पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२६६

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न्याशुल्क कपटी कन्याल्क--सज्ञा पु० [सं०] कन्याधन । कन्याहरण-सज्ञा पुं० [सं०] कन्या को (विवाह के निमित्त) पकड ले जाना या उड़ा ले जाना [को॰] । कुन्यिका- सज्ञा स्त्री० [सं०] कन्या । कुमारी । कन्युप--संज्ञा पुं० [सं०] हाथ की कलाई के नीचे का भाग किये। कन्वास--सूज्ञा पुं० [अ० कैनवस सुत, सन, पट्ट, आदि का वस्त्र जो तेवू, पाल या चित्र बनाने के काम में लिया जाता है। उ०--अपने चित्र के लिये बड़े कन्वास की जरूरत मुझे नही लगी ।—सुनीता (प्र०), पृ० ६ । कन्सरवेंसी--सज्ञा स्त्री॰ [अ॰] सरकारी निरीक्षण या देखरेख । जैसे,--कवरवेंसी इस्पेक्टर। कन्सरवेटर--संज्ञा पुं० [अ० कजरवेटर देखरेख करनेवाला। निरी | क्षक । जैसे,—जगल विभाग का कसूरवेटर ।। कन्सरवेटिव-सज्ञा पुं० [अ० कजरवेटिव] १ वह जो राज्य या प्रशासन प्रणाली में क्रांतिकारी या चरम प्रकार के परिवर्तन की विरोधी हो। वह जो प्रजासत्तात्मक शासनप्रणा का विरोधी हो । टोरी । २ वह जो प्राचीनता का, पुरानी बातो का, पक्षपाती और नवीनता का, नई बातो का, किसी प्रकार के सुधार या परिवर्तन का विरोधी हो । वह जो परपरा से चली आई हुई धार्मिक और सामाजिक सस्थाप्रो और रीति रिवाज का समर्थक और पक्षपाती हो । वह जो कुसस्कार या अदूरदशती से सच्ची उन्नति का विरोधी हो । कन्सरवेटिव-वि० जो देश की नागरिकता और धार्मिक संस्थाओं में क्रांतिकारी परिवर्तन या प्रजासत्ता के प्रवर्तन का विरोधी हो । जो परपरा से चली प्राई हुई सामाजिक या घामक सस्था या रीति रिवाज का समर्थक और पक्षपाती हो । परिवर्तनविमुख । समाजविरोधी । सनातनी । पुराणप्रिय । लकीर का फकीर । जैसे,—वालविवाह जैसी नाशकारी प्रथा का समर्थन उन्हीं लोगों ने किया जो कन्सरवेटिव थे । लकीर के फकीर थे। कन्ह --सज्ञा पुं० [सं० कृष्ण १ श्रीकृष्ण । उ०—ध्यान सुप्रति प्रति कन्ह देव देवाधिदेव वर ।—पृ० रा०, २। ३४० । २ पृथ्वीराज का एक सामत । कन्हड़ी -- मज्ञा स्त्री० [सं० कर्णाटी] दे॰ 'कर्णाटी' । कन्हाई- सज्ञा स्त्री० [सं० कृष्ण, प्रा० कण्ह] श्रीकृष्ण जी । कन्हावर-- सच्चा पुं० [ स्कन्ध+वर ( प्रावरण = दुपट्टा) हिं० फैधावर ] दे॰ 'कंधावर' । कन्हीं - अव्य० [हिं० कने] दे॰ 'कने'। कन्हैया'- सच्चा पुं० [सं० कृष्ण, प्रा० प्] १. श्रीकृष्ण । २, अत्यत प्यारा अादमी । प्रिय व्यक्ति । उ० –अछे रहो राजराज राजन के महाराज, कच्छ कुल कलश हमारे तो कन्हैया हो । -पद्माकर (शब्द०)। ३ बहुत सुदर लडकी । वाँका आदमी। ४ एक पहाड़ी पेड़ जो पूर्वी हिमालय पर आठ हजार फुट की ऊँचाई पर होता है। विशेष—इसकी लकड़ी मजबूत होती है और उसमे हरी या | ला 4 पारियों पड़ी रहती हैं। आसाम में इसकी लकडी की किश्तियो वनाई जाती हैं। इसके चाय के सदूकचे भी बनते हैं । कोई कोई इसे इमारत के काम में भी लाते हैं । कन्हैया' --सज्ञा पुं० [सं० स्कन्ध कथ] दे॰ 'कंधा' । उ०— तहे हम कन्हैया कुदिक गज की कन्हैया पर पथौ । —हिम्मत०, पृ० ३५। कन्हैर-- सज्ञा पुं० [हिं०]दे० 'कनेर' । उ०—-चपकू चमेली और केतकी कन्हैर बुही, तामे वन साजिकै उमग सरसायो है ।—पोद्दार अभि० ग्र०, पृ० ४१३ । कप'--सज्ञा पुं० [अ०] प्याला। कप-सज्ञा पुं० [सं०] १. वरुण । २ दैत्यों की एक जाति [वै] } कप -सज्ञा पुं॰ [सं० कपि] दे० 'कपि' । उ॰—हेर कप भाप अणलार हरखे ।--रघु रू०, पृ० २१ । । कपट- सज्ञा पुं० [सं०] [वि॰ कपटी] १ अभिप्राय साधन के लिये हृदय की बात को छिपाने की वृत्ति। छल। दम । धोखा । उ०—(क) जो जिय होत ने काट कुचाली। केहि सुहात रथ, वाजि, गजाली ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) सती कपट जानेउ सुरस्वामी । सबदर सी सव अतरजामी । —मानस, १५३ ।। क्रि० प्र०—करना ।—रखना। यौ० - फण्उचक= चिडिया फंसाने के लिये बिखेरा दाना । फंसान की युक्ति । कपटतापस = वनावटी या वना हुप्रा साधु । पटनाटक = ठगना । घोखेबाजी । व पट व्यवहार करना । कपट प्रबध= धोखा देने की योजना । कपटवेश = वनावटी भेस । फप:लेख्य = द्वियर्थक या जाली दस्तावेज । २ दुराव । छिपाव । क्रि० प्र०—करना ।—रखना । कपटना क्रि० स० [सं० कल्पन, वलुप्त अथवा हि० कपट से नाम घातु] १ काटकर अलग करना। काटना । छोएन । खोइन । उ०—(क) कपट कपट डायो निपट के और न सो मेटी पहचान मन मैं हूं'पहिचान्यो है। जीत्यो रति रण,मथ्यो मनमथ हू को मन केशोराइ कौन हैं प रोप उर अान्यो है । केशव (शब्द०) । (ख) पापी मुख पीरो करे, दासन की पीर हरे, दुख भव हेत कोटि भानु सी दपष्ट है । कपट कपट डार रे मन गैबार झट, देख नव नट कृष्ण प्यारे को सुपद है।---गोपाल (शब्द०)। २ काटकर अलग निकालना । धीरे से निकाले लेना। किसी वस्तु काकुछ भाग निकालकर उसे कम करना। जैसे, -जौ रुपए मुझे मिले थे, तुमने तो उनमें से ५) कपट लिए । कपटा-सज्ञा पुं० [हिं० कपटना [जी० कपटी] एक प्रकार का कीडा जो घान के पौधे में लगता है और उसे काट डालता है। कपटिक-वि० [सं०] कपड़ी । घोखेबाज । बदमाश । दुष्ट [] कपटी-वि० [स० कपटिन] कपट करनेवाला । छी। धोखेबाज । धूर्त । दगाबाज । उ०- (क) कपटी कुटिल नाथ मोहि चिन्हा --तुलसी (शब्द॰) । (ख) सेवक शेठ नृप कृपिन कुनारी । कपटी मित्र शूल सम चारी ।—तुलसी (शब्द॰) । कपटी.. सशा स्त्री० [हिं० कपटना] १. धान की फसल को नष्ट