पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२३२

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कृजिया विशेप-कजावा वह जालीदार घेरा है जिसे स्त्रियों के लिये कटकट–मुना भी० [सं० टट] १ प्राग । अनि । २. माना । बनाया जाता है। | सुवर्ण । ३. चित्र; १६ । ४, गण । शिप [३०] । कजिया---सज्ञा पुं॰ [अं० कजिया] गदा । लडाई ! टंटा । वरोड़ा। फटकटेरी--- ओ० [सं० फटटेरो] गहूदी धे॰] । दगा । उ०—(क) कजिया मे नित नवो कलेस ---वौकी० प्र०, कदव--सज्ञा पुं० [सं० पटव] १ गते का एक चाय वा वा । भा० ३, पृ० ११० । (ख) फारबिसगजवालो की कजिग। २ वाण । तीर (को०) ।। फैसला होनेवाला है ।—मेला० १ ३४४ ! फटभर-सवा • [सं० फटभर कर १३ [४०] । कजी- सज्ञा पुं० [फा०] १ टेढापन । टेढ़ाई। २ दोष । ऐप । कटभरr--- सी० [H० फूटम्भरा १ नागबना, रोहिगी, भू, नुक्स । कमर । उ०--यह विचार शिव पूजा तुजी ! लग्न कान बि। श्रादि अनेक पौधा । नाम । २ इतनी । प्रगट सेवा में कजी --अर्ध०, प० २५ 1 यिनी (०) । कज्ज - अव्य० [सं० फायं, प्रा० फन] लिये। वास्ते । निमित्त । कट-संधा १० [मुं०] १ हाथी का नष्टपल } ३ गम्थस् । ३ न. उ०---(क) विप से विपयन को तृजिये तो इवन ही वे ज्ज।। फट या नर नाम के पास । १. नट में चटाई। दरमा । —मारतेंदु र ० भा॰ २, पृ० ५५१ । (४) जर चालय प्रिय 'उ०-ये गए शररी की रट प्रभु नृत्य नटी भी कर नई जरा नृप, महुवै कञ्ज रिसाये ।—प० रा०, १० ५०। प्रीती । टट्टी फटी फट दीनो बिदाइ बिदा के दई मनो वि कज्जर(५)—संज्ञा पुं० [सं० फजल] दे० 'जल' । उ०—-जनु की भति --रघुराज(शब्द॰) । ५. टट्ट । ६ मुन्न, गर । सिखिर केज्जर सग ।-५० रा०, १० ५८ । 91f; घाम । झज्ज़ल-सज्ञा पु० [सं०][वि॰ फलित] १. अगन 1 काजल । ३. य -पटानि । सुरमा । उ०— गालोकनि को वात प्रौरई विधान, केजर ७ गये । लाज । ६ ज उठाने का टिटी । परयो । ६ कलित जामें जहर समान है ---भारी ग्र०, गा० १, शि7 । १०. मग को एक पत्र । ११ ज हा नुन्न । पृ० १०१ । ३ कलिव । स्याहो । १२ समये । भवगर । १३ निता। भोगि (को०) । ११ यौ०-कज्जलध्वज = दीपक 1 फज्जतगिरि । उ०—-सोनित स्रवत कटि (०) । १५ अधिप (को०) ! १६ प्रया। रोनि सोह तन कारे। जनु फज्ज नगिरि गेरु पारे ।-- (को०) । १७ र नामा पौधा (को०) । १६ पास (२०) । मानस, ६३८ । १६, पुष्परस 1 पराग (०) । ४ वादल । ५ एक छद जिसके प्रत्येक चरण में १४ मात्राएँ होती कट--- सुयी पु० [हिं० फदन] ३ एक प्रकार की जा रंग जा टीन हैं। प्रत में एक गुरु और एक लघु होता है । उ०—प्रभु मम के टपो लोहगून, हर, २३, प्रयले भौर को ग्रादि से शोरी देख जेव । तुम मम नाही अौर देव (याद०)। तैयार किया जाता है। ३ काट का सदित रूप जिनका कज्जलध्वज-सज्ञा पुं० [म॰] दीपक [को॰] । व्यवहार यौनिक शब्दो में होता है, जैसे,—फटयना कुत्ता । कज्जलरोचक---सज्ञा पुं० [सं०[ दी अट । दीपाधार [को०] । कट-सा पुं० [१०] काट। तर नि । यौन। कता । जैसे, कज्जलवन -सज्ञा पुं॰ [संज्ञा कदली+वन] दे० 'कजनी वन' । योट का कट अच्छा नही । उ०—-प्राज हुत दिनों बाद उन्हें उ०—मरू वाली मदिर, चदउ वादल माँहि । जीर्ण गर्यद दे या, वह भी स्वदेशी कट पोनहि भे :--मन्यात, उलट्टियउ, कज्जल वन मॅह जाहि ।---ौला०, ६० ५३८ । पृ. ३२१ । कज्जलित–वि० [सं०] १ काजल लगा हुआ। । श्रीजा हुआ। 1 अजन कट-वि० [सं०] १ मतिशय । चहुत । २ उपे । उत्कट । | युक्त । ९ काला 1 स्याह । कटक-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ सेना। दल । फौज । २ राजशिविर। कज्जली-सज्ञा ली० [सं०]१ गधक और पारे के योग से वन द्रव्य । ३ चूडा। कफः । प डा। उ०—(क) देव आदि मध्या २ मछली ! ३ स्याही (को॰] । भगवत त्वम् सर्वगतमीशं पश्यत में ब्रह्मवादी । यथा पेटवतु कज्जाक-सज्ञा पुं० [तु० कज्जक]१ डाकू। लुटेरा । उ०—कज्जाक धट मृत्तिफा सर्प गदारु फर कनयः फटकानदादा ---तुनस) अजल का लूटे हैं दिन रात बनाकर नकारा।राम० घमं०, , (शब्द०)। (य) विन अगद विन र कटक के लधि न परे १० ८६ } २ चालक । नर कोई ।-रघुराज (यान्द०)। ४. पैर का कडा ।-डि० । ५ पर्वत का मध्य भाग । ६. नितई । चूत।। ७ सामुद्रिक कज्जाकी—सज्ञा स्त्री॰ [तु० कजाज+फा० ई (प्रत्य०)] १• कज्जाक नम: । ६ घास फूस को चटाई । गोदरी । सवेरी । ६ की वृत्ति ! लुटमार । मारकाट । ३ चोलाको । जजीर की एग फडी । १० हाथी के दांतो पर चढ़े हुए कनुसिस —संज्ञा पुं० [सं० कोसीस] दे० 'कसीस' 1---यण' • पृ० ६] पीतल के बद या साम् । ११ च । १२. उडीसा प्रात को कञोण –सर्व० [हिं०] दे॰ 'कौन' । उ०—-फरमान भेल कोण एक प्रसिद्ध नगर । १३ पहिया। १४ समूह । उ०-सदाचार, चाहि, तिरहुति लेलि जन्हि साहि ।—कीति०, १० ५८ ।। जप, जोग, विराग । समय विवेक कठरु सबु भाग १ कञोन---सयं० [हिं०] दे० 'कौन' 1 उ०—हरि हरि कोने एकत्र हमे मानस ११८४ । १५ स्वर्ण (को०)। १६. राजधानी (को०)। पाए । जेसथे सुखद ताहि वह ताप ।--विद्यापति, पृ० १४२ । । १७. समुद्र (को॰) ।