पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२६४

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कनैव कन्ना , क्रि० प्र० | गीतिका मे सृवं स्वरो का समारोह है ।—गतिका (सम्मति) या उनके कानों की नोक । उ०—(क) उम दिन जो मैं कनेव-संज्ञा पुं० [हिं० फोन+एव] चारपाई का टेढ़ापन । , हरियाली देखने को गया या, वहाँ जो मेरे सामने एक हिरनी विशेष—यह टेढ़ापने दो कारणो से होता है। एक तो पायो के छेद । कनौतियाँ उठाए हुए हो गई थी, उसके पीछे मैंने घोडा टेढ़ होने से चारपाई सालने में कन्नी हो जाती है। दूसरे बुनते बगछुट फेंका था।-इशामल्ला खाँ (शब्द॰) । (ख) चलित समय ताने के छोटे रखने से चार पाई मे कनेव पढ़ जाता है। कप प३ जाता है। कनौती लई दवाई --शकुंतला, पृ० ८० ।। क्रि० प्र० --निकलना ।—पड़ना । महा०--कनैव छेवना=पाए के छेदो को टेढ़ा छेदना जिससे चारपाई मुहा०—फनौतियां उठाना या खडा करना = कान खड़ा करना। कन्नी हो जाय । जैसे-वढई ने पायो को कनेच छेदा है। चौकन्ना होना । उ० - कनौती खडी कर हमारी नाई कुनै -सी पुं० [सं० फनक, प्रा० कणय]दे० 'कतक' । उ०—वै जो तकै--भस्मावृत०, पृ० २६ ।। मेध गढ़ लोग अकासीं । विजरी कनै कोटि च पासा'। '२ कानों के उठाने या उठाए रखने का ढग । जैसे,---इस पोहे जायसी ग्र०, पृ० २२९ । | की कनौती बहुत अच्छी है । कनैल- सच्चा पुं० [सं० कलाकार] दे० 'कनेर । मुहा०-- कनौतियां बदलना =(१) कानो को खड़ा करना । (२) कनोई-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] कान का मैल । खुट। | चौकन्ना होना । चककर सावधान होना । कनोखा'- वि० [हिं० कनखा] दे० 'कनखा' २ । | ३ कान में पहनने की बाली । मुरकी । कनोखा–वि० [हिं० काना> कुन + अख> अवा] १ वक्र दृष्टि कन्न' सज्ञा पुं० [सं०] १ पाप । ३ मूछ । बेहोशी [को०) । वाला । ३ कटाक्षयुक्त । कन्न -सज्ञा पुं० [स० कणं, प्रा० कण्ण] दे॰ 'कान' । उ०--$न्न कुनोतर--वि० [हिं० कोन -नौ+सं० उत्तर] दलालो की वोली में पडाय न मुह मुड़ाया }--प्राण॰, पृ० १११ ।। 'उन्नीस' । । कन्नड-सज्ञा पुं० [प्रा० अण्णाड] १ दक्षिण भारत का एक प्रदेश । कनौज -सज्ञा पु०स० कान्यकुब्ज, प्रा० कनउज्ज] दे० 'कन्नौज' । २ एक भाषा का नाम जो कन्नडे प्रदेश में बोली जाती है । कनौजि (0) - वि० [हिं० कन्नौज +इ पा (प्रत्य॰)] १ कन्नौज , ३ कन्नडवामी व्यक्ति । निवासी । ३ जिसके पूर्वज कन्नौज के रहनेवाले रहे हो या कन्नडश्याम-सज्ञा पुं० [हिं० कन्नड़+श्याम] दे॰ 'कनरश्याम' । कन्नौज से आए हो । जैसे, कनौजिया ब्राह्मण, कनौजिया कुन्नामज्ञा पुं० [सं० कर्ण, प्रा० कण्उ} [स्त्री० फन्नी] १ पतग नाऊ, कनौजिया भडभूजा। का वह डोरा जिसका एक छोर कॉप और ठड्ढे के मेल पर कनौजिया-सच्चा पु० कनौजिया ब्राह्मण । | और दूसरा पुछल्ले के कुछ ऊपर वाँधा जाता है। इस तागे कनौठा'—संज्ञा पुं० [हिं० कोन+भौठा (प्रत्य॰)] १. कोना । २. के ठीक बीच मे उडानेवाली ढोर वाँघो जाती है ।। बगल । किनार ।। क्रि० प्र०--वाघना ।—लगाना ।—साधना ।। कनौठा–संज्ञा पुं० [स० कनिष्ठ] १ भाई बघु। २ पट्टीदार। । ।। मुहा०—कन्ने ठीले होना या पद्धन = (१) थक जाना । शिथिल कनौड, कनौ--वि० [हिं० काना+ौडा (प्रत्य॰)] १. काना । होना । ढीला पडना । (२) जौर का टूटना । शक्ति और ३ जिसका कोई अग खडित हो। अपग । खोड़ा । जैसे,— गर्व में रहना । मानमर्दन होना । करने से कटना=(१) हाथ पाँव से कनौडा कर दिया । ३ कलकित । पतग का कन्ने के स्थान से कट जाने । (२) मूल से ही विच्छिन्न हो जाना । निदित 1 बदनाम । उ०—जेहि सुख हित हम भई कनौडी। ! २. पतग का छेद जिसमे कन्ना वाघा जाता है । । सो सुख अव लूटत है लौंडी ।—विश्राम (शब्द०) ४ क्षुद्र । । क्रि० प्र०—छैन। । । । तुच्छ । दीन हीन । नीच हेठा । उ०—प्रीति पपीहा पयद को ३. किनारा । कोर । ठ । ४ जूते के पजे का किनारी । प्रगट नई पहिचानि ! जाचक जगत कनावही कियो कनौडी जैसे,---मेरे जूते का कन्ना निकल गया । ५ कोल्हे दानि ।—तुलसी (शब्द०)। ५ लज्जित । सकुचित । की कातर के एक छोर के दोनों ओर गौ हुई लकडियाँ जो घामदा । उ०—तुरत सुरत कैसे दुरत ? मुरत नैन जुरि कोल्हू से भिडी रहती हैं और उससे रगडू खाती हुई घूमती हैं। नीठ ।.डौड़ी ६ गुन रावरे, कहत कनौडी हीठ-विहारी । 'इनः लकड़ियों में एक छोटी और दूसरी वडी होती है। (शब्द०)। ६ दवैले । एहसानमंद - उपकृत ।' उ० – कपि कन्नर'सच्चा पु० [स० फण]१ चावल का कन। २ चावल की धल सेवा बस भए कनौदे, कह्यो पवनसुत प्राउ । देबै को न कछ । ।। जो चावल के घिसने या छोटे छोटे कणो के चूर्ण हो जाने पर । रिनियाँ हाँ, घनिक तु पत्र लिखाउ ।—तुलसी,ग्न ०, पृ० ५०६। । सावल में मिली जाती है। कुनौती - संज्ञा स्त्री० [हिं० कान +ती (प्रत्य॰)]६• 'कनौती'। कुन्ना.-सज्ञा पुं० [सं० कण= वनस्पति का एक रोग, प्रा० फण्णध] । उ०-अज करति उरझनि मनौ, लेगो कनौती कान ।-- 3 वनस्पति का एक ,रोग जिससे उसकी लकडी तथा फन मादि घन्न द पृ० २७० ।। - में कीडे, पड़ जाते हैं, और लकड़ी या फुले खोखले होकर तथा नोती-सज्ञा स्त्री० [हिं० फान+ ती (प्रत्य॰)]१ पशुओं के कान सुडकर वेकाम हो जाते हैं। | (श