पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२६९

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कपासी ७८३ ।, कपिल विशेप--यह र हल्दी, टेमू और अमहर के संयोग से बनता कपिनाशन--संज्ञा पु० [१०] एक माद, पेय (को) । । | हैं। हरसिंगार से भी यह रग बनाया जाता है। कपिपति-संज्ञा पुं० [सं०] १ सुग्रीव । २. हनुमान ! ३०–कपिति कपासी--संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] १ मोटिया वादाम । ' रीय निसाचर राजा) अगदादि जे कोस समाज |--मानस्। विशेष—इसका पेड़ मझोले डीन का होता है। इसकी लकडी कपिप्रभा-संज्ञा स्त्री० [सं०] केवच । कॉछ । । । । । गुलाबी रंग की होती है जिससे कुरसी, मेज अादि बनते कपिप्रम--सज्ञा पुं० [सं०] १ मि । २ सुग्रीव (को०)। ।। ।। हैं । इसका फल खाया जाता है और मोटिया वादाम के । कपिप्रिय--सच्चा पु० [सं०] जैय ।। . . !... " नाम से प्रसिद्ध है। कपिरय-ज्ञा पुं० [सं०] १. श्रीरामचंद्र जी । २. अजुन । २ एक प्रकार का झाड या छोटा वृक्ष । कपिल'--वि० [सं०] भूरा , मटमैला । तुमडा, रग क। २. विशेप--यह प्राय सारे भारत, मलयद्वीप, जावा और अस्ट्रि निया में पाया जाता है । यह गरमी अौर बरसात में फूलता अरि कपिल--संज्ञा पु० १, अग्नि । २ कुता । ३ चहा । ४. शिलाजतु । जाड़े में फैलता है। इसी का फल मरोड़फली कहलाता है। शिलाजीत । ५ महादेव।। ६ सूर्य,1,७ विष्णु । ८. एक जो पेट के मरोह दूर करने के ये बहुत उपयोगी मीना प्रकार का तीसम । वरना । ९ एक मुनि जी साव्यशास्त्र के जाता हैं। श्रादिप्रवर्तक माने जाते हैं। इनका उल्लेख ऋग्वेद में है। कपाहण- संज्ञा पु[स० कार्पापण] सोने, चाँदी या तांबे का सिक्का । उ०-~-प्रादिदेव - प्रभु दीनदयाल ! ज़ठर घरेङ जेहि ३०-दम या कपाहणं पास हों तो निकालो ।--वै० न०, कपिल कृपाला--मानस, १०, पुराण के अनुसार एक पृ० । मुनि जिन्होने सगर के पुत्रों को भस्म किया था । ११. कपिजल'--सज्ञा पुं० [सं० कपिजल] १ चातक । पपीहा । २. गौरा कुश द्वीप के एक वर्ष का नाम । कपिल देश --बृहत् पक्षी । ३ भरदुल । भरुही । ४ तीतर । ५ एक मुनि का पृ० ६५। । नाम । कपिजल-वि० पीला । पीले रग का । हरताली रग का । | कपिलता'-सज्ञा जी [स: कपि + लता] १ केवच । कूछ । २ • | गुजपिप्पी । कपिद-सज्ञा पु० [सं० कपीन्द्र दे० 'कपीद्र' । उ०~-रामकृपा कपिलता-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ भूपन । भटमैलापन । २ लाई वलु पाइ कपिदः । भए पच्छजुत मन गिरि दा--मानस, ३ पीलापन । ४ सफेदी ५३५ । कपि-सज्ञा पु० [सं०] १ वदर । २ हाथी । गज । ३. करंज । कपिलव--सज्ञा पुं० [सं०] १,ललाई। उ०---कपिलत्व या तीक्ष्ण कज़ा। ४ शिलारस नाम की सुगधित पछि । ५ सूर्य । के होने पर यह उपचार होता है कि प्रग्नि माणवक हैं । । ६. एक प्रकार की धूप (को०)। ७, एक ऋषि का नाम (को०)। । -सपूर्णा अभि० ग्र०, पृ० ३३६ । -२ दे० 'कपिलता' । कपिकदुक--सज्ञा पुं० [सु० कपिकन्दुक] खोपडा । कपाल । कपिलद्र म--सज्ञा पुं० [भ०] काक्षी नामक एक वृक्ष जिमकी लकड़ी कपिकच्छ- सुज्ञा स्त्री० [सं०] केवच । करेंच। मर्कटी । वानरी । सुगधित होती है [वै] । छ। कपिलधारा संज्ञा पु० [सं०] १ काशी का एक तीर्थ स्थान । २ गया कपिकच्छरा--सज्ञा स्त्री० [स०] दे॰ 'कृच्छुि ' । का एक तीर्थस्थान । कपिकेतन, कपिकेतु--- सज्ञा पुं० [सं०] अजुन जिनकी ध्वजा पर हनुमान जी थे । कपिलवस्तु-सज्ञा पुं० [सं०] गौतमबुद्ध का जन्मस्थान । यह स्यान कपिकेश-वि० [सं०] भूरे वालोवाला [को०)। नेपाल की तराई में बस्ती जिले में था। कापचूड़-सज्ञा पुं० [सं० कपिचड़] [ब्री० कपिचडा ग्रामड़। [को०1। कपिलस्मृति--सच्चा स्त्री॰ [म०] सांख्यसूत्र [को॰] । कापजघिका-सज्ञा स्त्री० [म० कपिजडि का] चींटी की एक जाति । कपिलाजन-सा पु० [सं० कपिलाञ्जन शिव (को॰) । तैनपिपीलिका को०]। कपिला-वि० स्त्री० [अ०] १ कपिला रग की । भूरे रंग की । मटमेले को पतल-सा पु० सि०] तुरुक नामक गंधद्रव्य । लोवान् । रग की । २ सफेद रग की । जैसे,—कपि वा गाय। ३, जिसके शिलरिस (को०]।। शरीर मे सफेद दाग हो। जिसके शरीर में सफेद फूल पड़े हो। कपित्थ—सा पु० [सं०] १. कैथे का पेड ३. कैथे का फल । उ॰-- जैसे, कपिला कन्या (मनु) । ४ सीधी मादी । भोली भनी । नाय, वली हो कोई कितना, यदि उसके भीतर है पाप । तौ कपिल-सी ची• १ सफेद रग की गाय । उ०—-जिमि कवि गजभूक्त कपित्य तुल्य वह् निप्प्फल होगा अपने ग्राप !-—साकेत, घाने हुरहाई —तुलसी (शब्द॰) । पृ.० ३८०। ३ नृत्य में एक प्रकार का हस्तके जिसमे अंगूठे की विशेप--इस रग की गाय बहुत अच्छी और वीची समझी छोर को तर्जनी को छोर से मिलाते हैं। • जाती है। कपिध्वज-सज्ञा पुं० [सं०] अजुन । उ०—जयति कपिध्वज के २. एक प्रकार की जाँके । ३ एक प्रकार की चोटी । माटो। कृपालु कवि, वेद पुरा विधाता व्यास 1•-साकेत, ५० ३६६ ।। ४. पृडरीक नामक दिग्गज की पत्नी । ५. दक्ष प्रजापति की