पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२४६

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कडुप्रा तेल केढेरोन विपत्ति और कठिनाई में घोर चित्त । जैसे,—यह कडए जी के कड --सज्ञा पुं० [हिं० है हा] खुरादनेवाला । जो किसी वस्तु को अादमी का काम है । खरादकर ठीक करे । उ०--ग्रीव मयूर केर जस ठाढी। कोड २ तीक्ष्ण । झालदार । जैसे, कडे तक, कई मा तेल । ३। फेर कडर काढी ।—जायसी (शब्द॰) । तीखी प्रकृति का । गुस्सैल । तुदमिजाज । झलना । अक्ख ३ । कडेलोट-सज्ञा पुं० [हिं० कडा+लोटना) मालेख में की कसरत । जैसे,--फड ग्रा प्रादमी । उ०-कउए से मिलिए, मीठे से विशेप--इसमे ऊघतरी करके हाथ को मोगरे पर लाते और उसी डरिए । पर बदल तौलकर ऐसे उड़ते हैं कि सिर मोगरे के पास कधे के महा०--- कड़ा होना = नारा न होन। 1 निगडना । जैसे,—इतनी आसरे रहता है और पाँव पीठ पर से उलटे उडकर नीचे ही वात पर वे मुझसे कड.ए हो गए। अाता है। ४ क्रोध से मरा । जैसे का मिजाज, कई निगाह । क्रि० प्र०—होना = नाराज होना । विगह ना। कडेलोटन--सज्ञा पुं० [हिं० कडे लोट] 'दे० कडेलोट' । ५ अप्रिय । जो भला न मालूम हो । जो न भावे । जैसे, कडोडा-संज्ञा पुं० [हिं० करोडा बहुत वडा अधिकारी जिसके अधीन | कड ई वात । बहुत से लोग हो । बहुत वडा अफसर । मुहा०—कडा करना = (१) धन विगडना । रुपए लगाना। कडोर--सज्ञा पुं० [हिं० करोड] १. कोटि । करोड । २ वहुसख्यक । जैसे,—जहाँ इतना खर्च किया वहाँ दो रुपए और कब ए करेंगे। उ० पाँच भाइ रस 'भग करतु हैं, इन वस परिय (२) कुछ दाम खडा करना । अने पौने करना । जैसे,— कहोरी ।-जग० श०, पृ० ८० । माल वहुत दिनों से पडा था, ५) कडए किए। कड़वा मुह = कढ़ना-क्रि० स० [हिं०] दे॰ काढ़ना। निकालना । उ०—कढही वह मुह जिससे कट शब्द निकले । कटुभाषी मुख । उ० - हुसैन जो जीव आस ।पृ० T०, २९ । खीरा को मुख काटि के मलियत लोन लगाये ! रहिमन कड एकडढा+G- वि० [हिं० काढ़ना]ऋण लेनेवाला । कर्ज काढनेवाला । मुखन को चहिए यही उपाय।--रहीम (शब्द०)। फड र कड़ढ़--वि० [हिं०] दे॰ 'कड्ढा' । होना = बुरा बनना। जैसे,—तुझे क्यो सबसे कड ए होते हो ? कढडेरना--क्रि० स० [हिं० काढ़ना] काढना। निकालना। ६. विकट । टेढ़ा । कठिन । जैसे,—उस पार जाना जरा कडू पा कढत--सज्ञा स्त्री० [हिं० 'कढ़ना'] १ निकासी। खपत । २ कढने काम है । या काढ़ने की क्रिया या भाव। बाहर निकलने या निकालने मुहा० -कड ए कसैले दिन =(१) बुरे दिन । कष्ट के दिन । की क्रिया या भाव । (२) दोरसे दिन जिनमे रोग फैलता है --जैसे,---क्वार, कातिक या फागुन, चैत । (३) गर्भ का आठवाँ महीना जिसमे कढन-क्रि० अ० [स० कषण, प्रा० कड्ढ़न] १ निकलना । बाहर अना। खिचना । २ उदय होना 1,३ बढ़ जाना। किसी गर्भ गिरने का भय रहता है । कड़ी घूट= कठिन काम । वात में किसी से बढ़कर प्रमाणित होना । ४. (प्रतिद्वद्विती में) कडा तेल-सुज्ञा पु० [हिं० फड + तेल] सरसो का ते न जिसमे निकल जाना (अगे) । बढ़ जाना (भागे)। वहुत झाले होती है । कड प्राना--कि० अ० [हिं० फड से नाम०] १. कडा मुहा०-कढ़ जाना = किसी के साथ चले जाना । यार के साथ लगना । चले जाना । फुटव छोडकर उपपति करना । उ०—-गोकुन के जैसे,—तरकारी में मेथी अधिक हो गई, इससे कड, अाती है। कुल को तजिक नजिकै वन बीथिन में वढि जइए । ज्य २ बिगडना । रिसाना। खीझना । ३ नदि रोकने के कारण पदमाकर कुज कछार विहार पहारन मे वढि जइए । हैं नैदअाँख में किरकिरी पड़ने का सा दर्द होना। नद गोविंद जहाँ तहाँ नद मे मदिर में पढि ७ इए। यी चित कड आहट -सज्ञा स्त्री० [हिं० कडा +हट (प्रत्य०)] कड अापन । चाहत एरी भटू मनमोहन लेके कह’ कढ़ि जहए 1 -पद्माकर कई रोटी या खिचडो--सज्ञा[हिं०]वह भोजन जो मृतक के घर (शब्द॰) । | के प्राणियों के पास उसके सवधी दो तीन दिनो तक भेजते हैं । कड वाई-सज्ञा स्त्री० [हिं० कडा +ई (प्रत्य॰)] १ कटुता । २ । | कढ़ना--क्रि० अ० [हिं० गाढ़ा]दूध का प्रौटाया जाकर गाढ होना । बुराई। उ०—जगन्नाथ के दरस न करके अजहन गई कड वाई कढ़नी'.- सज्ञा स्त्री॰ [स० कर्षणी, प्रा० कढ़नी]मथानी को घुमाने कवीर सा०, पृ० ४६ । की रस्सी । नेती ।। कडेगा--वि० [हिं० कडा+अग] मोटा तगड़ा। अक्खड । कढन--सज्ञा ली० [हि० काढ़ना = निकलना]बरसात में जमीन को कड --वि० पु० [स० कटे या कटुक] दे० 'कड झा' । वह अति म जुताई जिसके बाद अनाज बोया जाता है । कड ला—सज्ञा पु० [हिं० फड+ ऊता (प्रत्य॰)] हाथ या पैर में क्रि० प्र०—काढ़ना (जोतन)। | पहनने का वच्चो का, छोटा कडा कढ़नी--वि० सी० [हिं० फाढ़ना= निकालना] निकालने वाली । कृडे दम-सज्ञा पुं० [हिं० कड़ा+ ग्र० दम] दृढ़ । अविचल । उ० यह प्रयोग समस्त पद के अत मे आता है। जैसे,—कृमीदामादमी कदम चाहिए, जिसका अन्याय देखे उसे डाँट दे । कढ़नी, खूटकढ़नी । फाया, पृ० १२५। कढ़ाना--क्रि० स० [हिं० कलाना] ३० 'कढ़लाना' ।