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कज़ावा करो। ४१ कजरी'-सुज्ञा दौर [हिं०] दे॰ 'कजली-१' उ०——ौर कजरी तन हैं और अपने सवधियों को बांटती हैं। ३ एक प्रकार का गीत पटानी मन जानी हम घोवतु भारतेंदु ग्र०, 'मा० २, जो बरसात में सावन वदी तीज तक गाया जाता है । पृ० ५४२।। मुहा० -- कजली खेलना= स्त्रियो का झड या घेरा बनाकर घूम कजरी-सुज्ञा पुं॰ [स० कज्जल! एक घान जो काले रंग का होता घूमकर झूलते हुए कजी गाना । है । उ०- कपूर काट कजरी रतनारी। मधुकर, ढेला, जीरा कजली तीज-संज्ञा पुं० [हिं० कजली+तीज] भादो वदी तीज । सारी ।—जायसी (शब्द॰) । कजली वन-सज्ञा पुं० [सं० कदलीवन] १ केले का जंगल । २ कजरीअारनपु–सज्ञा पु० [हिं० फजरी+आरन] दे॰ 'कजली । अासाम का एक जंगल जहाँ हाथी बढ़त होते थे। बन'। उ०—३ पिगला गए कजरी अारने ।—जायसी ग्रे • कजलीवाज-सज्ञा पुं० [हिं० फजली+फा बाज] कजली गाने या (गुप्त०), पृ० २५१ । रचनेवाला) कजली प्रेमी । उ०-~-केजलीबाज लोग अपनी कजरी वन- संज्ञा पुं० [हिं० कजरी+बन] दे० 'कुजली वन' ! बनाई कुजलियों को ' ।—प्रेमघन॰, पृ० ३५४ । कजरी बाजसज्ञा पु० [हिं० कजरी + फी० बजि] केजी गाने या 'कलौटा-सा पुं० [हिं० काजल + अंटा (प्रत्य॰)] [स्त्री॰ अल्पा० | रचनेवाला । केज] प्रेमी । । कजलौटी १ काजल रखने की रोहे की छिछली डिवियों कजरौटा-सज्ञा पुं० [हिं० काजर+टा(प्रत्य॰) 1 दे० 'कजौटा' । जिसमें पतली डाँडी लगी रहती है । २ डिविया जिसमे गोदना केजरीटा-वि० [हिं० फजलौटा] काला । श्यामल । कजरारा । गोदने की स्याही रखी जाती है । उ०—सो वाही समै वा वैष्णव के लरिका ने देख्यो तो प्रथम । कजलौटी–सज्ञा स्त्री० [हिं० कजलौटा] छोटा कज लौटा। अनेक सोने रूपे की सिंगेवारी और वडे वडे कजरोटे नेत्रवारी कजही-सच्चा स्त्री० [हिं०] दे॰ 'कायजा' । गायें दीखी। -दो सौ बावन०, भ[० १, पृ० ३२५ । कजा'--सा जी० [सं० काजी] कजि । महि । कजरोटी- संज्ञा स्त्री० [हिं० कजरौटा का स्त्री॰] दे॰ 'कजलौटी' ।। ' ॐ कजा-संज्ञा स्त्री० [अ० काजामौत । मृत्यु । ३० --- केजर से बच गया | कजरौटी बनानद, पृ० ५५। । मरना नहीं तो ठाना था ।—कविता कौ०, मा० ४, पृ० २। कजलवाश-संज्ञा पुं० [तु०] मुगलो की एक जाति जो बडी लडकी मुहा०--जा करना= मर जाना। | होती है । यौ०--कजा ए इलाही - ईश्वरीय इच्छा। ईश्वरेच्छा । कजला--सज्ञा पुं० [हि० काजल] १ दे० 'कजरा' । २ एक काला कजाकसबा पुं० [तु० फज्जाक] १. लुटेरा। डाकू। वटमार । पक्षी । मुटिया ।। उ०--(क) प्रीतम रूप कजाक से समसूर कोई नाहि । छवि कज़ला–वि० दे० 'कजरा’। फाँसी दे दृग गरे मन धन को ले जाहि ।-सनिधि (शब्द॰) । कजलाना- क्रि० अ० [हिं० काजल] १ काला पड़ना ! साँवला (ख) मन घन तो राख्यो हुतो मैं दीवे को तोह। नैन | होना । २ आग का झैवाना 1 अग का वुझना ।। कजाकन १ अरे क्यो लुटवायो मोहि ।—रसनिधि (शब्द॰) । कजलाना---क्रि० स० काजल लगाना ! अजिना !" २. कजाकिस्तान नामक प्रदेश का निवासी । कजलित--वि० स० फज्जलित या हि० केजलाना]दे० 'कन्जलित' । कजाक+--वि० १ धूर्त । छल कपट करनेवाला । २. चालाक। उ०----युवति व द कजलित नैनन सिंदूर दिये सिर ।प्रेमघन॰, पृ० ३२।। चालत्राज। कजली'--संज्ञा स्त्री० [हिं० काजल] १. कालिख । २ एक साय पिसे
- माय धिमे कजाकार–क्रि० वि० [अ० कजा + फा० 'ए कार'] संयोगवश ।
। हुए पारे और गधक की बुकनी । ३. गन्ने की एक जाति जो अचानक । ३०--फकीरों गरीव विचारे तुम्हे । कजाकार बर्दवान में होती है । ४. काली अखवाली गाय । ५. वह अ ए हैं नाहक तुम्हे --दक्खिनी॰, पृ० २०६। सफेद भेड जिसकी अखिो के किनारे काले बाल होते हैं। केजीकी--सच्ची सी० [तु० कज्जाक +फा० ई (प्रत्य०)]१ लुटेरापन । ६ पोस्ते की फसल का एक रोग जिसमे फूलते समय फूलों लूटमार । उ०----फिरि फिरि दौरत देखियत निचले नै रहूँ पर काली काली धूल सी जम जाती है और फसल को हानि हैं। ये कजरारे कौन पे करते कजाकी नैन ।—बिहारी पहुंचाती है । ७ एक प्रकार की मछली ।। (शब्द॰) । २ छल कपट । घोखवाजी । धूर्तता । उ०— कजली--सज्ञा स्त्री० [सं० फज्जली १ एक त्योहार सहित भला कहि चित अली लिये कजाकी माहि । कला लला विशेप-यह बुदेलखड़े में सावन की पूणिमा को और मिर्जापुर, की ना लगी चली चराकी नाहि । शृ ०--मत० (शब्द॰) । बनारस प्रादि में 'भादो बदी तीज को मनाया जाता है। इसमें कजात't-- क्रि० वि० [सं० फवाचित ६० 'कदाच' । --जौ कच्ची मिट्टी के पिड़ो मे गोदे हुए जौ के अंकुर किसी ताले यो हु। रौ तौ देस दिय, अनुचर होई अपर। जौ कजात जीतहि पोखरे में डाले जाते हैं। इस दिन से कजली गाना बद हो । नृपति, तो तुम हूज पार !--प० २, पृ० १०५ । जाता है । | कजावा--सच्ची पुं० [फा० केजव] ऊँट की वह काठी जिसके दोनो २ मिट्टी के पिंडों मे गोदे हुए जौ से निकले हुए हरे हरे अंकुर या ओर एक एक आदमी के वैठने की जगह और ग्रस्बावे रवने के पीचे जिन्हें कुजली के दिन स्त्रियाँ ताल या पोखरे में डालती, लिये जाली रहती है।