पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२५०

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कतरी ७६४ कति कृतरी-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] वह यंत्र जिसकी सहायता से जहाजं पर ' मुहा०—कता करना= कपड़े को किसी नाप के अनुसार काटना । नावें रखी जाती हैं। (लश०) ।। ।। कपड़े को व्यवना । जैसे,—दर्जी ने तुम्हारा अगा कढ़ा किया " कतल—सज्ञा पुं० [अ० कुत्ल दृघ । हत्या । । या नहीं । " क्रि० प्र०—करना ।—होना । २ ।। .,.: यौ०---कताकलाम ८ वात काटना । वात के बीच में बोल बैठना। कता तअल्लुक = सवधविच्छेद । विलगाव । कता नजर= कतलवाज-सज्ञा पुं० [अ० कत्ल + फा० वाज] बधिक। जल्लाद । सवध तोड़ लेना । दृष्टि हटा लेना । १. सहारक । मारनेवाला। उ०—अाई तजिहाँ तो ताहि तर नि:। कताई--संज्ञा स्त्री॰ [हिं० कातना] १ कातने की क्रिया । तनूजा तीर, ताकि ताकि तारापति तुफति ताती सी । कहैं। क्रि० प्र०—करना ।—होना । • " पदमाकर घरोक ही में घनश्याम काम को कतलवाज कुज ह्व हैं। २ कातने की मजदूरी । कतौनी । | काठी सी ।-+पद्माकर (पब्दि०)।" कतान---संज्ञा पुं० [हिं०yकत = कतना]१ प्राचीन काल का एक प्रकार कंतला-संवा पुं० [वैश० या प्र० कातिला] एक प्रकार की मछली का बहुत बढ़िया कपड़ी जो अलसी की छाल से बनता था। जो बडी नदियों में पाई जाती है। विशेष—यहकपडा इतना कोमन होता था कि चंद्रमा की चांदनी विशेषदेसकी लंबाई छह फुट तक की होती है। यह मछली बडी । पड़ने से फट जाता था। । बलवती होती है और पकडते समय कभी कमी मर्छो पर २ एक प्रकार का वढ़िया रेशमी कपडा जो प्राय बनारसी 'अाक्रमण करके उन्हें गिरा देती और काट लेती है । साड़ियों और दुपट्टों में होता है । ३ एक प्रकार का बलिया कत मि--सज्ञा पुं० [अ० कतले+माम]' सर्वसाधारण का वध । रेशम जिससे काशी शिल्क के कपड़े या वनारसी साडियां तैयार सवका वध । बिना विचारे अपराधी; निंपराध, छोटे बड़े होती हैं । संबका सहार। सर्व संहार । उ०—जहा पर कुतलाम' करे सब कताना–क्रि० स० [हिं० कातना का प्र० रूप] किसी अन्य से कातने नितनवजोबनवारी-भारतेंदु ४०, भा॰ २, पृ० ४१४ । का काम कराना । कतवाना ।। कतली- सच्चा झी० [हिं० कतरना]"१ मिठाई पकवान arदि के कतार--संज्ञा स्त्री० [अ०] १ पक्ति । पति । श्रेणी । लेना । उ० के घो विराट स्वरूप सुवक्ष पे, मुक्ति मालनि केरि कतार चौकोर करते हुए छोटे टुकड़े । २ चीनी की चाशनी मे पागे है ।--भक्तमाल (श्री०), पृ० ५७६ । २ यूथ समुह । झुई। । हुए खरबूजे या पोस्त आदि के बीज । । उ०--सुजन सुखारे करे पुण्य उजियारे अति पतित कतारे कतवाना--क्रि० स० [हिं० कातना का प्र० रूप] किसी दूसरे से ' भवसिंधु ते उतारे हैं ।-- पद्माकर (शब्द॰) । * कातने का काम लेना । कातने में लगाना । । केतारा-सज्ञा पुं० म० कान्तार, प्रा० कतार][स्त्री॰ अल्पा० कतारी] कतवार-सज्ञा पुं० [हिं० पतवार= पताईj१ कूड़ा करकट । उ०-- ' एक प्रकार की लाल रंग की ऊख जो बहुत लवी होती है। इसका मैली गली भरी कतवारन ।-भारतेंदु अ० भा०२, पृ०३३३ । ।। छिलका मोटा और गंदी नर्म होती है। इसका गुड बनता है। उ०। २ वेकाम की वस्तु । काम मे न माने लायक वस्तु ।। ऊख कतारे और पौढ़ वहुत हुए।—प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ॰ १७॥ तिवार --संज्ञा पुं० [हिं० कातना] [स्त्री० कतवारी] कतिने कतारा-सुज्ञा पुं० [हिं० कटार] इमली का फल ।। । वाला। उ०—-मन के मते न थालिए छोडि जीव की वानि । कतारी ---सञ्ज्ञा स्त्री० दे० 'कतार'। [हिं० कतार+ई (प्रत्य॰)] कतवारी के सूत ज्यों उलटि अपूठा आनि ।—कबीर । उ०—-तैसी भूमि सवै हरियारी । तैसी सीतल वहुत वयारी। }}i (शब्द॰) । बोलतू कीर कतारी । तैसी दादुर की धुनि न्यारी ।—भारतंदु कतवारखाना--सच्चा पुं० [हिं० फतवार+फा० खानहू] वह स्थान । । ग्र॰, भा॰ २, पृ० १२४।। जहाँ कुडा करकट फेंका जाता हौ । कडाखाना) ५)"" केना कतारी-सच्चा स्त्री० [हिं० कतारा] कतारे की जाति की ईख जी । . धा भी । कतह --अव्य०[हिं० कत +हैं कहीं। किसी स्थान पर। किसी' । उससे छोटी और पतली होती है। जगह। उ०—-मूदहू अखि कतहु कोड नाही ।—तुलसी कति--वि० [सं०] १. (गिनती मे) कितने । उ० --(क) मीत रही "T(शब्द०)। (ख) सुखि हे कृतहू न देखि मधाई --विद्यापति, " तुम्हरे नहि दारा। अब दिखाई पोरसहि हुजारा । फ६ मा | पृ० १६४। । कुल की कुशलाई । सुती सुवने कति में सुखताई ।--रघुराज कतहू@f—अव्य० [हिं० कत] ६० कतहु' । । । (शब्द॰) । (ख) अचर चीर घरइ हँसि हेरी। नहि नहि कता-संज्ञा औ० [अ० कृतम्] १. वनावट ! आकार । उ०-छपन वचन भनब कति बेरी --विद्यापति०, पृ० ४५। २ किस । । छपा के रवि इव भा के दंड उतंग उके। विधि कता के कदर (तौल या माप में)। ३ कौन उ०--मरत कीन नृत | बँधे पताके छुर्वे जे रवि रथ चाके ।—रघुराज (शब्द॰) । २ । पद पालन पै राम राम को युतिऊ । राम देव राजा नहि दूसरे । 'ढंग । वजा। जैसे,—तुम किस कता के अदमी हो ।'३." । इद्र एक सुर कतिऊ ।-देवस्वामी (शब्द०)। ४ बहुत से । ।। * कपड़े की काट छाँट । जैसे,—तुम्हारे कोट की कता अच्छी अगणित । उ०—जाहि के उदोत लहि जगमग होत जग जोत नही है ।४' काट। उ०-अलही प्रीति लतासु, इश्क फूल सो के उमग जामे अनु अनुमान हैं। चेत' के निचय जाते चेतन डहुडही ।—देखन प्रान कठो सु, देखते ही जिय रह सही - अचेत चय, लय के निलय जामे सकल स माने हैं। विश्वाधार ज• यू 9, पृ० १ । । । । । । । । । कति जामें स्थिति है चराचर की, ईति की न गति जामे श्रुति