पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२४२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

कृठिना ७५६ कठ्ठना

  • .e

= 1 कठिना–वि० भोजन पकाने के मिट्टी के बर्तन सबधी (को०)। कटार कठेठ ।-भूपण (शब्द०) । २ अधिक वलवाला । कठिनाई –सुज्ञा स्त्री० [स० कठिन+हिं० आई (प्रत्य॰)] १ । । दृढ़ाग । तगद्धा। | कठोरता । सख्ती । २. मुश्किल । क्लिष्टता । ३ असाध्यता। कठेठी-वि०, जी० [हिं० कठ्ठा] कठोर । कड़ी। उ०—(क) दु माध्यता । माखन सो मेरे मोहन को मन काठ सी तेरी कठेठी ये बातें 1-. कठिनिका--संज्ञासी० [सं०]१ कानी उँगली । छिगुनी। कनिष्ठिका। केशव (शब्द) । (ख) माखन सी जीभ मुख कज सो कुवरि, २ खटिया मिट्टी [को०] । कहू काठ सी कठे वात क से निकरति है ।—केशव' शब्द०)। कठिनी-मंज्ञा स्त्री० [सं०] दे॰ कठिनिका' । | ' । (ग) जी की कठेठी अमेठी गॅवारिन नेकू नहीं हँसि के हिप कठियल -सज्ञा स्त्री० [हिं० कोठ+यल (प्रत्य॰)] खडऊँ । उ०--- हेरी ।-ठाकुर (शब्द॰) । कठियल दिय सिर घरिय, प्रणाम कर, झिल गय बल तिज कुठेर'- वि० [सं०] कष्ट ग्रस्त । पीडित [को॰] । नगर मजार ।-रघु० ख०, पृ० १२० । कठेर-सज्ञा पुं० निर्धन । रक [को०)। कठिया'- वि० [हिं० काठ] जिसका छिलका मोटा और कडा हो । कठन--संज्ञा पुं० [हिं० काठ+एल (प्रत्य॰)] १ धुनियों की कमान । जैसे,—कठिया वादाम, कठिया गेहू', कठिया कसेरू। ' जिसमें ऊन या रूई धुनते समय धुनकी को वाँधकर लटकाते यौ०---कठिया गेहू = एक गेहूं जिसका छिलका लाल और मोटा हैं । २. कसे का काठ का एक औजार जिसमे एक गड्ढ़ा होता है । इसे 'ललिया' भी कहते हैं। इसके अटे में चोकर । । होता है । इस गड्ढे मे घातु का पात्र रखकर उसे गोर बहुत निकलता है ।। | करते हैं। कठिया—सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की भाँग जो झेलम नदी के 'कठेला–संज्ञा पु० [हिं० काठ + ऐला( प्रत्य० )] [स्त्री० अल्पा० | किनारे बहुत होती है। कठेली कठौता । काठ का वरतन । कठियाना--क्रि० अ० [हिं० फठि से नाम०] काठ की तरह कहा 'कठेती' -सज्ञा स्त्री० [हिं० फठेला 1 वाठ का एक छोटा वतन । हो जाना । सूखकर कडा हो जाना। ' कला की तरह छोटा बर्तन । कठी-सज्ञा स्त्री० [हिं० काठ] मशाल । मशाल की लकडी । उ० लकला। उ०- कोदर--संज्ञा पुं० [हिं० काठ + उदर] पेट का एक रोग जिसमे पेट खेतों में पानी लगाने के लिये जो लोग कठी लिए रात रात । १ढ़ता और कडा रहता है । | मर 'भूतो की भाँति घूमते दिखाई पड़ते हैं ।—किन्नर०, कठोर---वि० [सं०] १ कठिन । सख्त । कडा । २ निर्दय । निष्ठर। बेरहम । । कठोर--सुज्ञा पुं॰ [सं० कठोरव] सिंह ।—(दि०)। । यौ॰—कठोरगभf= वह स्त्री जिसका गर्म पूर्ण विकसित हो । काना—क्रि० अ० [हिं० काठ से नाम०] काठ सा कठोर या कड़ा / कठोरहदय । | हो जाना । ", कठोरता संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ कहाई । सख्ती । २ निर्दयता । कठुर–वि० [सं०] क्रूर । कठोर [को०]। ' ' निष्ठुरता । वैरहमी । । कठुला--संज्ञा पुं० [हिं० कठ= ला० (प्रत्य॰)] १. गले की माला जो | कठोरताई-सज्ञा स्त्री० [हिं० कठोरता+ई (प्रत्य॰)] (कठोरता बच्चो को पहनाई जाती है । दे० 'कठला' । उ०—कठुला कंठ । का बिगड़ा हुआ रूप)१ कठोरता । कठिनता । २ निर्दयता। ब्रज केहरि नख राजे नसि बिंदुका मृगमद भाल । देखत देत कठोरपन- संज्ञा स्त्री॰ [हिं० कठोर+पन (प्रत्य॰)] १ कठोरता । असीसे ब्रज जन नर नारी चिरजीवो जसोदा तेरो वाल ।-- : कडापन। सख्ती । २ निर्दयता । निष्ठुरता। उ०—जनु सूर (शब्द॰)! १ माली । हरि । उ०—(क) भलं मू जि के 1 ,कठोरपन घरे शारीरू। सिंह घनूप विद्या वर वीरू।—तुलसा नेक सु खाक सी के दुख दीरघ देवन के रिहौं। सितकठ के । (शब्द०)। । कठन को कठुला दसकट के कंठन को करिहौं । केशव कठोरत्व--सुज्ञा पुं० [स०] दे० 'कठोरपन' । उ०—तव उनका (शब्द०) । (ख) मधि हीरा दुह दिशि मुकुतावलि कठुला कठ वास्तविक, स्यूल, अप्रसाष्प, अव्यकृत कठोरत्वं प्रकट हो जाता विराज । वधु कवु कहूँ भुज पसारि जनु मिलन चहत द्विज ""' है ।--विश्वप्रिया पृ० ६० । राजा -रघुराज (शब्द०)। ' कठोल–वि० [सं०] कठोर [फ'०] । कट्वाना--क्रि० अ० [हिं० फोठ से नाम०] १. काठ की तरह का कठौत-सज्ञा स्त्री० [सं० काट + पात्र, हि० कठ + अति (प्रत्य॰)] हो जाना । सुखकर कड़ा हो जाना । २ ठढक से हाथ पैर छोटा कठौता।। अादि का ठिठुरना । कंठीत----सज्ञा पुं० [सं० काष्ठ+पात्र, हिं० फठ +ौता (प्रत्य), कठूमर---सज्ञा पुं॰ [स० काष्ठ उदुम्बर, हि० कठ + कमर]जंगली गूलर काठ का एक बड़े बरतन जिसकी वारी वहुत ऊँची मेरि | जिसके फल बहुत छोटे छोटे और फीके होते हैं। ढालुम होती है । उ० -केवट राम र जायसु पावा । पानि कठेठ, कठेठा)---वि०, पुं० [हिं० काठ+एठ(प्रत्य०),हि०काठ + ऐठा कठौता भरि लै अावा ।—तुलसी (शब्द०) । (प्रत्य॰)] [बौ० कठेठी] १ कहा।' कठोर । कठिन । दृढ़ । 'कठौती–सुज्ञा स्त्री० [हिं० कठौता] छोटा कठौता । सत । उ०—वैर कियो शिव चाहुत हीं तब लौं अरि बाह्यौ कठ्ठना---क्रि० अ० [हिं०] दे० 'कठठन।'।