पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२४

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उगिलानी उगलना होना । उ०—-उगरीय जीय मानिक्क तन्न ।—पृ० रा | पर बचा हुआ रग जो फेक दिया जाता है । ५ मुख मे चवाई ५७ । २१७ । । हुई वस्तु । उ०---सो ताही समै श्री गुसाई जी आप अपनो उगलना--क्रि० स० [सं० उदगरण, पा० प्रा० उग्गिलन] १. पेट चवित उगार हरिजी को दिए।—दो सौ बावन॰, भा॰ १, में गई हुई वस्तु को मुह से बाहर निकालना । के करना । पृ० १५० ।। जैसे—जो खायो पिया था सो सब उगल दिया । २ मुह में उगारना—क्रि० स० [सं० उद्धार उद्धार करना । रक्षा करना ! गई वस्तु को घाहर थुक देना जैसे-देखो निगलना मत, | उबारना । बचाना। उ०-- मवै दुष्ट भजे सुसेवक उगारे । उगल दो । ३ पचाया माल विवश होकर वापस करना । जैसे, करे काम निज धाम नरहर पधारे 1-पृ० ०, २२१२ । यार माल तो पच गया था, पर ऐसे फेर में पड़ गए कि उगाना--क्रि० स० [सं० उगलन] कुएँ की मिट्टी या खराब उगल देना पड़ा । ४ किमी वात को पेट में न रखना। जो पानी अादि निकालकर सफाई करना । बात छिपाने के लिये कही जाय उसे प्रकट कर देना। जैसे- उगारना--क्रि० स० [हिं०] दे० 'उकासन'। यह बडा दुष्ट मनुष्य है, जो कुछ यहाँ देखता है सब जाकर उमाल—सज्ञा पुं० [स० उदगील, पा० उग्गाल] १ पीक। यूक । शो के सामने उगलता है।५ विवश होकर कोई भेद खोल खखार । उ०—अभी उगाल दास को दीजे, जन को परम देना । दबाव या सकट में पड़कर गुप्त बात बता देना । जैसे कल्यान 1-धरम०, पृ० ३० । २ पुराने कपडे (गो की जव अच्छी मार पड़ेगी, तब आप ही सव बाते उगल देगा। वोली) । स० क्रि०—देना ।—पडना । उगालदान- संज्ञा पुं० [हिं० उगाल +फा० दान (प्रत्य०) ] यूकने ६ बाहर निकालना । जैसे-ज्वालामुखी पहाड आग उगलते हैं। या खखार आदि गिराने का व्रतन । पीकदान । उ०-- मुहा०—जहर उगलना= ऐसी बात मुंह से निकलना जो दूसरे अाप जो मेरी दाढ़ी को अपना उगालदान समझते थे और को वहुत बुरी लगे या हानि पहुचावे ।। मुझे ठीक इस तरह ठोकर मारते थे जैसे कोई अपनी देहली पर उगलवाना--क्रि० स० [हिं० गलना ! दे० 'उगलाना' ।। अन जान कुत्ते को सारता है ।--भारतेंदु ग्र ०, १, पृ० ५६७ । उगलाना--- क्रि० स० [हिं० 'उगलना' का उ० रूप] १ मुव से उगाला-संज्ञा पुं० [हिं० उगोल] एक प्रकार का कौडा जो अनाज निकलवाना । २ इकबाल कराना । दोष को स्वीकार कराना। की फसल को हानि पहुंचाता है । ३ पचे हुए माल को निकलवाना। ४ डर, दबाव अादि से उगाला—-सज्ञा स्त्री० [हिं० उगाल] वह जमीन जो सर्वदा पानी विवश कर भेद खुलवाना । से तर रहे। पन मार। उगवना -क्रि० स० [हिं० उगना] १ उगाना । उदय करना । उगाहना-क्रि० स० [सं० उद्ग्रहण, प्रा० उग्गाण] १ वसूल ३ उत्पन्न करना । करना। बहुत से अदमियो से स्वीकृत नियमानुसार अलग उगसाना--क्रि० स० [हिं०] दे० 'उकसाना' । अलग घन अादि लेकर इकट्ठा करना । उ०---(क) वह उगसारना)---क्रि० स० [हिं० उकसाना] वयान करना । कहना।। चपरासी चदा उगाहने गया है । (ख) लेखौ करि लीज मन- प्रकट करना। खोलना । उ०—सगै 'राजा दुख उगसारा । मोहन दूध दही कछु खाहु । सदमाखन तुम्हरेहि मुखलायक, जियत जीव ना करो निरा ।—जायसी (शब्द॰) । लीज दोन उगाहू ।- सूर०, १० । १५६५। २ चदा करना । उगहन -सज्ञा पुं० [हिं० उगना उदित या प्रकट होने का भाव । सार्वजनिक कार्य के लिये द्रव्य एकत्रित करना । उ०—अगहन गहन समान, गहिमत मोर शरीर ससि । दर्ज संयो क्रि०-डालना। --देना । —लेना । दरसन दान, उगहन होय जु पुग्यवल ।-न० ग्र०, पृ० १६६। उगाहो-सज्ञा स्त्री० [हिं० उगाहना] १ भिन्न भिन्न लोगो से उनके उगहना-क्रि० अ० [सं० उग्ग्रह] दे॰ 'उगना । उ०—मारू सी स्वीकृत नियमानुसार अन्न धन आदि लेकर इकट्ठा करने का देखी नहीं, अणमुख दोय नयाँह । थोरी सो भोले पडई, कार्य । रुपया पैसा वसूल करने का काम ! वसूली । २ वसूल दलायर उगहनाँह।–ढोला०, दू० ४७८ । किया हुमा रुपया पैसा । ३. जमीन को लगाने । ४ एक उगहना-क्रि० स० [हिं०] “उगाहुना' ।। प्रकार का रुपए का लेन देन जिसमे महाजन कुछ रुपए देकर उगहनी-सच्चा स्त्री० [हिं० उगाहना] उगाहने में प्राप्त किया गया ऋणी से तब तक महीने महीने या सप्ताह सप्ताह कुछ वसूल द्रव्य या वस्तु । चदा । उगाही । करता रहता है जब तक उसका रुपया व्याज सहित वसूल ने उगाना-क्रि० स० [हिं० उगना] १ जनाना । अकुरित करना। हो जाए । ५ चदा आदि के रूप में एकत्रित किया गया द्रव्य । (पीघा या अन्न अादि) उत्पन्न करना । २ उदय करना । उगिलनाडु)---क्रि० स० [स ० उदिगरण प्रा० उगिरण] दे॰ प्रकट करना । उ०—ज्यों जन मधि सो लहिर उगाई, तिमि 'उगलना' ३० - ब्राह्मन ज्यो उगिल्यो उरगारि हौं त्यो ही। परमातम अतिम अाई ।—कबीर सा०, पृ० १००० । तिहारे हिये न हितैहौं ।—तुलसी अ ०, पृ० २२२ ।। उगाना--क्रि० स० [सं० उद्घात प्रो० उग्घा] मारने के लिये उगलवाना --क्रि० स० [हिं० उगिला कर० प्र० रूप ] दे॰ कोई वस्तु उठाना । तानना । उप्राना। | उगलवाना । उगार--सपा पुं० [हिं०] १. ३० ‘उगाल' । २ धीरे धीरे निचुटकर उगलाना - क्रि० स० [हिं० उगलना का प्र० रूप] दे० इकट्ठा हुमा पानी । ३. निचोड़ा हुआ पानी । ४. कपड़ा रंगने 'गुलाना ।