पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२३३

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कटकई ७४७ कटन कटकई--सज्ञा स्त्री० [सं० कटक +ई (प्रत्य॰)] १. कटक । सेना। मंत्री में किसी प्रकार का प्रभाव नहीं रहा। सब प्रथ कटकुट हो फौज । लशकर । उ०—मुख सुखहि लोचन अवह शौक न गए |--कवीर म०, पृ० ४५६। । हृदय समाइ । मुनहु करुण रस कटकई उतरी अवघ वजाई। कटकूटी---सज्ञा स्त्री० [सं०] तृणशाला । पर्णशाला । फूल की झोपड़ी —तुलसी (शब्द॰) । २ चढाई । सेना का साज। दे० कटकोल--सज्ञा पुं० [स०] पीकदान । ‘बटकाई' । उ०- मइ कटकई सरद ससि वा ।—जायसी कटक्कट()-सज्ञा पुं॰ [हिं० कटकट]कटकट की ध्वनि । उ० मिलवर ०, पृ० १४७ । । | हिंदु तुरक्क सुतार, कटक्कट वज्जिय लोह करार !--पृ० रा० कटककारी-सुज्ञा पु०सि० कटक+कारिन्]सेना सधटित या सज्जित २४२३३ । करनेवाला व्यक्ति । सेनापति । उ०—विविध को सौध अति कृटखना'-वि० [हिं० काटना-+ खाना] १. काट खानेवाला । दांत से रुचिर मदिर निकर सत्व गुन प्रमुख अय कटककारी - काटनेवाला । २ (ला०) हथकडेवाज । चालबाज । मक्कार। तुलसी यू ०, पृ० ४८६ ।। कटखना’----सुज्ञा पुं० कंतर ब्योत । युक्ति । चाल । हथकडा । जैसे,— कटकट-संज्ञा पुं० [अनु॰] १ दाँतो के वजने का घाब्द। उ०—तव (क) वह वैद्यक के अच्छे कटखने जानता है । (ख) तुम लै छ में मैं मारो भयो शब्द अति मारी । प्रगट भए नरहरि वपु कटखने में मत आना । धरि हरि कटकट करि उच्चारी !--गोपाल (शब्द०)। यौ०–कटखनेवाजी । लड़ाई झ"हा ! वाद विवाद । कुटखन्ना-सृज्ञा पुं० [हिं० कटखना] १ काढने के लिये बनाया था कटकट ना क्रि० अ० [अनु॰] दे॰ 'कटकटाना' । छाया गया खाका । २ छात्रों के अभ्यासार्थ हलके विदुग्रो से कटकटाना--क्रि० अ० [हिं० कटकट] दाँत पीसना । उ०— अकिंत अक्षर । कटकटान कपि कुजर भारी । दोउ भुजदंड तमकि महि मारी। कटखादक--वि० [सं०] मङपादय का विचार न करनेवाला । अशुद्ध --तुलसी (शब्द०)। | वस्तु को भी खा लेनेवाला । सर्वभक्षी । कटकटिका--संज्ञा स्त्री॰ [हिं० कटकट] एक प्रकार की बुलबुल । । कट ग्लास--सज्ञा पुं० [अं॰]मजबूत काँच जिसपर नक्काशी कडी हो । विशेष जाड़े में यह पहाड़ से उतरकर मैदान में आ जाती है कटघरा- सज्ञा पु० [हिं० काठ+ धर] १ काठ का घर जिसमे जंगला | और ६र या दीवार के खोडरे में धोमल बनाती है । हो । काठ का घेरा जिसमें लोहे वा लकड़ी के छड़ लगे हो। कटकटिया--वि० [हिं० कटकट] १. कटकट ध्वनि करनेवाला। २. वड़ा भारी पिजडा । ३ अदालत में वह स्थान जहाँ विचार २. झगड़ालू ।। के समय अभियुक्त और अपराधी खड़े किए जाते हैं। कटकना–सज्ञा पुं० [हिं०]१ अधिकार । इजारा । २ दे० 'कटखना। कटजा , कटजीरा-- संज्ञा पुं० [सं० कणजीरक] काला जीरा । स्याह जीरा । ३. चालावाजी । मक्कारी। उ०--कूट का यफर सोठि चिरेता कटजीरा कहु देखत । अाल मजीठ लाख से दुर कडू ऐसे हि बुधि अवरेवत ।-सूर (शब्द०)। कटकनैदार- संज्ञा पुं० [हिं० कटकना+फा० दार (प्रत्य॰)] सिकमी। कटडा—संज्ञा पु० [सं० कटार] भैस का पॅडवा।। कामतकार) कटत--संज्ञा स्त्री० [हिं० कटती]दे० 'कटती । १ कटने की क्रिया या कटकवाला-सज्ञा पुं० [हिं० फेटना +० कंबाला] मियादी वै ।। भाव। २ वाजार में किसी चीज की होती खपत । कटकरंज-सज्ञा पुं॰ [स० कटकरञ्जकज नाम का पौधा । वि० दे० कटताल- संज्ञा पुं० [हिं० काठ+ ताल] काठ का बना हुआ एक बाजा ‘कजा' । जिमे करताल' भी कहते हैं। उ०—(क) कसताल कटताल कटकाई -सज्ञा स्त्री० [हिं० कुट क + अाई (प्रत्य०)1 १ सेना। बजावत शृ ग मधुर मुहचंग । मधुर खजरी, पटह, पणव, फौज । २ दलवल के साथ चलने की तैयारी। उ०-च मिलि सुख पावत रत भग ।—सूर (शब्द॰) । (ख) वचे दिसि सान सांटिया फैरी । मै कटकाई राजा केरी ।—जायसी सिर के करिके कटताल । रचे जिनि तडद नाच कराल - ग्र ०, पृ० ५४ । कटकाना----क्रि० स० [हिं० कट कटाना] फोडना । कडकडाना । सुजान०, पृ० ३४ । ३० - अगलिया कटका करूं। पाई तला सुमाझि रात । कटयला--सज्ञा पुं० [हिं० कटताल] दे॰ 'कटताल' वा 'करताल'। कटती--सुज्ञा स्त्री० [हिं० कटना] विक्री । फरोख्त । जैसे, इस बाजार व० रा०, पृ० ६६ । में माल की कटती अच्छी नहीं । कटकार--- वि० [सं०] वैश्य द्वारा शुदा में उत्पन्न संतति ।-प्रा० भा० f० कटनस- सज्ञा पुं०[हिं० काटना+नाश अथवा सं० कोष्ठ+नाश]१. क; प०, पृ० ४०४ । काटने और नष्ट करने की क्रिया । उ०-पेड तिलौरी और जल कट की संज्ञा पुं० [सं० कट किन्] पहाड [को०]। हुसा। हिरदय पैठि विरह कटनेसा ।—जायसी (शब्द०)। केटकोना--सुज्ञा पुं० [हिं० कटकना] दे० 'कटखना' ।। २. दे० 'कटनास' ।। कटकुट--वि० [हिं० फटना+कूटना]कटाकुटा । काटी गई (लिखावट, कटन--सज्ञा पुं० [सं०] मकान की छाजन या छत [को०] । जो अधिक कटने के कारण अस्पष्ट हो गई हो । उ---उन कटन-संज्ञा पुं० [हिं० काटन] दे० 'कतरन' । २-२८