पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२४५

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कडाही ७५६ के । क्रि०प्र०—चढ़ना = मच पर रखा जाना ।—-चढ़ाना = प्रचि पर केवट । परि लगानेवाला । उ०--(क) कौन नाम हेमन कहे, रखना। कौन देउँ कडिहार कीन नाम नारिन कहें, जाते हो कडाही - संज्ञा स्त्री० [हिं० फडाह] छोटा कहाहा, जो लोहे पीव्रत, उवार }---कवीर श०, प० ४५४ । चौदी अ} दि का बनता है। कडी--- सवा सौ०[सं० कटकी, प्रा० फडई कडी]१ जजीर या किडी क्रि० प्र०--चढ़ना = अच पर रखा जाना 1---चढ़ाना = ग्राँच की ही का एक छल्ला । २ छोटा छल्ला वो किसी वस्तु को पर रखना। ग्रेटकाने वा लटकाने के लिये लगाया जाय । जैसे, पखा कडियो मुहा०—कदाही करना = कढाही चढ़ाना। मनौती पूरी होने पर में लटके रही है । ३. लगाम । उ०—-हुरि घोडा ब्रह्मा कड़ी किसी देवी देवता की पुजा के लिये हलवा पूरी करना। कड़ाही वासुकि पीठि पलाने ! चाँद सुरुज दोउ पायडा, चढसी सेतु | मे हाय दालना= अग्निपरीक्षा देना। सुजान-कबीर सा० सं०, भा० १, १६ २४ । ४ गीत का यो०--कड़ाही पूजन= किसी शुभ कार्य के निमित्त पकवान एक पद । ५ वंड । विभाग । उ०—यही सोच में तो बनाने के निये कडाही चढ़ाने के पहले उसकी पूजा करना। चौकडी को कई वीत गई --श्यामा०, पृ० १०६ । कड' -सज्ञा सी० [हिं० कली] १ कली । उ०—-कसतूरी कडिकडी--सच्चा स्त्री० [सं० फाइ] १ छोटी धरने । उ०—र की कही केवडी मसकत जाय महक्क -- ट्रोला०, दू० ११३ । २ ३० और किंवाई तक वेंच दी गई है-—ठेठ, पृ० ४३ ।। महा०—कडीवोलना = धरन से चिटकने की ती आवाज निकलना कड़ि-सज्ञा स्त्री० [सं० फटि, प्रा० कडि कमर । उ०---अरि चौडौं " जो रहनेवाने के लिये प्रेशकुन समझा जाता है। कडि पातलो ।---वी०, सो० पृ० ७७ । २ भेड देकरी अादि चौपायो की छाती को हड्डी । कडि- सज्ञा वी० [हिं० कडा]ककण । उ०-घोडा वैले यो हाँसला। कडी'.-सच्चा जी० [हिं० कडा = फठिन]कठिनाई । दिक्कत । स कैट। कडि सोनहरी, ये जोड़ी-वो रास, पृ० ११ । दु ख । मुसीवत । कडिचालqt-- सुज्ञा पुं० [सं० कटि + चालन]दे० 'कटिचालन' । कमर क्रि० प्र०—उठाना। झलना ।-सहना। लचकाना कमर नचाना। उ०—कञ्चिचालउ गोरी करई ।- कडी-- वि० स्त्री० [हिं० कडा= कठिन] कठिन । कोर! सक्छ । वो रासो०, पृ० १०१।। मुहा०—कड़ी वरती= (१) वह प्रदेश जहाँ के लोग हट्ट कट्ट हो। कडितम्----सज्ञा पुं॰[कन्नड़] दक्षिण मारतीय व्यापारियों के हिसाब (२) भूत प्रेत के रहने की जगह । कड़ी दृष्टि बी अखि की वही ।—मा० प्रा० लि०, पृ० १४६ । रखना=पूरी निगरानी रखना है ताके में रहना । जैसे, कडितुल-सज्ञा पुं० [स० कडितुल]१ खङ्ग । तलवार । २ वनि का देखना उस लड़के पर कड़ी प्रांव रखना, कही जाने न पावे । चाकू या छुरी कि०, । केडी दृष्टि वा अाँख का होना=(१) पूरी निगरानी होना। कडियल-नज्ञा पुं० [स० काण्ड] ऊपर से फूटा हुआ मटके वी घड़े (२) कोय का भाव रहना । जैसे,—उन दिनो समाचार पत्रो ग्नादि का टुकड़ा जिसमें आगे रखकर दवाई जाती है। पर सरकार की कडी अाँख घी । फढी सुनाना = खोटी खरी सुनाना । कुडियल-वि० [हिं० कडा कडा । इट्टा । कट्टा । यौ०..-कड़ी फेद= सपरिग्रम कारागार । यौ०--कड़ियल जवान=हट्टा-कट्टा जवान । कडीदार-वि० [हिं० फड़ी+दार (प्रत्य॰)] जिसमें कडी हो । कडिया'-सज्ञा ०[स० काण्ड, हि० कांडी अरहर का सूखा पैड ।। | छल्लेदार। जो फमल झाड लेने के बाद बच रहता है । कोडी । रेहटा । कडीदार--सा पुं० एक प्रकार का कप्तीदा जो कडियो की लडों कडिया' - सुज्ञा स्त्री॰ [हिं० कर्णधार] १ करिया ! केवट । २. | की तरह का होता है। पवार ---उ०—में राम डगमगी छोडाई, निर्भय कडिया विशेष-- कपड़े के नीचे से सुई ऊपर निकालकर धागे के पिछले लेमा ।—मलूक०, पृ॰ ३ ।। माग में फदा इस प्रकार वनावे कि तागा घूमकर अर्थात् कड़ियाली -सश औ० [हिं० करियारो] करिया । लगाम । फदी बनाता हुआ घागे के पिछले 'नाग के नीचे से जाये। फिर ३०-कीर माया पापणी हरि ना करें हराम । मुखि सुई की नोक के नीचे से तागे का दुसरा फदा देकर सुई को कडियाली कुमति को, कहण न देई राम |--कवीर ग्र०, वाहर निकाले । पु० ३२। का -वि० [सं० कटुक, प्रा० कडुम्] [G० कडई] १ कट । कडिहां-- सा जी० [प्रा० कडि+हर] कमर ! स्वाद में उग्न यौर अप्रिय । जिउका तीए स्वाद जीभ को कडिहार'मा पु०स० कर्णधार २ ६० 'कर्णधार' । २ निकालने अमह्य हो । जैसे, नीम, इद्रायन, चिरायता यादि का । वाला । उद्धारक । उ०-चत्र भूज पके जी सहवे जी और चौके क्रि० प्र०—लगना । तुम मही चार ही कड़िहार जग ६ वचने यह निश्चय कही।--- यौ०-कड़, फर्मला=अरुचिकर! कटु । बुरा। कडा जहर= कवीर सा०, पृ० १६६ । (१) जर स क ड झा! बहुत कइ अा । (१) प्रत्यत् कड़िहार -चं पुं० [सं० फर्णधार, प्रा० कण्णधार कर्णधार । अवचिकर । बहुत बुरा लगनेवाला । कर पा जी = फ४५ जी।