पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२५८

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नकटी ७७२ कनकौवा कृनकटा---वि० [हिं० फन + कटा] १. जिसका कान कटा हो । कनकभन--सज्ञा पुं० [सं० कनकभन्ने] स्वर्ण खड। सोने का टकुड़। बूचा वण'०, पृ० १ । २. कान काट लेनेवाला । या डलर (को०)। जैसे,—वह कनकटा अाया, नटखटी मत करो। (लडको को कुनकरंभा सच्चा स्त्री० [सं० कन करन्मा] स्वर्ण कदली (को॰) । हराने के लिये कहते हैं ।) कनकरस-सज्ञा पुं॰ [स०] १ हरताल । २ तरल स्वण' [यै] । कुनकटी—संज्ञा स्त्री० [हिं० फन + कटी) कान के पीछे का कनकशक्ति-सा पुं० [सं०] कानिकेय [को०] । | एक रोग । । कनकसूत्र--सज्ञा पुं० [सं०] सोने का हार। सोने का तुर (को०)। विशेप–इसमें कान का पिछला भाग जड के निकट लाल होकर कनकसनसंज्ञा पुं० [सं०] एक राजा जिन्होने सन् २०० ई० में । - कट जाता है और उसमें जलन और खुजली होती है। वल्लभी सवत् चलाया था और जो मेवाड़ वश के प्रतिष्ठाता माने जाते हैं ।। कनकदड-सज्ञा पुं० [स० कनकदण्ड] राजच्छन्न [को०] ।। कनकनदी-सज्ञा पु० [सं० फनफनन्दिन] एक प्रकार के व नकस्थली–मज्ञा स्त्री॰ [सं०] सोने की खान (को०)। में शिवगण । कनका--सज्ञा पुं० [सं० फणिका कण । कनिका । कनकी । कनकनी–वि० [हिं० कन+क-ना (प्रत्य॰)] जरा से ग्राघात कनकाचल—संज्ञा पुं॰ [सं०] १. सोने का पर्वत । २. सुमेरु पर्वत । से टूट जानेवाला । 'चीमड़' का उल्टा । उ०—नेहिन के मन । कनकाध्यक्ष-सज्ञा पुं० [म०] कोपाध्यक्ष । वजाची (को०) । काँच-से अधिक कनकने अइ। दृग ठोकर के लगते ही टूक टूक कनकनी--सज्ञा पुं॰ [देश॰] थोडे की एक जाति । उ०—बले सहस कन' ह्व जाइ –रसनिधि (घाब्द०)। वैसक सुलतानी। तीख तुरग कि फन कानी ।—जायसी (शब्द०)। कनकना-वि० [हिं० कनकनाना] [वि॰ स्त्री० कनकनी] १ जिससे विशप-इस जाति के घोड़े डील डोल मे गधे से कुछ ही बढे । कनकनाहट उत्पन्न हो । २ चनचुननेवाला। ३ अरुचिकर । नागवार । ४ चिडचिड़ा। यही बात पर चिढनेवाला । पर बहुत कदमबाज अौर तेज होते हैं । कनकाभ--वि० [न०] सोने जैसी कति । उ० -कनकभ घूले। कनकनाना—क्रि० अ० [हिं० फांद, पुं० द्वि० फान] [सज्ञा कनकनाहट] १ सुरन, अरबी अादि वस्तुओं के स्पर्श से मुंह हाथ झर जाएगी, ये में कभी उड़ जाएंगे ।—नील, पृ० ६० । अादि अगो मे एक प्रकार की वेदना या चुनचुनाहट प्रतीत कनेकालुका सच्चा स्त्री॰ [सं०] स्वण घट । सोने का घडा [को०) ।। होना । चुनचुनना। जैसे,सूरन खाने से गला कनकनाता । कनकाह्वय-तज्ञा पुं० [म०] घतूरी या धतूरे का पेड (को०] । है । २ चुनचुनाहट या कनकनाहट उत्पन्न करना । गला कनकी संज्ञा स्त्री॰ [सं० कणिक] १ चाव नो के टूटे हुए छोटे छोटे काटना । जैसे,--वासुको सूरन वहुत कनकनाता है । ३ टुकड़े । २ छोटा कण । अरुचिकर लगना । नागवार मालूम होना । जैसे,—हमारी कनकुटकी-सच्चा सौ० [हिं० कुटकी] रेवद चीनी जाति का एक । वाते तुम्हें बहुत कनकनाती हैं । | एक प्रकार का वृक्ष। कनकनाना—क्रि० अ० [हिं० कान> कन] कान खड़ा करना । विशेप-यह खसिया को पहाड़ी, पूर्व वगाल और लेका चदि में । . चौकन्ना होना । जैसे,—पैर की आहट पाते ही हिरन कनक होता है। इसमें से एक प्रकार की राल निकलती है जो दवा नाकर खडा हुआ। और रेंगाई के काम में आती है । कनकनाना-क्रि० अ० [हिं० गनगनाना] गनगनाना। रोमाचित कनकूट---सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ कुरकुड' । होना ।। कनकूत–सझा पुं० [सं० क + हि० कृत] बँटाई का एक ढग । कनकनाहट सज्ञा स्त्री० [हिं० कनकना +माहट (प्रत्य॰)] कनकनाने विशेष—इसमे खेत में खड़ी फसल की उपज का अनुमान किया 1. का भाव । कनकनी । जाता है और किसान को उस अटकल के अनुसार उपज का कनकनिकष सज्ञा पुं॰ [सं०] कसौटी [को०] । भाग या उसका मूल्य जमीदार को देना पड़ता है । यह कनकूत कुनकनी–सज्ञा स्त्री० [हिं० फनफना] कनकनाहट । या तो जमीदार स्वयं या उसका नौकर अथवा कोई तीसरा कनकपत्र–सुझा पुं० [म०] कान का एक आभूपण । झुमका । करता है । कनकपीठ-सुज्ञा पुं० [सं०]सोने का पीढ़ा । स्वर्णमय आसन [को०] । कनकैया–संज्ञा स्त्री० [हिं० कनकौवा] दे० 'कनकोवा' । कनकपुरो–सच्चा स्त्री० [स० कनक + पुरी] रावण की लका जो सोने कनकौवा–सच्चा पुं० [हिं० कन्ना+कौवा] १ कागज की बधा की मानी गई है। पतंग । गुड्डी । ३ एक प्रकार की घास जो प्राय मध्य भारत कनकप्रभ- वि० [स] सोने जैसी कातिवाला । सोने जैसी चमक दमक और बुदेलखंड में होती है। से युक्त (को०] । क्रि० प्र०—-सडाना - काटना ।—बढ़ाना ।--लड़ाना । कनकप्रभा'- सच्चा क्षी० [सं०] महाज्योतिष्मती लता । मुहा०--कनकौवा काटना = किसी बढ़ी हुई पतग की डोरी को । कनकप्रसवा सज्ञा स्त्री० [सं०] स्वर्ण केतकी (को०] । अपनी बढ़ी हुई पतग की होरी से रगड फर काटना । कनकवी कनेकफलसच्ची पु० [सं०] १ धतूरे का फल । २. जमालगोटा। सोना= किसी बढ़ी हुई पतग की डोरी में अपनी बढ़ी हुई