पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२५९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

कुनैखजुरां ७७३ कतर्फका पतंग की डोरी को फँसाना जिसमे रगडकर खाकर दोनों में से ३ नगुज्झाई-सज्ञा पुं॰ [देश॰] चपेटा । थप्पड ! कोई पतग कट जाय । कनकौवा बढ़ाना = कनकौवे की डोर कनगुरिया--संज्ञा स्त्री० [हिं० कानी+अँगुरी या अँगुरिया कनि: ढीली करना जिससे वह हवा में और ऊपर या अागे जा सके। ष्ठिका अँगली । सबसे छोटी उँगली । छिगुनिया । छिगुली । कनकौव से दुमछल्ला वड़ी= मुख्य वस्तु की अपेक्षा उसके ३०- अब जीवन के है कपि ग्रास न कोई । कनगुरिया के उपसर्ग या पुल्ले का बडा होना । मुंदरी कुकने होइ !-—तुलसी (शब्द॰) । यौ॰—कनकौवाबाज = पतग उड़ानेवाला | कनकावेबाजी। | कछेदन--सज्ञा पुं० [हिं० कान+छेदना हिंदुओं की एक संस्कार केन ।जूरा-सज्ञा पु० [हिं० कान +खजूर= एक कीड़ा] लगभग एक जो प्राय मडन के साथ होता है और जिसके बच्चो का कान वालिश्ते का एक जहरीला कोडे । छेदा जाता है । कण वैध ।। विशेष—इसके बहुत से पैर होते हैं । इसकी पीठ पर बहुत से गडे कनटक-सज्ञा पुं० [हिं० कन+टकटक] कृपए । कजूस, । उ०—पड़े रहते हैं । यह कई र का होता है। लाल मुहवाले बड़े बाप कनटक, पूत हातिम ।---कहावत । और जहरीले होते हैं । कनखजूरा काटता भी है और शरीर में कनटोप-सज्ञा पुं० [हिं० कन +ोप या तोपना] कानों को ढूंकने पैर गडाकर चिपट भी जाता है। इसे गोजर भी कहते हैं । वाली टोपी । उ०—उस टोपी के जिसके तीन भाग मे उठे कनखा'—सुज्ञा पुं० [हिं०] १. कोपल ! ३. शाखा । हाल ! कनपटे जाडो मे नीचे गिरकर कनटोप का काम देते हैं । कनखा--वि० [हिं० कानी, कन+में खा) खा] दे॰ 'कनखी' । --किन्नर०, पृ० ३६ । 0चा ताना देखनेवाला । वक्रदृष्टिवाला । कनेतूतुर--सच्चा पु० [देश॰] एक प्रकार का बड़ा मेडक जो बहुत कनखिया संज्ञा स्त्री० [हिं० कनखी] दे॰ 'कनखी' । जहरीला होता है और बहुत ऊँचा उछलता है। कनखियाना-क्रि० स० [हिं० कनखी] १ कनखी से देखना । तिरछी कनधार--संज्ञा पुं० [सं० कण घार, प्र० कण्णधार मल्लाह । नजर से देखना । २ अखि से इशारा करना । कनखी मारना । केवट । खेनेवाला । उ०—जाके होय ऐसे कनघारा। तुरत कनखी-सज्ञा मौ० [हिं० कोन+ ख] १, पुतली को अखि के वेगि सो पावै पारा । --जायसी (शब्द॰) । कोने पर ले जाकर ताकने की मुद्रा । इस प्रकार ताकने की कनन--वि॰ [स०] एकाक्ष । काना। एक अखबाला [को०)।। ।। क्रिया कि औरो को मालूम न हो। दूसरो की दृष्टि व चाकर कनपटी--संज्ञा पु० [स० कर्ण+पट] १ ३० 'कनपटी' । २ कर्णपट। देखने का ढंग । उ०—(क) देह लग्यो ढिग गेहपति छऊ नेह कर्णच्छद । उ०-उठे कनपटे जाडो में नीचे गिरकर कनटोप निरवाहि । ढीली अँखियन ही इते कनखियन चाहि ।--- का काम देते हैं।-किन्नर, पृ० ३६।। विहारी (शब्द॰) । (ख) ललचौंई, लज, हैं चित हित कनपटी--संज्ञा स्त्री॰ [स० कण+पट] कान और अखि के बीच की सों चित चाय वढाय रही। कनखी करिके पग सो परिक स्थान । उ०----विजय की कनपटी लाल हो गई ।-ककाल, फिर सुनें निकेत मे जाये रही -भिखारीदास (शब्द॰) । २. पृ० ५८ । । अखि का इशारा । । कनपेडा--संज्ञा पुं० [हिं० फान+पेड़-जड़े + (प्रत्य॰)]कान को क्रि० प्र०-देखना |–भारना । एक रोग जिसमे कान की जड़ के पास चिपटी गिल्टी निकल मुहा०—कनखी मारना = (१) अखि से इशारा करना । (२) अाती है । यह गिल्टी पक भी जाती है। अखि के इशारे से किसी को कोई काम करने से रोकन। कनफटा' - संज्ञा पुं० [हिं० कान + फळना] गोरखन थि के अनुयायी कनखियो लगना= छिपकर देखना । ताकना । पिना । योगी जो कानों को फडवाकर उनमे विल्लोर, मिट्टी, लकड़ों कनखुरा- संज्ञा पुं० [देश॰] राहा नमि को घास जो अासाम देश में आदि की मुद्राएँ पहनते हैं । उ०—(क) पडित ज्ञानी चतुर | वहुत होती है । बगाल में इसे 'करकुद' भी कहते हैं । जरे कनफटा उदासी ---पलटू०, मा० १, पृ० १०४ । (ख) कनखया --संज्ञा स्त्री० [हिं० कनखी ] तिरछी नजर।। गोरखपथी कनफटे भी कहलाते हैं ! गोरख०, पृ० २४० । क्रि० प्र०—देखना --लगना ।—निहरिना।--हेरना।। कनफटा-वि० जिसका काने फेटा हो। मुहा०—कनखंघन लगना= छिपकर देखना । ताडना । भाँपना। कनफुकुवा--वि० [हिं० कने+फुकवा दे० 'कनफु'का'। उ०— उ०-- धुनि किकिन होति जगेगी सवै सुक सारिका चौकि और यही दशा केवल विशुद्ध दीक्षागुरु या कनफु कवी ब्राह्मण चितै परिहैं। कनखैयन लागि रहीं हैं परोसिन सो सिसकी की है।--ग्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० २२३ । सुनिक इरिहैं :--लाल (शब्द०)। कनफुका-वि० [हिं० कान + फूकना] [स्त्री॰ फनफु' की] १. कनखोदनी-संज्ञा स्त्री० [हिं० फन (कान से बना) +खोदनी= कान फूकनेवाला । दीक्षा देनेवाला। उ० -(क) कनफका खोदनेवाली] लोहे, तौदै अादि के कडे तार का बना हुआ गुरु जगत का राम मिलावन और।--चरण० वानी, पृ० ११ । एक उपकरण । (क) कनफुकवाँ गुरु हद्द का बेहद का गुरु और। बेहद का विशेप----इसका एक सिर कुछ चिपटा करके मोडा हुआ होता है। गुर हद मिले, लहै ठिकाना ठौर ।—कबीर (शब्द०) । २ जिससे कान में की मैल निकाली जाती है। प्रायः हज्जाम लोग जिसका कान फूफा गया हो। जिसने दीक्षा ली हो । जैसे, । मपनी नहरनी का दूसरा सिरा भी इसी अकार का रखते हैं। कनफू का चेला ।