पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२७३

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कव ७६७ कफनचोर कफिना-सा पु० [अ० कफलकडी या लोहे की कोनिया जो जहाजों कफन्चौर-सुज्ञा पुं० [अ० कफन +हि० चोर]१. कत्र खोदकर कफन मे अड़े और वेडे शहतीरों को जोड़ने के लिये लगाई जाती है। चुरानेवाला 1 २ भारी चोर | गहरा चोर । ३. दुष्ट । कफी-वि० [सं० कफिन् ] कफ की अधिकता से पीडित । ककी । वेदमाश । कफप्रदान । इलैष्मिक । कफन दफन–सा पु० [अ० कफन+दफ़न]अत्येष्टि । अतिम संस्कार कफी—संज्ञा पुं० हाय (को०)। | (को०)। कफील-सज्ञा पुं० [अ० कफील]जामिन। जिम्मेवार । कफनाना-क्रि० स० [अ० कफ़न से नाम०] गाड़ने या जलाने के क्रि० प्र०—होना । लिये मुर्दे को कफन में लपेटना । कफेदस्त-सज्ञा पुं० [फा० कफदस्त] हथेली (को०)। कफनी-सज्ञा स्त्री० [अ० कफन] वह कपडा जिले मुर्दे के गले मे कफेलु-वि० [सं०] कफप्रधान । कफी । श्ले डिमक । | डालते हैं। के पहनने का एक फोणि-सज्ञा स्त्री० [सं०] कोणी । कोहनी । टिहुनी । कफ़नी -संज्ञा स्त्री० [सं० कर्पट) साधु कफोदर-संज्ञा पुं० [सं०] कफ से उत्पन्न पेट का एक रोग । कपड़ा जो विना सिला होता है और उसके बीच में सिर जाने विशेष—इस रोग में शरीर में सुस्ती, भारीपन और सूजन हो के लिये छेः रहता है। मैखना । जाती है, भोजन में अवि रहती है, खमी अाती है और पेठ कफपा–चा पु० [फा० कफपा] पैर का तलवा । भारी रहता है, मतली मालूम होती है और पेट में गुड़गुडाहट कफन-वि० [सं०] श्लेष्मायुक्त । कृफग्रस्त । कफवाला । रहती है तथा शरीर ठडा रहता है। कफनी-सज्ञा पुं० [हिं० खपेली] एक प्रकार का गेहे जिसे खपली कफ्फ-सुग्न पुं० [सं० फफ] दे॰ 'कफ' उ०--कवीर वैद बुनाइयो, भी कहते हैं । वि० दे० 'खपली' । पकड़ि दिखाई वाहि । वैद न बेदन जानही, कफ्फ करेजे कफविरोधी-सज्ञा पुं॰ [च० कफविरोधिन] काली मिर्च (को०] । माहि !--के० स० स०, पृ० ७६ । कफश-सज्ञा पुं० [फा० कफश] १ जूता । नालदार जूता । कुवंध--संज्ञा पुं० [सं० कवन्ध १ पीपा। कड़ाल । २. वादल । कफवरदार-सज्ञा पुं० [फा० फुफशवरदार] तुच्छ सेवक । जूता मेघ 1 ३ पैट। उदर 1४ जल । ५. विना सिर का घड़ । संवाहक । रु दु । उ०—(क) कूदत कवध के कदव वेब सी करत धावत कफस- ना पुं० [अ० कफन] १ पिजरा। २ कावुक । दरवा । देखावत हैं लाघी राम वान के । तुलसी महेश विधि लोकपाल ३ वदीगृह । कैदखाना ! उ०-- रिहा करता कहीं सैयद हमको देवगण देखते विमान चढे कौतुक मसान से !-—तुलसी मौसिम गुन में। कफस में दम जो घबराता है सर ६ ६ पटकते (शब्द॰) । (अ) अपनों हित रोवरे से जो पै सूझे। तौ जनु हैं !--भारतेंदु ग्र०, मा० २, पृ० ८४७ । ४ बहुत तंगे और तनु पर अछत सीस सुधि क्यो कवंध ज्यो जुझं ।—तुलसी संकुचित जगह जहाँ वायु और प्रकाश न पहुचता हो । ५ शरीर (शब्द॰) । ६. एक दानव जो देवी का पुत्र या । उ०— या कायपिंजर (ला०) । अावत पध कबघ निपाता। तेहि सच कही सोय की बाता।-- कफा-सा पु० [फा० कफा] रज। पीडा । क्लेश । तुलसी (शब्द०)। कफातिसार–सुज्ञा पुं० [२] एक प्रकार का अतिसार । विशेष—इसका मुहै इसके पेट में था। कहते हैं, इद्र ने एक वारी' विशेप-इसमें रोगी का मल सफेद, गाढा, चिकना कफमिश्रित उसे वज्र से मारा था और इसके सिर और पैर इसके पेट में | एव दुर्गंधयुक्त होता है। घुस गए थे । इसे पूर्वजन्म का नाम विश्वावसु गंधर्व लिखा है। कफावद-सज्ञा पुं॰ [फा कफा=गर्दन का पिछला भाग + हि० वद] रामचंद्र जी से और इससे दडकारण्य में युद्ध हुआ था। कुश्ती का एक पेंच ।। रामचंद्र जी ने इसके हाथ काटकर इसे जीता ही जमीन में विशेप-इसमें विपक्ष के नीचे आने पर पहलवान दाहिनी तरफ गाड़ दिया था। बैठकर अपना बायाँ हाथ विपक्षी की कमर में डालकर अपने ७. राहुं । ८. एक प्रकार के केतु । दाहिने हाथ और दाहिनी टांग से विपक्षी की गर्दन दबाता विशेप-ये सख्या मे ६६ हैं और प्रकृति में कबंध से बतलाए है और बाएँ हाथ से उसका जाघिय पकलकर उसे उलटकर गए हैं। ये काल के पुत्र माने गए हैं और इनके उदय का फल चित कर देता है। | दारुण वतलाया गया है । कफारि-स्था पु० [सं०] सोठ (को॰] । ६ एक गंधर्व का नाम । १० एक मुनि का नाम । कफालत-सी पुं० [अ० कफालत] जिम्मेदारी । जमानत ! कबधी-वि० [सं० कवधिन्] जल वाला (बादल) [को०] । यौ॰—फलितनामा= जमानतुनामा । कुवधी–सञ्चा पु० १ मरुत । २ कात्यायन ऋयि (को०] । कफाशय—सा पुं० [सं०] वह स्थान जहाँ पर कफ रहता है। विशेप वैद्यकशास्त्रानुसार ये स्थान पाँच हैं-आमाशय, हृदय, कब-क्रि० वि० [सं० कदा, हि० कर१ किस समय ? किस वक्त ? | जैसे, तुम कब घर जाओगे ? कंठ, शिर और सधियाँ । विशेष—इस क्रि० वि० को प्रयोग प्रश्न में होता है।