पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२५१

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कृतिक परमाने हैं। ब्रह्मनंदमये ते अनामय अभय अब तेरे पद मेरे कत्तरी–स औy [४० कर्तरी] कैची- देश०, १० ३० , अवलंब ठहराने हैं।-चरण (शब्द०)। | कत्तल- सभा पुं० [हिं० कतरा] १ कटा हुआ टुकड़ा। २. पत्थर का कतिक ---क्रि० [अ० कति+एक अयवा सं० कति +क] (प्रत्य॰)] छोटा टुकड़ा जो गढाई मे निकलता है। १ कितना । कितेक । किस कदर। दे० 'कितक' । २. योडा। । यौ॰—कलि का बघार= किसी तरल पदार्थ को पत्यर-या ईंट के | ३ वहून | ज्यादा 1 अनैक । तपाए हुए टुकड़े से छौंकना। कतिबा- क्रि० वि० [सं०] अनेक प्रकार का । वहुत भाँति का । कई कुत्ता--सा पु० [सं०, पा कर्तुं को यूहदार्थक रूप] १ बॅसफोरो का | किस्म का । एक औजार जिससे वे लोग वस वगैरह काटते पा चीरते हैं । कतिवा-क्रि० वि० कई तरह से । अनेक प्रकार से । बहुत भांति से। बका । बीक।"२.छोटी टेढी तलवार उ०--चौकत चकता कतिपय- वि० [सं०] १ कितने ही। कई एक । २. कुछ थोड़े से । जाके कता के कराकनि सो सेल की सकनि न कोऊ जुरे विशेप--सस्कृत में यह सर्वनाम माना गया है। हिंदी में यह जंग है ।--सूदन (शब्द०)। ३. (चौपडे का) पासा। काबर्तन । सपासचक विशेषण है ।। | कत्तार--संज्ञा स्त्री० [अ० कतार दे० 'कतार’। उ०—सैपच कतिया-सुज्ञा स्त्री० [हिं०] १ कैची। दे० 'काती' ! ' र छोटी । दिन्न अति उंट अच्छ ।' कत्तार भार फकार कच्छ ।–१० तलवार । कत्ती । उ०---(क) वे पतियाँ लिख भेजति य, मन | - २, ३ । ११ । की छतिया कतिया ती खगी है ।-नट०, पृ० ४१ । (ख) मैं कत्तारी---संज्ञा पुं॰ [देश॰]मझोले आकार का एक प्रकार का सदा- सुणी सुजन की वतियाँ। मेरे चनी कलेजे कृतियाँ -राम० बहार वृक्ष । कतावा । धर्म ०, पृ० ३१ ।। विशेष-- यह हिमालय में हजारों से कुमाऊँ तक, ५००० फुट को कती--संज्ञा स्त्री॰ [हिं० कोती] दे० 'कतिया' । उ०—स्वर्ण के ऊँचाई तक, और कहीं कहीं छोटा नागपुर ग्रौर अासाम में खडग, पडे, हत्थ पग्ग। कती धार कैसी, जरी देत जैसी । भी पाया जाता है। इसकी टहनियाँ बहुत लवी और कोमल –० ९०, १० १६१ ।। होती हैं और इसके पत्ते प्राय. एक वालिश्त लवे होते हैं। इसके कतीव--संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'कतेब'। उ०—बहुतक देखा पीर फूल, जो जाड़े में फूलते हैं, मधुमक्खियों के लिये बहुत औलिया पढे कतीव पुराना |--कवीर ग्र०, पृ० ३३८ । आकर्षक होते हैं। कतीरा--सज्ञा पुं॰ [देश०] गुलू नामक वृक्ष का गोंद ।। कत्ताल-वि० [अ० फत्ताल] १ बहुत अधिक कतल करनेवाला । विशेष--यह खूब सफेद होता है और पानी मे धुलता नही और जल्लाद । उ०—रही तावो ताकत न कताल को । चला भाग गोद की तरह इसमे लसीलापन नहीं होता। यह बहुत ठा तब काल पत्ताल को।—कबीर मं०, पृ० ६८।१ माशूक । समझा जाता है और रक्तविकार तथा घातुविकार के रोगों मे प्रेमपात्र [को०] । दिया जाता है। वोतल मे वद करके रखने से इसमें सिरके की । कत्तावा--संज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'कतारी । । सी गध आ जाती है । कत्तिन--सज्ञा स्त्री॰ [हिं० कतिना कातने का काम करनेवाली । केतील-वि० [अ० कुतील] कत्ल किया गया। निहत । उ०—अव उ०---चाची जैसी कत्तिनों के सूत को कभी तो एक सौ दस सुन हाल असहावे फील । किस तरह किया हुक उनको नवर का करार देते हैं ।—रति०, १० ६६ । । | कत्ती--सवा बी० [सं० कर्तरी] १. चाकू । छुरी । २ छोटी कतील!–दक्खिनी०, पृ० २२० । केतूहल -सज्ञा पुं० [म० कुतूहल] दे० 'कुतूहल' । उ०—ढोल उ तलवार । ३' कटारी। पेशक । ४, सोनारों की कतरनी। ५. वह पगड) जो कपड़े को वेती के इमान वटकर बाँधी जाती | मारू एकठा कर इ कतूहल के लि - ढोला०, दू० ५५५ । है। उ०कत्ती बटि कसी पाग की सिर टेढ़ी से बढ़ी कतेक@t-- वि० [सं० कति -+एक] १ कितने । कुछ । २ अनेक। , थोड़े से। | मुख र ऐसे पत्ती जदुपdि के -गोपाल (शब्द॰) । कतवणु- सच्चा स्त्री० [अ० कितीव १ पुस्तक । किताब । २ घर्म कराव -सच्चा पु० [हिं० कर्तब दे० 'कतेच २ त ६ को ३ ग्र य । उ०—वेद फतेव पार नहिं पवित, कहन सुनन सो मस्त कत्रोव मस्त कोई मक्के में कोई काशी में --राम न्यारा |--कवीर बा०, पृ० ४७ । (ख) कुरान कठेवा इनस धमं०, पृ० ६५। । सर्व पति करि पूरा होइ । दादू०, पृ० ४७ । कत्य'--सा पुं० [हिं० कत्या] कसेरे को स्याही। लोहे की स्याही । कतोहर--- पु० [सं० कुतूहल या कौतूहल] दे॰ 'कुतुहल' । उ० -- -(रैमरेज) । चल्यो घरम तव मानसरोवर। बहुत हरष चित करत कतोहर । विशेप-१५ सेर पानी में माध सेर गुड या शक्कर मिलाकर वीर सा०, पृ० १२४ । पड़े में रख देते हैं। फिर उस घड़े में कुछ लोहचून छोडकर कृतौनी- सज्ञा स्त्री० [हिं० कतावनी] १. कातने की क्रिया या भाव । उसे धूप में उठने के लिये रख देवे हैं । योड़े दिनों में यह उठने ३. कातने को मजदुरी । ३. किसी काम में अनावश्यक रूप से लगता है और मुह पर गाज जमा हो जाता है। जब यह | बहुत अधिक निब करना 1४ निरर्थक और तुच्छ काम । स्याही-मायल भूरे रंग का हो जाता है, वे यह पक्का हो जावा कतई---वि० [अ० फतई] १. दे० 'काई-। २. वेदमाश । है मौर रंगाई के काम के योग्य हो जाता है। इसे लोहे की झत्तर- पुं० [देश॰] स्त्रियो की चोटी चांधने को डोरी। स्याही कहते हैं।