पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२५

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उगेरा ५३९ उघटना उगेरा--प्रव्य० [हिं॰] दे० 'वगैरह' । उ०--मारी ग्रगे उगैरा 'मारत, इधर उग्रो को उग्रता को देव सी पड़ गई !--प्रेमघन, भा० . हैकण जीभ प्रताप हुवा ।-चांकीदास छ ०, ३ । १०३ । २, पृ० ३०६। उग्ग –वि० [ सु० उग्र, प्रा० उम्ग ] दे॰ 'उग्र' । उ०----तजो अब उग्रतारा-- संज्ञा स्त्री॰ [सं०] एक देवी [को०] । उम्ग असेप सुमाव । करो सर्व उम्पर क्षोभ सुचीव -हम्मीर उग्रतेजा--वि० [सं० उग्रतेजस्] प्रचड तेजस्वी । भीषण तेज से युक्त रा०, पृ० ८।। को०)। उग्गना--क्रि० अ० [सं० उद्गमन, प्रा० उगमण, उग्गव, उग्गण] उग्रदड-वि० [ स० उग्रदण्ड ] कठोरतापूर्वक शासन करनेवाला । दे० 'उगना' । उ०—पच्छिम सूरज उग्गवे, उलट गंग वह कठोर । क्रूर । निर्दयी कि]। नीर। --हम्मीर रा०, पृ० ५७ ।। उग्नदर्शन-वि० [स०] जो देखने में भयकर या डरावना हो (को०] । उग्रना —क्रि० अ० [ स० उगरण ! दे० 'उगरना' उ०—इते उग्रधन्वा----सूज्ञा पुं० [स० उग्रधन्वन्] १ इट्स। २ शिव । उग्गरे कदल चद कब्बी ! पृ० स०, २५। ७६४। । उग्रनासिक-वि० [सं०] जिसकी नाक वडी हो को] । उगार--संज्ञा पुं० [ स० उद्गार, प्रा० उग्र ] दे॰ 'उद्गार' । उग्रपथी-वि० [सं० उग्र + हि० पंथी] उग्र विचारोवाला । क्रांतिकारी उग्गाहा--संज्ञा पु॰ [ म० उद्गाया, प्रा० उग्गाहा 1 प्राय छंद के विचारोवाला ।। भेदो में से एक । इसका दूमरा नाम गोवि भी है। इसके उग्रपुत्र--वि० [सं०] शक्तिशाली वश में उत्पन्न होनेवाला [को०] । विषम चरणो में १२-१२ मात्राएँ और सैम चरणों में उग्रपुत्र--सज्ञा पुं० [स०] कार्तिकेय (को०] । १८-१८ माथाएं होती हैं। विपम गुणो में जगण न उग्ररेता--सज्ञा पुं० [सं० उग्ररेतस्) रुद्र का एक रूप (को॰) । होना चाहिए। उ०—रामा रामा राभा, अाठो जामा जौ उग्रवादी--वि० [ स ० उग्र +बादिन् 1 दे० 'उग्रपथी' । यही नामा । त्यागो सारे कामा पैही अतै हरी जु को घामा । ( शब्द०)। उग्रशेखरा - संज्ञा स्त्री० [सं०] शिव के मस्तक पर रहने वाली गगा । उग्र'- वि० [म०] १ प्रचड़ । उत्कट । ३ तेज । तीव्र । ३. कुडा। उग्रसेन--सज्ञा पु० [सं०] १ मयुर का राजा, कंस का पिता । २ प्रवल । ४ घोर। रौद्र । ५ कोप्नशील । उ०कोई उग्न कोई राजा परीक्षित का एक पुत्र । क्षुद्र कहावै कोई जीव कोई नरिंपर खावै । -कवीर सा०, पृ० ६।३ । ६ उच्च (को०) । ७ परिश्रमी (को॰) ।

  • उग्र--संज्ञा पु० [सं० उद्ग्रह ] ग्रहण से मुक्त होने का भाव।

उग्र--सज्ञा पु० [स्त्री॰ उग्रा १ महादेव । दृद्र । २ वत्सनाग विप । मोक्ष ।। बच्छनाग जहर । ३ क्षत्रिय पिता और शूद्रा माता से उत्पन्न उग्रहना-क्रि० स० [हिं० उग्रह छोडना । मुक्त करना । त्यागना । एक सकर जाति । ४ उग्र सज्ञक पांच नक्षत्र अर्थात् पूर्वा उगलना । फाल्गुनी, पूर्वापाढ़ पूर्वाभाद्रपद, मधा और भरणी । ५ सहजन उग्र--संज्ञा स्त्री० [सं०] १ दुर्गा । महाकाली । २ अजवायन । ३. का पेड । मुनगा । ६ केरन देश ७ एक दानव का नाम । वच । ४ नकछिकनी । ५ उग्र स्वभाव की स्त्री । ६ धनिया । ६ बृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम । ६ विष्णु । १० सूर्य । ११। ७ कर्कशा स्त्री ! ६ निपाद स्वर की दो थुतियो मे से रौद्र रस (को०) । १२ वायु । पवन (को॰) । पहली श्रुति ।। उग्रक--वि० [स०] बीर । शक्तिशाली [को०] । उघटना--क्रि० अ० [ स० पा० उत्कथन, उर्वकथन अथवा उदघाटन, उग्रकर्मा--वि० [स० उग्रकर्मन्] भयकर काम करनेवाला । शूरकर्मा पा० उग्घाटन ] १ सगीत मे ताल की जाँच के लिये मात्राओं | [को॰] । की गणना करके किसी प्रकार का शब्द या सकेत करना । उग्रकांड-सज्ञा पुं० [ १० उप्रकाण्ड | करैला। तान देना । सम पर तान लोडना। उ०—(क) सग गोप गोधन- उग्रगध'--सुज्ञा पुं० [सं० उग्रगन्च] १. लहसुन । २. कायफल । ३. गंव लीन्हे, नागा गति कौतुक उपजावत । कोउ गावत कोउ । हींग । ४ बर्वरी । ममरी । ५. चपा । नृत्य करत कोउ उघटत कोउ करताल बजावत । सूर०, १० । उग्रगघ--वि० [सं०] तीव्र गधवाला । तेज महकनेवाला । ४७६ । (ख) उघटत स्याम नृत्यति नारि । घरे अधर अपंगउपजे उग्रवा--- संज्ञा स्त्री० [सं० उग्रगन्चा] १ अजवायन । २ अजमोदा लेत हैं गिरधारि--सूर०, १०। १०५९। २ गई बीती बात ३ च ४ नकछिकनी । को उठाना । दवी दवाई बात को उभाड़ना। कभी के किए उग्रचडा--सज्ञा झी० [स० उग्रचण्डी दुर्गा [को०] । अपने उपकार या दूसरे के अपराध को बार बार कहकर ताना देना । जैसे (क) नकटे का खाइए उधटे का न खाइए । (ख) जो उग्रचारिणो--सुज्ञा स्त्री० [स०] दुर्गा (को०] । बात भूल चूक से एक बार हो गई उसे क्या बार बार उघटते उग्रज-सज्ञा पुं० [सं०] कस [को०] । हो । ४ किसी को भला बुरा कहते कहते उसके बाप दादे को उग्रजाति--वि० [स०] नीच वश में उत्पन्न । जारज [को०] । भी भला बुरा कहने लगना । उ०—सव दिन कौ भरि लेउँ आजु उग्रता-संज्ञा क्षी० [सं०] तेजी । प्रचडता । उद्दडता । उत्कटता । उ०- ही' तब छाड" मैं तुमको । उघटत हो तुम मातु पिता लौ २-२ नहि जानति हौ हमको । १० १०॥१५०८।