पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२४३

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कठिठ कवी : कठ्ठियाएं!--सज्ञा चौ० [सं० काण्ठा] १. सीमा। २. घेरा। कड़कनाल---सज्ञा पुं० [हिं० कडक+नाल]वह चौड़ मुड की तोप कडकर-सुज्ञा पुं० [सं० कडडुर] तृण । मूग अादि दिन धान्य का जिससे बड़ा भयकर शब्द होता हैं और जो शत्रसेना को इठल (को०) । डराने और भड़काने के लिये छोड़ी जाती है। कडेग-संज्ञा पुं० [अ० फडङ्ग] एक तरह की शराब ।। कड़कर्वाका--सुज्ञा पु०[हिं० फडक+बाँका] १ वह जवान जिसकी कुडंगर---सज्ञा पुं० [सं० कडङ्गर] दे० 'कडेकर' [क]। दएट से लोग हिल जायें । २ नोक झोक का जवान । बाँकी कड गा—संज्ञा पुं० [हिं० केड़ा+अंग + (प्रत्य॰)] मोटा । तगड़ा । तिरछा जवान । छैला । | अक्खड़ ।। कडकविजली--संज्ञा ली० [हिं० कडक -+बिजली]१. एक गहना जिसे कड-वि० [सं०] १ वाणीविहीन { {गा । २. कर्कश । ३ श्रुतिकट । स्त्रियाँ कान में पहनती हैं। इसकी वनावट चंद्राकार होने से ४ अवोध ! मूर्ख ०१ । । इसे 'चाँदबाला' भी कहते हैं । २. तोड़दार बिजली जिसकी कड–संज्ञा पुं॰ [देश०] १ कुसुम ! बरें । २. कुसुम का वीज । अावाज बडी कडी हो । ३. एक यत्र जिसके द्वारा बिजली क —संज्ञा स्त्री० [सं० कटि, प्रा० कडि] कटि । कमर । उ०-- उत्पन्न करके वात, लकवा अादि के रोगियों के शरीर में दौडाई पाछे अवसँग हुलियौ कड बधेि ममशेर !-—० ०, पृ० ४१ । जाती है । कडक-सज्ञा पुं० [सं०] समुद्री नमक (०) । कड़कस -वि० [सं० फर्कश अर्यवा कड़ा+कस] दे० 'कर्कश' । कुडक—संज्ञा स्त्री० [हिं० कड़कड] १, कडकडाहट का शब्द । कठोर । उ०—उठ कडकस शुत्रेघण। तुप ग्राए । आतुर उभे अयोध्या शब्द । जैसे,—-विजली की कहक। २. तप । दपेट । जैसे,—- अाए ।----रघु°, ह° पृ० ११२ ! वीरों का कइक । ३ गाज । वन्न । ४. घोड़े की सरपट चाल । कडका--संज्ञा पुं० [हिं० कड़क कड़ाके की आवाज । उ०—बिजुली फङका क्रि० प्र०—-जाना। --दौड़ना। चमक भई ३जियारी । कड़वा घोर सोर अति भारी ।—घट०, १० ३७८ | '५ पटेबाजी का वह हाथ जो विपक्षी के दाहिने पैर को वाई अर कड़ --ज्ञा पु० [हिं० कडक] वीरों की प्रशंसा से भरे लडाई के | मर जाय । क्रि० प्र०-----मारना ! गीत जिनुको सुनकर वीरो को लड़ने की उत्त जना होती है। ६ कसक । दर्द जो रुक रुककर हो । ७ रुक ढुककर और जलन उ०—(क) मिरदग और मुहबग चग सुढ ग स ग वजावही । के साथ पेशाव उतरने का रोग । करताल ६ दै ताल मारू ख्याल कडखा गावही गोपाल क्रि० प्र०—यामना ।—पकड़ना । । (शब्द॰) । (ख) मोरा वैरी कड़खा गावे मनमय विरद कडकुड़---सुज्ञा पुं० [अनु॰] १. दो वस्तुप्रो के आघात का कठोर 'वखानि [---‘मारतेंदु ग्र०, 'मा० २, पृ० ५०२। शब्द 1 वोर शब्द । जैसे,—-ताशे या बादल की गरज का । २. कच्छ -सुज्ञा पु० [हिं॰] दे॰ 'कलछी’ ---देशी०, पृ० ८२ । कड़ी वस्तु के टूटने या फूटने की शब्द । जैसे,—वह हुड्ढी को कड़छा—सधा पुं० [हिं॰] [वी० कइछी] लोहे की वडो कलछुन या कडकड चवा गया। कलछी ।। कड़कडाता—वि० [हिं० कड़कड़][स्त्री० कड़कड़ाती] १ कड़कड़े शब्द . कडखेत--सी पु० [हिं० कड़खा+ऐत (प्रत्य॰)] १ कडबा गाने करता हुअा। २. कडाके का । बहुत तेज। घोर ! प्रचंड। | वाला पुरुप । भाट । चारण । उ०--कोकिला कडकि उधरत जैसे,—कड कड विा जाडा, कडकडाती धूप । , ' कइखेत ही वदत बदी विरद भर आगे बढे । भारतेंदु कडकडाr-क्रि० प्र० [अ० कड़] १ कई कड़ शब्द करना, । घोर : ग्रं॰, भा० २, पृ० ४७० | नाद करना। २ तोड़ना । चूर चूर करना । जैसे --छाती पर कडव-सच्चा पु० [सं०] कलत्र । पत्नी । २ नितव । ३ एक प्रकार का चढ़कर तुम्हारी ऋडियाँ कडकड़ा देंगे। उ०—जहाँ डुकडे,वीर, पात्र (को०] । गजराज हय हड़ हड, घड्डू धरनि ब्रह्माड गाजे -सुदर ग्र०, कड़वघ —सी पुं० [हिं० कटिचन्च] किंकिणी । करधनी । उ०—भ०ि २, पृ० ८८६ ।। छक कड़वध सुचना छाजै । पट अग राजे पुण पीत ।--रघू० कडकडाना-क्रि० स० [अनु॰] घी को साफ और सोध करने के ९०, पृ॰ २५३ । लिये थोडी देर तक हलकी अच पर तपाना। कड़वडा--वि० [सं० कर्बर = कवरा] जिसका कुछ भाग सफेद और कडकडाहट–सुज्ञा सी० [हिं० कडकड़] १. कड़कड़े शब्द गाज । कुछ दूसरे रग का हो । कवर। चितकबरा । जैसे,---कड़बड़ी घोर ताद । । दाढी ! कडकना-क्रि० अ० [हिं० कड़कड] १ कडक शब्द करना। कुडवड़ा सच्चा पुं० वह मनुष्य जिसको दाढी के कुछ बाने काले मोर गडगडाना । जैसे,—वादल कडकना । ३ चिटकने का शब्द कुछ सफेद होते हो । होना । ३. जोर से शब्द करना। दर्पटना । जैम,- इतना कडवा-सज्ञा पुं० [हिं० का कोई गोल वस्तु, जैसे पुराना तुवा सुनते ही वे कड़ककर वोले ! ४ चिटकना । फटना। दरकन। । कडाही अादि जो हल के फाल के ऊपर इसनिये वाघ दी जाती ५. आवाज के साथ टूटना । ६. कड़े रेशमी कपड़े फाहे पर है कि वह बहुत गहरा न धसे । से कट जानी । कड़वी सच्चा श्री० [हिं० का ३० कडवी' । उ०-कही बल्ली