनाई पर झटका देता है और अपना हाथ खींच लेता है। कमगर–अंधा at: इते ‘गट्टा' या 'पहुँचा' भी कहते हैं। सोज । २ हडिडयो को बैठानेवाला। हाथ, पाद या किसी जोड कब्जदार'---सधा पु० [अ० कब्जह,+फा० दार (प्रत्य॰)] [ भाव। की उखड़ी हुई हड्डी को मतकर या दवा से असली जगई सुद्धा कब्जदारी] १. वह अधिकार जिल्ला कब्जा हो । २. पर ले जानेवाला । ३. चितेरा । मुनौवर । चित्रकार । दवीनार असामी (अवध) । कम गर–वि० किसी फन का उस्ताद। दो । कुश। निपुण । जादार-वि० जिसमे कब्जा लगा हो । अगर ।