पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२५५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

मुहा०--- कदम पर कदम रखना=(१) ठीक पीछे चलना। कदराई ३ ० [हि० कादर+ई. (प्र०)] वरन । पीछ लगना । (२) अनुकरण करना । नक्कन करना । पैरवी भोला । फायरता । वृ०--नृपति रि नपं गरमा । तुर करना । मुनि बरन छेरि दराई । —तुलसी (नब्द॰) । ४. चुराने में एक पैर से दूसरे पैर तक का अंतुर । पैड । पग । कदराना --क्र० प्र०[हिं० फादर में नाम०] कादर होना । इरना । फार । जैसे,—वह जगह यह में १०० कदम होगी । ५ भयभीत होना । कवियना । उ॰—(क) समृद्ध प्रनि म घोड़े की एक चाल जिसमे केवन पैरों में गति होती है और प्रभुताई। फरत कथा मन अति दराई ---तुलसी (द०)। पैर बिलकुल नपे इए और वोडी यौ। दूर पर पड़ते हैं। (च) तात प्रेम्वन उनि कदर । ३ मुनि दृश्य पान विग - इनमें सवार के बदन पर कुछ भी झटका नहीं पचता ।। उहू -- तुम (नद०) । कदम चन्नाने के लिये वाम छूव कड़ी रखनी पडती हैं। कदरो-संवा नौ० [२० फद= वरा+१= ३] एक प: । क्रि० प्र०-निकलना=कदम को चाल विवाना । डीन में मैना के बराबर होता है। ---(३) धरी परे ६ क्रम । उपझम 1 ७ किसी कार्य के निमित्त किया जानेवाली पड़ा है। कोई कद इनर बन !-—जायसी (शब्द॰) । प्रयत्न । कानावन की चेष्टा । काम । कायं । (ख) सर्व छोळो वा नूती ब्रो को 1 7 की । यो छ कदमचा- पु०प्र० कदल+फा० चा]१ पैर रखने का स्थान । अपनी फिक्र करो अट दान की ।-नजीर (२०) । २ पाने की वे खुढियाँ जिनपर पैर रखकर बैठते हैं। केंदर्य' पुं० [३०] निकम्मा वतु । द फरवट । बुढढी ।। | कदर्थ:--वि० १ कुत्सित । बु।। २ निc74 (को०) । कदमाज-वि० [अ०] १ कदम की चाल चलनेवाला (घोड!) । कुदर्थन- स पु० [न०] १. झप्ट वा पीडा देना । सतान! । २ * बदलने । तिरस्कार । अपमाने । ३ दुगनि । दुर्दशा ०। । कदमबोपी-- ० [अ० कदम +फा० बोसी] कदम चूमना । कर्थना-मी० [२०] [fi० दयत! १ दुगति । दुद ना । चरण चूमना । समान की प्रदर्शन करना । न मान या प्रदर त्रु देशी । उ॰---(क) हा ः ३ तुन दा नि नि रम के ना ।। ऐनी काशी की कडयंना कात्र व लिन की ।-तुरती कदम रडा भी० [हिं० कदम] एक प्रकार की मिठाई जो कदवे (शब्द०) । (३) नरपिशाचों का नाम, दमन प्रौर उत्पोड ने ३ फूत्र के प्राचार की वनती है । देकर समाज विहल हो जाता है और ये मामा की कदर'- संज्ञा पुं० [अ०] १ लकडी चीरने का प्रारा ! २ अंकुन । बंदर्य ना देकर का याने नाता है - F०, पृ० २६ । ३. बहू नाठ जो हाथ या पैर में कटा या ककड़ी चुभने या २ कष्ट देना । सर्वाना (को०)। ३ अपमान । विरकार । अधिक रगड़ से पड़ जाती है और कड़ी होकर बढ़ता है। चाँई । अवहेलना । (को०) । टाँक । नोव।४ सफेद वैर। ५ छेना (०)। ६ एक पेठ । कथित - वि० [१. जिसकी दुरी देना की गई है। दुनिया । का नाम जो कभी कभी वदिर के स्थान पर यज्ञयूप के नाम । प्राता था (०) । २ जिसकी वियना की गई हो। विसी यूव गत वनाई फदर-उम्मी० [अ० कट्ट[१. मान । माया । मिकदार । जैसे,— गई हो । जैसे ---वे उस मंगा ने 37 दिन 7 नए । ३ तुम्हारे पाम इन कदर रुपया है कि तुम एक अच्छा रोजगार पीडित । संतप्त (को०)। पर कर सकते हो । मान । प्रतिष्ठा। चढ़ाई। प्रदिर पदय'- वि० [ना कदपेन नो नपं झट उदर र नफार जैसे,---(क) उस दरबार में उनकी घडी कदर है । अपने परिवार को कष्ट देकर धन इकट्ठा भने । उ । (घ) तुम्हारे ही चीजों की कदर नहीं है । मरचीचत । यौ०-कदरदान ! येकदर । कदयं--- पुं० [३] वह कंजूस राजा ब होन कट करने के फदरई -- सा ही [हिं० फादर फाररपन । पौधे प्रजा पर घरवाचार करे मोर राज्य की प्रामदनी राज्य कदरज'-- ३० [सं० फदर्य! एक प्रसिद्ध पाप । ३०- गणिका ही मनाई में न हूँ करे। (ो, । मद फदरज ते जा में पप न करन उबज्यो । तिनको चरित यंता- २ ० [३०] केनौं । मुनन । १fत्र बानि हरि मित्र र भयन पर्यो जुत्त(ब्द॰)। दल-छा पुं० [३०] फल 1 है न! {e} । कदलक--नम - [३] ३० कद [२] । कदरदान-fi० [अ० कत्र +फ० दान] कदर करनेवाला । मुस- कदाइश भी० [सं०] १ पृदिन । २, ४धि । ३. मन ग्राइक। उ०-राहुन फी भीमाकली व द्वापरात से उम दरदान है।-किन्नर०, १० ५४१ इन्दिरा- 5 - [4] १. झडः। ८ । पव हा । ३. 3 दरदान–श की• [प्र. रुद्र+१० नो] गुपहरुवा । एक वृक्ष [० ।। करमस(३. ५ ६० वन+६० मत (प्रस) । पोइली'- भौ• [५] १ केन । ३०--उन पने? :- * मारपीट है । उ०-पाहु र कदरमन छ । पहि कप। *वरी मुन । उच ची !---Tीन। ३।३।। ६१३ । लहू }--जीवनी ( ०) २. एक पेड़ ।