पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२२९

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कछियनि ७४३ कृच्छपिका पहनना । उ०—स्याम रंग फुल ही सिर दीन्हें श्याम रग फछनी। से एक निधि। ४. एक रोग जिसमे तालु मे वतौडी निकल | कछ लीन्हे ।-लाल (शब्द॰) । अाती है । ५ एक यंत्र जिससे मच्च खीचा जाता है । ६ कुश्ती का एक पेंच । ७ एक नाग । ६ विश्वामित्र का एक कछनि--संज्ञा स्त्री० [हिं० कछनी] दे० 'कछनी'-१ । उ०-लाल की | लाल कछनि छवि ऐसी !--नद० ग्र २, पृ० १२६ ।। पुत्र । ६ तुन का पेड़ । १० दोहे का एक भेद जिसमे ८ गुरु । कछनी-सच्चा स्त्री॰ [हिं० काछना] १. घुटने के ऊपर चढ़ाकर पहनी यौर ३२ लघु होते हैं। जैसे--एक छत्र एक मुकुट मणि, हुई घोती । उ--पीतावर की कछनी काछे मोर मुकुट सिर सव वरनन पर जोइ । तुलसी रघुवर नाम के वन विरजित दीन्हे ---गीत (शब्द॰) । दोइ ।तुलसी (शब्द॰) । क्रि० प्र०-काछन । --वाघना।---मारना । | कच्छपिका-सज्ञा स्त्री० [सं०]१ एक प्रकार की क्षुद्र रोग जिसमें पाँच २ छोटी धोती । उ०—स्याम रंग कुन्नही सिर दीन्हे । स्याम रग छह फोडे निकलते हैं जो कछुए की पीठ ऐसे होते हैं और कफ कछनी कछ लीन्हे !-- लाल (शब्द॰) । ३ रासलीला आदि और वात से उत्पन्न होते हैं ।—माधव०, पृ० १८७ । २ । मे पहनने का घाघरे की तरह का एक वस्त्र जो घुटने तक प्रमेह के कारण उत्पन्न होनेवाली फुडियो का एक भेद । ये अाता है । ४ वह वस्तु जिससे कोई चीज काछी जाय । फुडियो छोटी छोटी शरीर के कठिन भाग में कछुए की पीठ कछमछाना---क्रि० अ० [हिं० फसमसाना]दे० 'कसमसाना' । उ०-- के प्रकार की होती हैं। इनमे चलन होती है। कच्छपी। फिर भी जाने क्या बात थी कि दूल्हा रह रहकर फछमछा कच्छपी संज्ञा स्त्री०स०]१ कच्छप की स्त्री } कछुई । २. सरस्वती उठता था --नई०, पृ० ४३ । की वीणा का नाम । ३ एक प्रकार की छोटी वीणा । ४ कछरा–सङ्घ पु०[सं० क = जल + क्षरण = गिरना][खी०अल्प० करी] दे० 'कच्छपिका-२'। चौडे मुंह का घड़ा या बरतन जिसमें पानी, दूध या अन्न रखा कच्छशेप-सृज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार के दिगवर जैन । जाता है । इसकी अॅवठ ऊँची और दृढ़ होती है । उ०--वधेि कच्छ-सुज्ञा पुं० [सं० कच्छ= नाव का एक भाग] १. एक प्रकार न मैं वछरा ले गरेयन छीर भरघों कछरा सिर फटिहै ।-- की वडी नाव जिसके छोर चिपटे और बड़े होते हैं। इसमें दो वेनि (शब्द॰) । पतवारें लगती हैं। २. कई बडी बडी नावो, विशेपत पटैलो कछराली—संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] दे० 'ककराली' । को एक में मिलाकर तैयार किया हुआ बडा बेडा या नाव ।। कछरी- संज्ञा स्त्री० [हिं० कछरा फी अल्पा०] छोटा कछा। मुहा०—कच्छा पाटना = कई कच्छो या पटेल को एक साथ कछवारा--सज्ञा पुं० [हिं० काछी+बाड़ा] १ काछियो की वस्ती या बांधकर पाटना । टोला । २. काछी का खेत जिसमें तरकारियां बोई जाती हैं। । कच्छा -सज्ञा पुं० [सं० कच्छ] दे० 'कच्छ ६ । वेच्छार--सज्ञा पुं॰ [सं०]एक देश जो वृहत्सहिता के अनुसार शतभिय, कछवाह-सझा पु०[सं० कच्छ+ हिं० वाह (प्रत्य)] दे० 'कछवाहा । उ०—जानत जहान ऐड करि सुलतनिनि सौं, कीनौ कछवाह पूर्वाभाद्रपद और उत्तरा भाद्रपद के अधिकृत देशो मे है। कच्छ । कामधुन को वचाव है !-—मति ० अ०, पृ० ४३५ । कच्छिला-ज्ञा पुं० [सं० कच्छ+हिं० इला (प्रत्य॰)] कच्छ देश निवासी एक जाति । उ०——चारण कुच्छ देस जाति कच्छिला कछवाहा--सा पु० [सं० कच्छ + हि० वाहा (प्रत्य॰)] राजपूतो की एक जाति । । कहाया --शिखर०, पृ० १०५। ' कच्छ--वि० [हिं० कच्छ] १ कृच्छ देश का। कच्छ देश सबंधी । कछवी केवल-सुज्ञा स्त्री० [देश॰] एक प्रकार की काली मिट्टी जो चिखुरने से सफेद हो जाती है। भटकी । २ कच्छ देश में उत्पन्न । कच्छी-सज्ञा पुं० [हिं० कच्छ] घोडे की एक प्रसिद्ध जाति जो कच्छ कछान--संज्ञा पुं० [हि° काछना/घुटन के ऊपर चढा कर धोती पहनना। । छार--सम्रा पुं० [सं० कृच्छ+ हि० अर (प्रत्य॰)] १ समुद्र या नदी छ । देश में होती है। इस जाति के घोडो की पीठ गहरी होती १छार--सम्रा पु°[सं० के किनारे की भूमि जो तर या नीची होती है। नदियों की है । उ०—-तरवकत घाय परे पाइ कच्छी। मनौ नीर मुक्के मिट्टी से पढ़कर निकली हुई जमीन जो वहुत हरी भरी रहती तरफ्फत मच्छी।-पृ० ०, १२।१०५। है। खदिर। दियारा । उ०--एरे दगाबाज़ मेरे पातक अपार कच्छ-सज्ञा पु० [स० कच्छप] कछुआ। तोहि गंगा के कछार में पछारि छार करिहौं ।---पद्माकर कछ' –वि० [हिं० कुछ]दे० 'कुछ' । उ०- कहत रविदास तोहि सुझत न कछ काम, धम, वैन, धरा धाम, घनि मॅनि दुख दंद (शब्द०)। २ आसाम प्रति का एक भाग। में 1--पोद्दार अभि० ग्र०, पृ० ४३२ ।। कछारना--सद्मा पु० [हिं० चारना] दे॰ 'कधारना'। फीचना । प्रक्षालन करना। उ०--नल से पानी भरने, उनकी धोती कछ' संज्ञा पुं० [सं० फक्ष] दे० 'कक्ष' । उ०—नासिका कछ इंद्री कर देने या रसोई के बरतन मत देने के सा काम छोटे के मूग्रा ।- प्राण, पृ॰ २३ । जमादार लोग कर देते हैं। फूलो॰, पृ॰ २४ । कछना'--सया पु० [हिं० काछवा घुटने के ऊपर चढ़ाकर पहनी | हुई धोती । कछावतार--सा [सं० कच्छ+अवतार कच्छपावतार । उ०--- क्रि० प्र०—काछन । कावतार किद्धय । लछम्मि जीत लिद्ध य ।-पृ० रा १०1१२० कछनारे-क्रि० स० [हिं० फाइना] घोती को घुटने में ऊपर चढ़ार कछियाना-सा पुं० [हिं० काछी] १. वह स्थान जहाँ कृाठी लो