पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२३६

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कटहा' ७५० कटानी कटहा--सज्ञा पुं॰ [स० कट -+हा] महापात्र । महाब्राह्मण । प्रत्येष्टि उ०-पाटा कमल कर फेरत सूर जननि मुदेव -- | क्रिया के समय का दान लेनेवाला व्यक्ति । सुर०, १०1१५८ । कटहा-वि० [हिं० काटना-+हा (प्रत्य०}}[जी० फट हो ] १ जिसका कटाछ(@---मर ० [सं० फटा, प्रा० कटाच्छ] ६० 'क' । स्वभाव दाँतौ से काट खाने का हो । काट पानवाला (पशु) । उ०--अ६ पफ माल रैगीने रमान विनोवन में न टाछ | २ बात बात पर बिगड़नेवाला (ला०) । | की ।—पनानद°, १० ११६ । कटा'-- संज्ञा पुं० [हिं० काटना] मार काट । वध । हत्या । कत्ल- कटाछनी-- • [श०] ६० 'मार काट' । | म । उ०—(क) चोरे चख चोरन चलाक चित चोरी भयो, कटोटका पुं० [१० फटाट) शिप [वे० ।। लूट गई लाज कुलकानि को कटा भयो ।--गद्माकर (शब्द०)। कटान-मज्ञा श्री० [हिं० कट + Pाने (प्रत्य॰)] कटने की क्रिया (ख) घनघोर घटा की छटा लधिवे मिस, ठाढ़ी अटा पे कटा या भIT । कटाई ।। करती हौ ।--ठाकुर (शब्द॰) । कटाना--क्रि० स० [हिं० फीटना का प्र० प] १ काटने के लिये कटा–वि० [हिं० 'कटना' का भूतकालिके रूप] कटा हुआ । नियुक्त करना । काटने में लगाना। २ इराना । दाँत ३ जैसे,—कटा फल । दे० 'कटना' । नोनयना । ३ थोडा घूमर मागे निक, जाने। बगन देकर कटाइक--वि० [हिं० 'कटना'] काटनेवाला। उ०— सोकरे मे मागे निकल जाना।-( पान) । से इवे साहिबे सुमिरबे को, राम सो न माहि न कुमति कटारसा पुं० [सं० कट्टार] [ी अल्पा० फेटारो] १ एक कटाइको ।- तुलसी (शब्द०)। वालिश्ते का छोटा निकोना प्रौर दुघार हथियार जो पेट में कटाई--सज्ञा स्त्री० [हिं० फाटना, १ काटने का काम । जैसे हूला जाता है। उ०--प्राधी रात सुरति जय प्रावति है। सिक्के के किनारे की कटाई रोकने के लिये उसे में किटकटी विरह कटार ।--२०मा०, पृ० ८५ । २. एक प्रकार का दार बनाया गया है । २ फसल काटने का काम । ३ फसल वनविनावे । कटाय । वीपर ।। काटने की मजदूरी ।। कटार'--सा पुं० [हिं० रुटार १ वडा कार । २ इमली। कटाई-- संज्ञा स्त्री० [सं० कण्ट फी] भटकटैया । कैटेरी। इमन का फन ।। कटाक-सज्ञा पुं० [हिं० कट +घाऊ (प्रत्य॰)]]• 'काट' । उ०— कटारा-सा पुं० [हिं० फांट] ऊँटकारा । कटारा–रा रचे हथौड़ा रूपई ढारी। चित्र टाउ अनेग सँवारी ।—जायसी कटारिया--सा पुं० [हिं० वटार] एक रेशमी कपड़ा जिसमें कटार , अ ० (गुप्त), पृ० ३७ ।। की तरह की धारिया बनी रहे हैं । कटाकट-सज्ञा पुं० [हिं० फटा+ कट] १ कटकट शब्द । २ लड़ाई। | कटारी--राना ग्री० [हिं० फेटार] १ छोटा कटार। २ नारियन के कटाकटी-सज्ञा स्त्री० [हिं० फटा + फटी]१ मार काट । २ लड़ाई । मूव के नानेवालो का वह मौजार जिससे वे नारियल को झगडा । वाद विवाद ।। घरचकर चिकना करते हैं । ३ (पानको उटानेवाले कहा कुटाकु-सज्ञा पु० [सं०] एक पक्षी [को॰] । की बोली में) रास्ते में पड़ी हुई नोकदार ने कड़ी । कटाक्ष-सज्ञा पुं० [सं०] १ तिरछी चितवन । तिरछी नजर । उ०-- कोए न लाँघि कटाक्ष सके, मुसक्यानि न हो सके अोठ नि कटालीसा भी० [सं० कण्टकारी] भटकटैया । बाहिर । २ व्यग्य । अक्षेप । तानी । तज । जैसे,—इस लेप कटाव--संज्ञा पुं० [हिं० फाटना] १ फट । बाट डोट । कवर उपत। में कई लोगो पर अनुचित कटाक्ष किए गए हैं। २ काफिर बनाए हुए रेल बुटे । क्रि० प्र०--करना। यो०-टीव का काम = (१) पत्यर या लकडी पर खोदकर ३ (रामलीला) काले रंग की छोटी छोटी पतली रेखाएँ जो वनाए हुए बैल बुटे । २ कपड़े के कटे हुए वेल बुटे जो दूसरे अखि की दोनो बाहरी कोरो पर खीची जाती हैं। ऐसे कटाक्ष में पड़े पर लगाए जाते है। रामलीला में राम, लक्ष्मण आदि की सखो के किनारे बनते हैं। कटावदार --वि० [हिं० कटवि + फा० वार (प्रत्य॰)] जिस पर हायियो के गरि मे भी कटाक्ष बनाए जाते हैं। योद व काट कर चित्र मौर बेल बूटे बनाए गये हो। कटाखG:-सज्ञा पुं० [स० फटाक्ष] दे० 'टाधा' । उ०—-अगिन यान कटावन--सज्ञा पुं० [हिं० कटना] १ कटाई करने का काम । तिल जानहु सुझा। एक कटाख लाख दुइ जूझा ।—जायसी मुहा०-- फटाचन पड़ना चा लगना = (१) किसी दूसरे के कारण अ ० (गुप्त), पृ० १६२ ।। अपनी वस्तु का नष्ट होना या उसका दूसरे के हाथ लगना । कटाग्नि--सुज्ञा स्त्री॰ [स०] कट या घास फूस की अाग । (२) किसी ऐसी वस्तु का नष्ट होना या हाम से निकल जाना विशेप-प्राचीन काल में राजपत्नी वा ब्राह्मणी के गमन आदि के । जो दूसरे की नजर में खटकती हो । दे० 'कट्टे लगना'। प्रायश्चित्त या दड़ के लिये लोग फटाग्नि में जलते या जलाए २ किसी वस्तु का कटा हुअा हुरडा । कतरन । जाते थे। कहते हैं, कुमारिल भट्ट गुरुसिद्धात का खइन कटास-संज्ञा पुं० [हिं० कटाना]एक प्रकार का बनविलाव । कटार। करने के प्रायश्चित्त के लिये कटाग्नि में जल मरे थे । | खखर । | कटाच्छG--संज्ञा पुं० [स० कटाक्ष, प्रा० कदाच्छ दे० 'कटाक्ष' । कटासो-सज्ञा स्त्री० [सं०] मुर्दो के गाने की जगह । कब्रिस्तान ।