पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२६०

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कनफुका ७७४ कनवासिंग कनफुका-सज्ञा पु०[हिं०]१ कान फुकनेवाला गुरु। २ कान फुकाने कनयून-सज्ञा पुं० [स० कण + ऊन] एक प्रकार का सफेद वाला चेल । उ०- कनफू का चिढाकसी लूटे जोगेसर लूटे करत काश्मीरी चावल जो उत्तम समझा जाता है । विचार ।-कवीर (शब्द०)। | कनरई-सज्ञा जी० [देश॰] गुलू नाम का पेड़ जिससे कतीरा कनफुसका--सज्ञा पुं० [हिं० कान + फुसकना] [स्त्री० कनफुसको] निकलता है । ६०' गुलू' । १. फुस फुस करनेवाला । कान मे धीरे से बात कहने वाला। २. कनरश्याम-मज्ञा पुं० [हिं० कान्हड़ा+श्याम] सपूण जाति का चगुलखोर। पीठ पीछे धीरे धीरे लोगो की बुराई करनेवाला । एक शकर राग जिससे सब शुद्ध स्वर लगते हैं । कनफुसकी--सज्ञा स्त्री० [हिं० कान + फुसकी] दे० 'कानाफूसी' । कनरस--- संज्ञा पुं० [हिं० कान + रस] १ सगीत का स्वाद । गाना कनफूल-सज्ञा पुं० [हिं० कन+फूल] फूल के प्रकार का कान वजाना सुनने का आनंद ! २ गाना बजाना या बात सुनने की का गहना । तरवन । उ०--कनवेसर कनफूल बन्यो है छवि व्यसन । संगीत की रुचि । उ०----कनरस वतरस और सबै रस काप कहि अवै जू -भारतेंदु ग्र. ०, भा॰ २, पृ० ४४६।। झूठहि होले हो ।- २० बानी, पृ० ७० । कनफेडf-सज्ञा पुं० [हिं० कनपेट] दे० 'कनपैडा' । कनरसिया-- सच्चा पु० [हिं० कान+हि० रसिया गाना बजाना कनफेशन- संज्ञा पुं० [० कन फशन] पाप, अपराध, गती, दुराई । सुनने का शौकीन । सगीतप्रिय । नादप्रिय ।। आदि कबूल करना । उ०—मुझे कमी ईसाइयों की तरह कनरोना–क्रि० अ० [हिं०] अलग विलग होना । उ०—-हिंदु तुक कनफेशन करना हो तो गिरजे मे जाकर नहीं रेलगाड़ी में ही । दोउ रह तुरी, फूटी अरु कनराई -कवीर ग्र ०, पृ० १०६ । करू !-—नदी० पृ० ३६।। | कनवई-सा स्त्री० [सं० कण] सेर का सो हवाँ भाग । छटॉक। कनफोडा-सज्ञा पुं० [सं० कर्णस्फोटटफ] एक लता जो दवा के काम कनवजए, कनवज्ज-सज्ञा पु० [सं० कान्यकुब्ज दे० 'कन्नौज' । मे आती है । यह खाने में कड़वी और गुण में ठही और उ०—(क) या सम दो सावंत वली, कनवज गये रिसाये विपघ्न होती है । प० रा०, पृ० ७६ । (ख) रिधू गोद कनवज्ज रहायौ । म य पयत्रिपुटा । चित्रफ्ण । कोपलता । चद्विका।। चमू सग दरसण आयौ ।--रा० ६०, पृ० १२ । कनवतियाँ-सज्ञा स्त्री० [हिं० फन + बतियाँ] कानाफूसी । निंदा कनवाँ'- वि० [हिं० काना] १ करना । २ एक अखि से जो खुलकर न की जाय । उ०--इधर नोहरी के विषय में देखनेवाला । कनबतियाँ होती रहीं ।-- गोदान, पृ० २५२ । यौ०—कनयाँ घूघट-घूघट का वह बनाव जिसमे स्त्रियः पूरी कनवाती- सज्ञा स्त्री० [हिं० फन+बात] कान में मु ह लगाकर बात | - मुह छिपाए हुए हाथ की उँगलियो के प्रयोग द्वारा केवल एक कहना। उ०—कछुक अनूठी मिस वनाय ढिग प्राय करत आँख से देखने का काम लेती हैं। कनवाती ।-धनानद०, पृ० ५६६ । कनवासा- सज्ञा पुं॰ [स० कन्या + वश, फा० नवासी] [स्त्री० कनवौसी] फनविधा-सच्चा पु० [हिं० कन+ बेघना] १ कान छेदनेवाला। दौहित्र का पुत्र । नाती वा नवासे का पुत्र । २ जिसका कान छेदा हुमा हो। कुनवा--सज्ञा पुं० [हिं० कनवई] दे॰ 'कनवई'। कनभेडी-सा बी० [देश॰] एक प्रकार का सुन का पौधा जो कनवारा--सज्ञा पु० [३०] पालना । उ०—-पीछे तख्त पर लिया अमेरिका से भारत में लाया गया है। जच्चा के विठाय बच्चे के कनवारे मे ल्याकर सुलाया - विशेप-बवई प्रत मे इसकी खेती बहूत होती है। इसको दक्खिनी॰, पृ० ३४४ । ‘वनभैी' भी कहते हैं। यह अव प्राय हर जगह होता है। कनवास-सा पु० [अ० कैनवस] एक मोटा कपडा जिससे नावों इसके रेशे आठ नौ फुट लवे और पटसन से कुछ घटिया होते के पाल और जूते आदि बनते हैं। यह सन या पटन से हैं। इसके पत्त, फल और फूल भिडी की तरह होते हैं। वृनता है। कृनमनाना—क्रि० अ० [अनु॰] १ सोने की अवस्या में व्याकुलता कनवासर--सज्ञा पुं०[ अ० कैनवैसर] प्रचारक । वह जो लोगो को के कारण कुछ हिलना हुलना । २ किसी प्रकार की गति पक्ष में करने के समझाने बुझाने का काम करे। वह जो 'वोट', करना । विशेपत’ कोई काम होता देखकर उसके विरुद्ध बहुत ‘प्रार्दर' अदि मांगने या संग्रह करने का काम करे। कैनवेसिंग ही साधारण या थोडी चेष्टा करना । जैसे,—तुम्हारे सामने करनेवाला। इतना वडा अनर्थ हो गया और तुम कमाए तक नही । कनवासिंग-संज्ञा स्त्री० [अ० कॅनवसिग] १ वोटरो या मतदाकनमैलिया-सुज्ञा पुं० [हिं० कान + मैल +इया (प्रत्य॰)]। वह ताप्रो से वोट माँगना । वोट पाने के लिये उद्योग करना । | जो लोगों के कान का मैल निकालता हो। लोगो को पक्ष में करने के लिये समझाना बुझाना । लोकमत कुनय--- सच्चा पुं० [सं० फनक सोना । स्वर्ण' । उ० --वह जो को पक्ष में करने का उद्योग करना । जैसे,—(क) उनके मेघ, गट लाग अकासा । बिजुरी कनय कोट चढ़ पासा -- | अादमी जिले भर में उनके लिये बड़े जोरो से कनवासिंग कर जायसी (शब्द॰) । रहे हैं, उन्ही को अधिक 'वोट मिलने की पूरी संभावना है। कनयर - सवा पु० [सं० 'कणिकार, प्रा० फण्णिमार] दे० (ख) उन्हें सभापति पद पर बैठाने के लिये खूव कनवासिनी 'कुनेर। ? हो रही है,। २. किसी अपनी या फर्म के लिये माल अादि का