पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२६३

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७७७ कनेरी भूमि विरजि रघुपति अतुलवल कोलधनी । शर्माबंदु मुख कनेठा-वि० [हिं० काना+एठा (प्रत्य॰)] १. काना। २. भेगा ! राजीवलोचन म ण तन बोणित कुनी ।—तुलसी (शब्द०)। एची तानी । कनी-नंज्ञा औ० [सं०] कन्या । वालिका (को०] । विशेष—यह शब्द काना शुब्द के साथ प्रयि अाता है । जैसे,--- काना कनेठा। कनीचि--सु श्री० [सं०] १ शकः । २. गुजा (क्वे] । कनेठी संज्ञा स्त्री० [हिं० कान + ऐंठना) कान मरोडने की सजा । कुनीज-सुशा स्त्री॰ [फा० कनीज, मि० सु० कन, कन्या कन्यका] १ रामाली । कान उमेठना । दासी । लेविका । तडी । वाँदीं। उ०--दाढ़ी के बालों में क्रि० प्र०-साना ।—देना ।—लगना । - लगाना से उसने देखा तो होगा कि कैसी है मेरी कनीज, वह मेरी कनेनी---संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] दलालों को बोली में 'रुपया' । अवाबोल !- दिन, पृ० ५१।। कनीन--वि० [सं०] युवक । तृण [क०] । कनेर--सा पु० म० कणेर एक पेड। कनौनक सु पु० [सं०] १ लड़का । युवक । २ अाँखो का तार! । विशेप--इसकी पत्तियाँ एक वि लंबी और अाध अंगुल से यो पुती (को०) । एक अगुन तक चौड़ी और नुकीली होती हैं। ये कडी, चिकनी कनोनुका-- बी० त०] १. कुमारी। कन्या । २. अखिों की और गहरे हरे रग की होती हैं या दो दो पत्तियों एक साथ पुतलः (को॰] । आमने सामने निकलती हैं। हाल में से मफेद दूध निकलता है। कनौनिका--संशा स्त्री॰ [१०] १ अखि की पुतली या तारा । नु० फूलों के विचार से यह दो प्रकार का है, सफेद फुन का कनेर औरे अप कनोन्किनु गनी घनी सिरताज ! मनी घेनी के नेह और लाल फैन का कनेर। दोन प्रकार के कनेर सदा की बनी छनी पट लाज ?--विहारी र० ० ।। २. कन्या। फूलते रहते हैं और बड़े विपले होते हैं। सफेद फूल का ३ कानी उगल (को॰) । कनेर अधिक विषैला माना जाता है। फूलों के झड जाने पर कनीन-सा श्री० [सं०] दे० 'कन निका' [ये० । अाठ दम अगुल लत्री पत पतली फलियाँ नगनी हैं। फलियो कृनीयस--वि० [मु०कनीयस्] [वि० ख० कनीयसी] लघुतर । के पकने पर उनके भीतर से वहूत छोटे छोटे वीज मदार की अ-पतर 1 कि०] । तरह रूई में रगे निकते हैं । कनेर घोड़े के लिये वहा भयं कर कनीयस--सा पु० १ ताँबा १२ छोटा भाई। ३ कामातुर प्रेमी(को०] । कनीर- सज्ञा पु०[हिं० कनेर]नेर का वृक्ष या फूल । उ०—कविरा बिप है, इसी लिये सम्कृन दोषो में इसके प्रयाघ्न, हेयमार, तहीं न जाइए जहाँ कपट का हैन । जालू कली कनौर की तुरगारि आदि नाम मिलते हैं। एक और पेड होता है जिनकी तन रानी मुन सेत ।-कवीर ग्र०, पृ० ६६। परियाँ और फल कने' ही के ऐसे होते हैं। उसे भी कनेर कनु -सञ्ज्ञा पुं० [सं० कण, कन} ६ कण' । कहते हैं, पर उनकी पत्तियाँ पतन छोटी और अधिक कन्का -सा पु० [हिं० कनिका कण । दाना उ०— चमकीली होती हैं। फूल भी बहा और पीले रग का होता कवि ‘ब्रह्म' बनी उपमा जल के कनुका चूर्व वार के छोरनि । है तय हलकी लनमा से युक्त पीले रग का भी होता है । मानह चदहि चूसन नाग अमी निकस्यो वहि पुत्र की रनि । फल के गिर जाने पर उसमे गोल गोल फन लगते हैं जिनके -अकबरी, पृ० ३४६ ।। भीतर गोल गौत्र चिपटे वीज निकलते हैं । कनुग्रा -सा पु० [हिं०]दे० 'कान'। उ०-क्या होगा जु कनेमा वैद्यक मै दो प्रकार के और कनेर लिये हैं-एक गुनावी फन | फूटा । क्या हो या जु प्रहीते छूटा --प्रा०, पृ० २७४ । का, दूसरा काले रंग का । गलावी फूलवाने कनेर को लाल कन्का --- ज्ञा पुं॰ [हिं॰] दे॰ 'कनुका'। कनेर ही के अतर्गत चमझना चाहिए, पर काले रंग का कनेर सिवाय निघटु रत्नाकर ग्रय के और कहीं देखने या सुनने में कने-क्रि० वि० [सु० कोण] १ पसि । ढिंग । निपट । सुमीप । नहीं आया है । वैद्यक में कनेर गरम, कृमिनाशक तया घाव, उ०—-(क) मीत्र तुम्हारा तुम्ह कने तुमही लेहु पिछानि । कोढ़ और फोड़े फुसी आदि को दूर करनेवा ना माना दादू दूर न देखिये प्रती विव ज्यो बानि l-दादू० (शब्द॰) । गया है। | पर्या० -- करवीर) शतकुम । अश्वमारक । शवकुदै । स्य - (ब) जव के बुढ़ापे ने किया हाय में कुछ कल । अब कुमुद । शकुद्र । चति । सगुद । भूनद्रावी । जिसके कने जाते हैं लगते हैं इस जन । नजार (शब्द॰] कनेरा--राश नीं० [म०] १ हस्तिनी । यिनी । कणेरा । २. (ग) वैद विपिन बुटी वचन हरिजन किमियाकार ! खरी " वैश्या धेि जरा तिनके कने खोटी गहुत गंवार ---विधान (शब्द॰) । कनेरिया-वि•[हिं० फनैर] कनेर के फूल के रंग का । कुछ श्यामा २. घोर । तरफ । जैसे,—अजि किस कने जागोगे ? लिए लाल रंग का । विशेष- यद्यपि यह क्रि० वि० है, यद्यपि 'यही वह पादि के समान कनेरी--- बी० [अ० कैनरी (टापू)] प्राय. तोते के प्रकार की यह सबंधारक के साथ भी अाता है । जैसे,—उनके कने । एक प्रकार की बहुत सुदर चिडिया जिसका म्वर कोमल कनेखी---सा बी० [हिं० नती] दे॰ 'कन । पौर मधुर होता है और जो इवीलिए पाली जाती हैं। इसकी कनेठा--सज्ञा पुं० [हिं० कोन+एठी (प्रत्य2)] कार में लगी हुई कई जातियों और रग हैं, पर प्राय पीने रग की कने बहुत वह लकड़ी जो कोल्हू से रगडकर बाती हुई उसुके चारों और सुदर होती है। उ०—उननें केबल पिक की पचम पुकार है। घुमती है। कान । नही, कनेरी की शो एक ही मोठी तान नही अपितु उनको