पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२३

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सुखाड़ना ५३७ उगरना दाहिने पैर को अपने दाहिने पैर मे फंसाकर कमर तक ऊपर उकेरना--क्रि० स० [हिं० उखेड़ना] नोचकर अलग करना। उ०- उठाते हैं और अपना दाहिना हाथ विपक्षी की पसलियो (क) इतनी सुनते जसौदानदन गोवर्धन तन हेरी । निय से ले जाकर उसकी गर्दन पर चढ़ाते हैं और दबाकर चित उठाइ, सैल भुज गहि के, महि ते पकरि उवेरी सूर०, १०। करते हैं। ८६८ । (ख, ज्यौं दिवाल गीजी पर कौकर डारत ही जु गढे ४. विपक्षी को गिराने के लिये उसकी टाँगों में घुस जानी । रे। मुर लटक लागे अंग छवि, पर निठुर न जात उखेरे। मुहा०--उसाढे पछाड़े = (१) अदल बदन । इधर का उधर । | सूर०, १०। २२२३ । उलट पलट । उ० -इसका उखाड पछाह ठीक नहीं। प्रेमघन॰, उसेरा---संध पुं० [सं० ईक्ष्] ईख । ऊख । भा॰ २, पृ० २११ (२) इधर की उधर लगना । अगाई लुतरी उखेलना -क्रि० स० [सं० उल्लेखन] उरेहना । लिखना। तस्वीर) चुगलखोरी । खीचना। उ०-चचा चित्र रचो वहु भारी चित्रही छोहि चेतु उखाडना-क्रि० स० [हिं० उखड़ना] विसी जमी, गडी या बैठी। चित्रकारी । जिन यह चित्र विचित्र उल्लेला । चित्र छोडि तू वस्तु को स्थान में पृर्य करना । उत्पादन करना । जैसे (क) चेत चिवेला ।-कवीर (शब्द०)। हाथी ने वाग के कई पेड़ उखाडे डाले । (ब) उसने मेरी उख्य--सच्चा पु० [सं०] हाँड़ी मे पकाया मास जिनकी आहुतियां यज्ञो अँगूठी का नगीना उखाड़ दिया । २ अग के जोड से अलग में दी जाती थी । करना । जैसे दुश्ती में एक पहलवान ने दूसरे की कलाई उखाड उगजोग्रा-संज्ञा पुं॰ [देश ०] परतेले के रंग में कपड़े को बार बार दो। ३ जिन कार्य के पिये जो उद्यत हो उनका मन सहसा डुवाने की क्रिया । फेर देना 1 भडकाना । बिचकानी । जैसे तुमनै आकर हमार उगटनी-- क्रि० अ० [सं० उद्घाटन] १ उघटना ! वार बार गाहक उखाड़ दिया । ४. तितर बितर कर देना । जैसे, उसे कहना । उ०—उगटहि छद प्रबंध गीत पद राग तीन बधान । दिन मेह ने मला 'उखाड़ दिया । ५. हटाना । टालना। जैसे, सुनि किन्नर गधवं राहत विथकहि विबुध विमान !-सुत्रसी उसे यहाँ से उधाडो तब तुम्हारा रग जमेगा । ६ नष्ट करना। (शब्द०)। २ तानी मारना । बोली बोलना । ध्वस्त करनी । उ०-मुजाअों से वैरियो को उखाड़नेवाले दिलीप। उगदना--क्रि० अ० [सं० उद्+गद= कहना, हि० उकटना]कहना। --लक्ष्मण (शब्द०)। वोलना । (दलाल)। मुहा०- कान उखाडना=(१) किमी अपराध के दढ मे जोर से उगना-क्रि० अ० [सं० उद्गमन, पा० उगवन] १ निक नना । | कान मलना या खीचना । कीन गरम करना । (२) धमकाना।। उदय होना। प्रकट होना । जैसे- वह देखा सूरज उगा। उ०- विशेष--विशेषकर शिक्षक और माँ बाप नटखट लड़कों के कान भने विद्यापति उगत सेविप्र मदन चितथ ग्राउ ।-विद्यापति, मलते हैं। पृ॰ २२७ । २. जमाना 1 अकुरित होना। जैसे-खेत में धान गड़े मुर्दै उप्ताड़ना=पुरानी बातो को फिर से छेडन । गई बीती उग आए । बात को उभाडना । पैर उखाड़ देना= स्थान से विचलित संयो०- कि० माना।- उठना जाना ।—पड़ना। करना । हटाना। भगाना । जैसे–सिक्ख नै पठानों के ३. उपजना । उत्पन्न होना । उ०-विधुरता जव भेटे मो जाने पैर उखाड दिए । जेहि नेह । सुक्ख सुडेला उगई दुःख झरे जिमि मेह। जायसी उखाड़ --वि० [हिं० उजाड़ना] १ उजाड़नेवाला । २ चुगलखोर । (शब्द०) I४. अधिक आकर्षक प्रतीत होना । शोभित होना। इधर को उधर लगानेवाला । उखारना--क्रि० स० [हिं० उखाड़ना दे० 'उखाडना' । उ०- सुदर लगना । | उगनीस---दि॰ [सं० एकोनविंशति, प्रा० अउणवीस, एकूणवीस, हिं० लीन्हो उखारि पहार विसान चल्यो तेहि काल विलंब न लायो। नुलसी ग्र २, पृ० १९६ । उन्नीस ! उन्नीस । एक कम वीस । उ०--नव गज दस उतारी--सच्चा ही० [हिं० ऊख ईख का खेत। उ० तपै मृगचिरा गज उगनींसा, पुरिया एक तनाई। सात सूत दे गड बहरि, पाट लगी अधिकाई ॥-कवीर ग्र०, पृ० १५३ । विलखें चारि । वन बालक औ मैस उखारि । (शब्द॰) । उखालिया---संज्ञा पुं० [९० उप +काल] प्रतिकान को भोजन । | उगमना-क्रि० प्र० [सं० उद्गमन प्रा० ऊगमण] उगना । उदित् उगमन सहरगही । नरगही । होना । उ॰—सूरज पछिम किम उगमई ।--वी० स०, उखाव--संज्ञा पुं० [हिं० उख] ३० उखारी । पृ० ६० । । उखेड-सज्ञा पुं० [हिं०] ३० 'उबाड' । उगमन-सा पुं० [त ० उद्गमन] पूर्व दिशा, जिधर से नूरज निकलता है ।। उखेड़ना--क्रि० स० [हिं०] दे० 'उखाडना' । उ० (क) मेरे सँसाद जालिम ने उड़े वालों पर अपने । कविता कौ०, मा० | जगरना+---क्रि० अ० [२० अग्र या उद्गरण] १ " सामने ग्राना । ४, पृ० ६६२ । (ख) काम हो कान के उसे ई जी । निकलना। उ०—-गवन करे कई उगर कोई । सुनर्मुख स्वाम तो घुडे न पेट में छूरी। चुमते०, पृ० ५४ ) ला म बई होई 1-जायसी (शब्द०)। २. कुए के स्रोत उखेड़वाना- क्रि० स० [हि उखड़ना का प्रेर० प उखड़ने के | के पानी का बाहर आना । जैसे कुश्री उगरना । लिये नियुक्त करनी । उड़वाना । उगरना- क्रि० अ० [हिं० उबरना बचना । रक्षा होना । सुरक्षित