पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२४९

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कतनी कतरी कतनी}---सज्ञा स्त्री० [हिं० कतरनी] १. दे० 'कतरनी' । २. दे० - मुहा०---कतरब्योंत से = हिसाव से। समझ बूझकर । सावधानी 'चरी ' । से । जैसे,--वे ऐसी कतरब्योत से चलते हैं कि थोड़ी आमदनी छतफल संज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'क' (को०)। में अपनी प्रतिष्ठा बनाए हुए हैं। धमाल-सज्ञा पुं० [सं०] अग्नि किये। कुतरर्वां--वि० [हिं० कतरना+व (प्रत्य॰)] घुमावदार। रेवकतरछाँट---सज्ञा स्त्री० [हिं० कतरना-+छाँटना] कतरब्योंत । कमी | दार 1 टेढ़ा । तिरछा ।'५ ।। वेशी । काटछाँट ।। यौ०---कतरवी चाल = (१)देंढी चाल । वक्र गति । (२) अटपटी कतरन--सज्ञा स्त्री॰ [हि० कतरना] कपड़े, कागज़ या धातु की चद्दर चाल । - - अादि के वे छोटे छोटे रद्दी टुकड़े जो काटछाँट के पीछे वच कतरवाई-सच्चा स्त्री० [हिं० कतरवाना+याई (प्रत्य॰)] कतरवाने रहते हैं । जैसे, पान को कतरन । कपड़े की कतरन । . की क्रिया ! २. करवाने की मजदूरी । कतरना'---क्रि० स० [स० कर्तन] सिधा कतरन, कतरनी] १ किसी कतरवाना--क्रि० स० [हिं० कतरना] कतरने का काम दूसरे से वस्तु को कैची से काटना । २ (किसी औजार से) काटना । कराना । दूसरे को करने में प्रवृत्त करना । कतरना-सृज्ञा पु० १. बड़ी कतरनी । वडी के ची। २ वात काटने- कृतरा’----संज्ञा पुं० [हिं० कतरना] १ कटा हुआ टुकड़ा । खड। वाला व्यक्ति। बकट अादमी । जैसे,—तीन चार कतरे सोहन हलुओं खाकर वह चला गया। कतरनाल- सच्चा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की घिन्नी जिस पर दोहरी २. पत्यरे का छोटा टुकड़ा जो गढ़ाई में निकलता है । | गड़ारी होती है।-(ल०) ।। कतरा-सा पु० [वश०] एक प्रकार की बड़ी नाव जिसमे माँझी कतरनी-सच्चा [हिं० कतरना] १. वाल, कपड़े आदि काटने का । खड़े होकर डौड़ चलाते हैं। यह पटेले के वरावर लवी पर उससे एक अौजार । कैच 1 मिकराज । उ०—(क) कपट कतरनी कम चौडी होती है। इसपर पत्यर आदि लादते हैं ! पेट में, मुख वचने उचारी -धरम०, पृ० ७२ । कतरा-सज्ञा पुं० [अ० कुतुरहू] वू दे। विदु । उ०—गुज से कुल महा०--कतरनी की जवनि चलना=बकवाद करना । दूसरे की • कतर से दरिया बन जादै । अपने को खोए तव अपने को | बात काटने को बहुत वकवाद करना । पावे |--भारतेंदु ग्रं॰, भा० २, पृ०-५६८1 १ लोहारो और सोनारी का एक औजार जिससे वे घातूम्रो की कतराई--सा जी० [हिं० कतराना]१. कतरने का काम । २ करने चदृर, तार, पार आदि काटते हैं। यह सँडसी के प्रकार की कीमजदूरी होती है, केवल मुहै की मीर इसमें कतरनी रहती है। काती । कतराना'-सज्ञा स्त्री० [हिं० कतरना],१ किसी वस्तु या व्यक्ति को ३ तेंवलियो का एक अजार जिससे वे पान करते हैं । बचीकर किनारे से निकल जाना । जैसे,--वह मुझे देखते ही विशेप-इसमें लोहे की चद्दर के दो वरावर लॅवें टकड़े या वास कतरा जाता है । उ०—–अवासी इस मकान पर कतरा के एक या सरकडे के सोलह सुत्रह अगुल के फाल होते हैं जिन्हें दाहिने गली मे जाने लगी --फिसाना०, मा० ३, पृ० २९ । २ नाक हाथ में लेकर पान करते हैं। भौं सिकोडना १. भापत्ति करना । उ०—कमी इन सादे भावो ४ जुलाहो का एक औजार जिससे वे सूत कातते हैं । ५ मोचियों को 'मोडे और ग्राम्य कह कराएंगे।—प्रेमघन०, पृ० ३३९ । और जीनगरों की एक चौड़ी नुकीली सुतारी जिससे वे कडे सयो॰ क्रि०—जाना। स्थान में छोटी सुतारी जाने के लिये छेद करते हैं । ६. सादे कतराना--क्रि० स०[हिं० कतरना का प्रे० रूप] कटाना। कटवाना। कागज या ममजामे को वह टुकड़ा जिसे छीपी वेले छापते छंटवाना । समय कोना बनाने के लिये काम में लाते हैं। जहाँ कोने पर। सयो० क्रि—डालना । पूरा छाप नहीं लगाना होता, वहाँ इसे रख लेते हैं। चंवी । कतारसाज-सज्ञा पुं० [सं० कतरना+रसाखेडरा नाम का पकवान पत्ती । ७ एक मछली जो मलावार देश की नदियों में होती है। जो बेसन से बनता है। कतरव्योत-----संज्ञा स्त्री०[हि० कतरना+व्योंत] १. काटछाँट । २ कतरीसच्चा सी० [सं० फत्तरी=-चक्र] १. कोल्हू की पाट जिसपर | उलटफेर । हेरफेर । इधर का उधर करना । आदमी वैठकर दैलो को होकता है। कातर । २. पीतल का क्रि० प्र०—करना ।--में रहना --होना । बना हुआ एक ढलव जेवर जिसे नीच जाति की स्त्रियाँ हाथ | ३ उधेडवुन ! सोचविचार ! मैं पहनती हैं। ३. लकड़ी का बना हुआ एक औजार जिससे क्रि० प्र०-~करना !-भे रहना ।—होना । राज कारनिस जमाते हैं। यह औजार एक फुट लंबा, तीन इंच ४ दूसरे के सौदे सुलुफ में से कुछ रकम अपने लिये निकाल चौडा र चौथाई इंच मोटा होता है। - लेना । जैसे,—बाजार से सौदा लाने में नौकर कुछ न कुछ कुतरी-सला बी० [हिं० कतरना]१...जमी हुई मिठाई का कटा हुआ कतरब्योत करते हैं। ५ हिसाव किताव वैठाना । युक्ति । - टुकडा । उ बादशाह ने कहा कि हर नहीं है. हर एक एक - . जोडतोड । जैसे,—ऐसी कतरब्योत करो कि इतने ही में एक लड्डू और एक, एक कतरी माजून की खावे और वहाँ से काम बन जाय । वाहर आये हुमायू०, पृ० ५४,J२. क़तरने, या छाँटने का २-३० औजार ! कॅची -(लश०}} है । ।