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कटमालिनी
कटहला
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सघर्ष । 30-राजकुमार शेरनिह उमझा धेटा प्रतापसिंह ग्रादि । अनसमझी में आपस में वह कटमकटी हुई कि पाँच वरस के भीतर भीतर इसके वश में निदाय दिलीपसिंह नामी

बालक के कोई ने हा---अनिवानी में ० पृ० २३८ । कटमालिनी-सुज्ञा स्त्री॰ [म.} अगुरी रवि (को०] । कटर'---सज्ञा स्त्री॰ [स० कट = नरप्ट वा घास फूत] एक प्रकार की घाम जिसे पत्रवान : कहते है। कटर-वि० [अ०] काटनेवाला । जैन, नेलकटर=नाबून के दने का एक औजार । कटर-सज्ञा पु० १ एक प्रकार की वही नाव जिसमे डाँडा नहीं। लगता, प्रौर जो तृतीदार चरवियों के सहारे चलती है। २ पनसुइया । छोटी नावे । कटरना-सज्ञा पुं॰ [दश०] एक प्रकार की मछन । कटरा-संज्ञा पुं० [हिं० कटहरा छोटा चाकोर दाजार । कटरा-सज्ञा पु० [३० केटाह] *म का नर वच्चा । कटरा-संज्ञा पुं०/१० कर्तन छोटे छोटे टुकड़ों में कटा झा चौपायो का चारा। उ०—अचरा न च वैन कटरा न पाई -- गोरख०, पृ० १८८। कटरिया-संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का धान जो आसाम में | वहुतायत से होता है। कटरी'- सुज्ञा स्त्री॰ [देश॰] धान को फमल का एक रोग । कटरी--संज्ञा स्त्री॰ [स० कैट = नरकट] किनी नदी के किनारे को नीची और दग्नदत जमीन जिमके किनारे नरकट ग्रादि होता है। कटरेती--राज्ञा स्त्री॰ [हिं० काटना • रेतना]ली रेतन का औजार। कटलेट-मजा पु० [अ०] माम की सेकी या त नी टिकिया । उ०--- (क) बहुत में है, कहकर उसने कटे न कटनेट का एक टुकड। मुह में डाला ---सन्यामी, पृ० २४२। (ख) जमीन पर पड़े कटलेट के एक टूटे वो उठाकर मुंह में डालने के लिये छटपटा रहा था ।—जिप्सी पृ॰ १८६ ।। कटल्लू-संज्ञा पु० [देश॰] १ उन। कमाई । २ मुसलमान के निये एक घृणानूचक शब्द ।। कटव-विं० [हिं० फटना+वां (पत्य॰)] को काटकर बना हो । जिसमें कटाई का काम हो । कटा हुआ । मुहा०--कटत्र न्याज = वह [ज जो मुलधने का कुछ प्रश चुकता होने पर शेष पर 7गे । कटवांसी- सज्ञा पुं० [हिं० काठ + बांह या कोट +धांत] एक प्रकार का प्रय, ठोस और कैंटीना बॉस जितकी गईॐ बहुत निकट निकट होती हैं। विशेष—यह सीधा बहुत कम जाता है और उद्दत घना होता है। तया गाँव और कोट आदि के किनारे लगाया जाता है । केव।'—सा पुं० [हिं० काँटा] एक प्रकार की छोटी मरुती जिनके गलफ) के पास कोटे होते हैं। इन कांटो से वह चोट करती है। कटवा-सवा पुं० [सं० कण्ठक, हि० कठुआ] गने र एक गहना जिसके किनारे कटे हुए होते हैं। उ० – ग १ कटार, ठा, हँसती । उर में हुमेल, कल चुपकली ।-ग्राम्या, पृ० ४० । कटसरैया-सच्चा स्त्री॰ [स० केटसारिका] अडूसे की तरह का एक | काँटेदार पौधा । विशेप-इसमें पीले, लाल, नीले और नफेद गाई रग के फूT लगते है। लाल फूलवाली कटसरैया को मक्का में 'कुबक' पीले फूलवाली को 'कुरटक', नोले फूलवानी को 'प्रारगिल' और सफेद फूलवाली को ‘सरेयक' कहते हैं। कटनरया कातिक में फूलती है। कटहरी-सी पुं० [हिं० कण्टफल, कण्ट कफल दे० 'क्टल'। कटहरा-सा पु० [हिं० कटघरा टपरा । उ०—तमाशा करनेवालों में में एक मिस ने, जिसमें यह शेर हिने हुए थे, एक कटहरे का दरवाजा खोला ।—फिसाना०, पृ० १०।। कटहरी–सद्य क्षी० [देश॰] एक प्रकार की छोटी मछतो जो उत्तरी भारत और आसाम की नदियो में पाई जाती है। कटहरी–सच्चा जी० [हिं० कटहल] छोटा वटहुल । यौ०--कटहरी चपा। कटहरी--वि० [हिं० फदहल] १. कटहल सेबी। केटहन की | गधवाला। कटहरी चपा-संज्ञा पुं० [हिं०] मधुर और ती गधयाना एक पुष्प जो हुलके पीलेपन के साये हरे रंग का होता है । कटहल - सधा पु० [स० कण्टफल यी फण्ट कफल] १ ( क मदा पहार घना पेड जो भारतवर्ष के मध गरम नागों में लगाया जाता है तथा पूर्वी र पश्चिमी घाटो की पहाड़ियों पर अपने आप होता है। विशेप---इसकी अडाकार पत्तियाँ ४-५ अगुल लंबी, बडी मोटी ग्रौर ऊपर की ग्रोर श्यामता लिए हुए हरे रंग की होती हैं। इममें बड़े बड़े फल लगते है जिनकी लाई हाच देइ हाय नक को र घेरा भी प्राय इतना ही होता है । ॐार का विका वहुत मोटा होता है जिसपर बहुत से नुकीले गुरे होते हैं। फुल के भीतर बीच में गुठली होती है जिसके चारो र मोटे मोटे रेशो की कथरियो मे गूदेदार कोए रहते है। रोए पकने पर बड़े मीठे होते हैं। कोया के भीतर बहुत पनन झिलियो में पटे हुए वीज होते हैं। फल माघ फागुन में लगने ग्रार जेठ असाढ में पकते हैं। कच्चे फन ही नरकारी प्रार अवार होते है और पके फन के कोए छाए जाते हैं । फुट नीचे से ऊपर तक फलता है, जद और तने में भी फल नगते है। इसकी छाल से यहा लसीला दूध निक नता है जिसमें रबर उन सकता है । इमकी लकडी नाव यर चौपाट अादि बनाने के दाम में ग्राती हैं। इसकी छान अौर बुरादे को उनलने से पीनी ग निकलता है जिससे वरमा के माधु अपना बस्न रंगठे हैं। २ इस पेड़ का फल । कटहला-सा पुं० [हिं० फटहल कटहल के ऊपर के दानों जैन

झानेवाचे अाभूपए।