पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२७५

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कॉइदै ७६६ कविता कवाद-सुङ्गा पु० [अ० कवायद दे० 'कवायद' । उ०---काहि कबायली-मुज्ञा पु० [अ० कवाइली] १. कवीलो या फिरको में कवाद कहत हैं बाँधत किमि जल स्रोत –भारतेंदु ग्र०, रहने वाले लोग । किसी कबीले का ब्यक्ति । भा॰ २, पृ० ७३५ । केवार'--संज्ञा पुं० [हिं० कारोबार या कवाड] १. व्यापार। रोजकवाड-सज्ञा पुं॰ [न० कर्पट प्रा० कप्पट = चिथड] [संज्ञा कवाडी] गरि । उद्यम । व्यवसाय । लेनदेन । उ०---(क) एहि परि| १ रद्दी चीज । काम में न आनेवाली वस्तु । अगड वगइ । पालउँ सृव परिवारू। नहि जानउँ कछु अउर कबारू[---तुलसी यौ॰—काठ कबाड़ । कूड़ा फेवाड़ = अगुड़ खगड चीज ! टूटी फूटी (शब्द॰) । (ख) रातिन दिए वसन मनि भूपण राजा सहन वस्तु । तुच्छ वस्तु । भडार । मागध सूत भाटे नट याचक जहँ तह करहि । २ अड बड़े काम । व्यर्य का व्यापार। तुच्छ व्यवसाय । कवार —तुलसी (शब्द॰) । २ दे० 'कवाद'। कबाड़खाना --सज्ञा पु० [हिं० कवाड़ +फा० खानह] वह स्थान जहाँ कवारसज्ञा पुं॰ [देश॰] एक छोटा पेड़ या झाड़ी । बहुत सी टूटी फूटी या अव्यवस्थित रूप से वस्तुए’ रखी गई कवारना- क्रि० स० [दश०] उखाड़ना । उत्पाटन करना । हो कि०] । कवाल-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] खजूर का रेशा जिसे वटकर रस्सा केवाडा--संझ पु० [हिं० कवाड] व्ययं की बात ! झझट । बखेडा । बनाते हैं। कवाडिया'-- संज्ञा पुं० [हिं० कबाड़] १ टूटी फूटी, सडो गली चीज कवाला सच्चा पु” [अ० वा. १९ बेचने वाला अादमी 1 अगड खगड बेचनेवाला मनुप्य । तुच्छ जायदाद एक के अधिकार से दूसरे के अधिकार में चली जाये, व्यवसाय करनेवाला पुरुष । वयनामा, दानपत्र इत्यादि । यौ ०-कवालानवी । कवाला नीलाम् । काट कवाला = वैनामा कवाडिया-वि० क्षुद्र । नाच । मियादी । कवाला लिखना = अधिकार दे देना। कवालेदार कवाड़ों--सज्ञा पु०, वि० [हिं० कवाड] [लो० कवाड़िन ] दे० बापदाद का अधिकारपत्रधारी । ‘कवाहिया' । महा०--कवाला लिखाना या कवाला लेना= किसी जायदाद पर कवाव--सृज्ञा पुं० [अ०] सीबों पर भूना हुआ मास । कब्जा करना । अधिकार में लाना 1 मालिक बनना । जैसे,— दिशेप-खूप बारीक कटे या कुटे हुए माम को वैमन में मिलाकर क्या तुमने उस घर का कवाला लिखा लिया है ? नमक और मसाले देकर गोलियाँ बनाते हैं। इन गोलियो कुवालानवीस—सुज्ञा पु०म० कवोलह +फा० नवीस कबाब लिखने को लोहे की सोख मे गोदकर घी का पुट देकर कोयले की | का काम करनेवाला मुहरिर । प्रचि पर भूनते हैं। कवालानी मि-सज्ञा पुं० [फा० कवाला+पूर्त० लीलाम] नीलाम में क्रि० प्र०—करना ।---भुनना ।—लगना ।—लगाना ।—होना । विको हुई जायदाद की वह सनद जो नीलाम करनेवाला अपनी मुहा०—कवाव करना=जलाना । दुःख देना 1 कष्ट पहुचाना । अोर से उसके खरीदनेवाले को दे । नीलाम का सटफिकेट । कवाव लगना = कबवे पकना । कवाव होना=(१) मुनना। कवाहट-सज्ञा स्त्री० [अ० कवाहतु] दे० 'कवाहत' ।। जलना । (२) क्रोध से जनना। जैसे,—तुम्हारी बात सुनकर वाहत--सज्ञा स्त्री० [अ०] १ बुराई । खरावी । २. मुश्किल । तो देह कवाव हो जाती है । दिक्कत । तद्दुद । अडचन । झझट । बखेडा । उ०-~-हमारे कवावचीनी-संज्ञा स्त्री० [अ० केदावा + हि० चीनी] १. मिर्च को वसूल तो शाह साहवे यह हैं कि निकाह में कोई कवाहत जाति की एक लिपटनेवाली झाडी जो सुमात्रा, जावा आदि। नहीं ।--फिसाना०, भा० ३, पृ० ६१ । टापुओ तथा भारतवर्ष में भी कही कही होती है । क्रि० प्र०—उठाना।—मे डालना ।—में पड़ना ।। विशेप---इसकी पत्तियाँ कुछ कुछ बेर की सी पर नुकीली होती कवि-सज्ञा पुं० [सं० कवि] दे० 'कवि' । उ०—सो को कवि जो हैं और उनकी खडी नसें उमड़ी हुई मालूम होती हैं। इसमे छवि कहि सके ता छन जमुना नीर को ?–भारतेंदु ग्र०, भा० मिर्च के से गोल गोल फल गुच्छो में लगते हैं। ये फल मिर्च २, पृ० ५४४। से कुछ मुलायम और खाने में कहए अौर चरपरे होते हैं। कवि--क्रि० वि० [हिं० कभी] ३० कभी उ०—कवि उतरि कवि इनके खाने के पीछे जीभ बहुत ठडी मालूम होती है । वैद्यक में पच्छिम धावै, सिलमल दीप मनु जाये समावै ।—प्राण०, इसे दीपन, पाचक और रेचक कहा है। | पृ० ४५ । ३ कवावचीन का फल । । कविका–मज्ञा जी० [सं०] लगाम [को॰] । कुवाबी--वि० [अ० कबाव +फा० ई (प्रत्य॰)] १ कवाव बेचने- कवित -सज्ञा पुं० [हिं० कवित्त दे० 'कबित्त' । वाला ! १. कवाव धानेवाला । मासभक्षी । कवित -सच्चा पु०[सु० कवित्व] कवित्व । कविकर्म ! काव्य । यौ--शरावी कवावी = मद्य-मसि-भोजी । कविता' —सा पु०म० अर्वापतृ, कवयिता] कविता करनेवाला ।' कवाय- सवा पु० [अ० कवा] एक ढीला पहनावा । उ०—एक कवि । उ०—-ज्ञानी गुनी चतुर और कबिता, राजा रक नरेश। दोस्त हमहू किया, जेहि गल लाल झवय । सव जग घोडी ---कवीर श०, 'भा० १, पृ० ६ । धोइ मरे, तो भी ग न जाये । कबीर (शब्द॰) । कविता-सधा बी० [सं० कविता] दे॰ 'कविता' ।