पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२२८

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कच्ची चांदी ७४२ कच्या 1111 कच्ची चांदी- सज्ञा स्त्री० [हिं० कच्ची + चांदी] चोख चाँदी । विना साथ हापिए पर से सी दिए जाते हैं। इन सिलाई की पुस्तक | मेल की चौदी । परी चाँदी । के पन्ने पूरे नही खुलते । निदादी में इस प्रकार की सिलाई कच्ची चीनी---संज्ञा स्त्री० [हिं०] वह चीनी जो गलागर पुब साफ नहीं की जानी । न की गई हो । क्रि० प्र०—करना । -- नि । कच्ची जवान-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० फुच्ची+फा० जवान दुर्वचन ।। कन्चु–सच्चा स्त्री॰ [स० फवा] १ गई । दुईयाँ 1 वा । कच्चे पक्के दिन-सपा पु० [हिं०] १. चार पांच महीने का गाली । अपशब्द ।। गर्भ काल । २ दो ऋतु की सधि के दिन । कच्ची जाकड़—सुद्धा स्त्री० [हिं० फच्ची+जाकड] वह वही जिसमें कच्चे बच्चे--- सा पुं० [हिं० चा घच्ची फ वनुव०] यह छोटेउस माल के लेनदेन का ब्योरा हो जो निश्चित रूप से न छोटे बच्चे । बहुत से लडके ले । जैसे,--- इतने कच्चे बच्चे विक गया हो । कच्ची नकल- सच्चा स्त्री० [हिं० फच्ची -+अ० नवल] वह नकल जो लिए हुए तुम कहाँ रिफरोग । २ सतति । उ०पत्र कल्पना की नूतन सृस्टि में है, प्रति के ज्यो । त्यो चित्रण में नहीं । सरकारी नियम के विरुद्ध किसी सरकारी कागज या मिसिले से खानगी तौर पर सादे कागज पर उतरवाई जाय । काव्य करपना का लोक है। ये सने उक्त बल बुढेवाली इनकी धारणा के कच्चे बच्चे हैं ।---चितामणि, भा॰ २, पृ० १६३ । विशेष—यह नकल निज के काम में आ सकती है, पर किसी विशेप-~-ह शब्द वहुवचन के रूप में ही प्रचलित है। हाकिम के सामने या अदालत में पेश नहीं हो सकती। कन्छ'---सबा पुं॰ [सं०]१ जलप्राय देश । नप दश । २ नदी द्वादि कच्ची निकासी-सल्ला चौ० [हिं० कच्ची + निफासी] वैसी कुल आमदनी जिसमें खर्च का अश पृथक् ने किया गया हो । के किनार की भूमि । कछार। उ०—सतत मृदुन वालुका कच्ची नीद-सच्ची भी० [हिं० कच्ची+नोंद] वह नीद जो पूरी न स्वच्छ । एत ये हरे हरे तृन कच्छ ।-नर ग्र०, पृ० २६४।। (स) अवि वठहु भोजन करें। इन बच्छ कुच्छ में चरे। हो सके । झपकी । अारभिक नीद । —नंद 9 २, पृ० १७४ । (ग) गिरि कदर सरपर सरित कच्ची पेशी---सच्चा स्त्री[हिं० फच्ची = फा० पेश] मुकद्दमें की पहली कच्छह घन गुच्छह ।--पृ० ० ६४१०२ । ३ [• कच्छी | पेशी जिसमें कुछ फैसला नहीं होता । गुजरात के समीप ए अतरीप । क भुज । उ०—(क) कच्ची बही-सद्मा सी० [हिं० कच्ची+वही] वह वही जिसमे किसी फुकन कच्छ परोट थट्ट सिधु सर भगा।--पृ० ० १२॥१३॥ दुकान या कारखाने का ऐसा हिंसा लिखा हो जो पूर्ण रूप (प) चारण कच्छ देखा जाति कच्छिला फाया है--शियर, से निश्चित न हो । पृ० १०५ । ४, कच्छ देश का घोड।। ५ ६ का वह छोर कच्ची मिती-सा झी० [हिं० कच्ची+मिती] १ वह मिती जो जिसे दोनो टाँगों के बीच से निकालकर पीछे पीस लेते हैं। पक्की भिती के पहले अाये। लॉग ! ६ सिक्खो का जोपियां जो १च ६ कार (कघ, केश, विशेप-लेनदेन में जिस दिन इ डी का दिन पूजता है, उसे मिती | फच्छ, कहा और कृपाण) में गिना जाता है ।। कहते हैं । उसका दूसरा नाम पक्की मिती भी है। उसके मुहा०-~-कच्छ को उखेड = कुश्ती का एव च जिसने गट पड़े पूर्व के दिनों को कच्ची मिती कहते हैं। हुए को उलटते हैं। इसमें अपने बाएँ हाथ को विपक्षी के २ रुपए के लेनदेन में रुपए लेने की मिती और रुपए चुकाने बाएँ बगल से ले जाकर उसकी गर्दन पर चढ़ाते हैं और की मिती । दाहिने हाथ को दोनो जाँघो में से ले जाकर उसके पेट के विशेप-इन दोनो मितियों का सूद प्राय नहीं जोड़ा जाता । पास लंगोट को पकडते हैं और उसे देते हुए गिर देते हैं । कच्ची रसोई --सच्चा स्त्री० [हिं० कच्ची रसोई] केवल पानी में इसका तोड़ पह है---अपनी जो टींग प्रतिद्वन्द्वी की अोर हो, उसे पकाया हुअा अन्न । अन्न जो दूध या घी मे न पकाया उसकी दूसरी टोग में फँसाना अथवा झट घूमकर अपने पुले गया हो। हाथ से खिलाड़ी की गर्दन दवाते हुए छलांग मारकर गिराना । कच्ची रोकड---सा स्त्री० [हिं० कच्ची+रोकड] वह वही जिसमें ७ छप्पय का एक भेद जिसमें ५३ गुरु, ४६ लघु, ऊ ६६ वर्ण तुन का पेड़ । उ०--(क) र १४२ मात्राएँ होती है। प्रति दिन के अाय व्यय का कच्चा हिसान दर्ज रहता है। राम प्रताप हुतासन कच्छ विपच्छ सूभीर समीर दुलारी ।कच्ची शक्कर- सवा पुं० [हिं० कच्ची = शक्कर ] वह कर जो केवल राब की जूसी निकालकर सुखाने से बनती है। खाँड । तुलसी (शब्द॰) । (ख) हरी के अतिरिक्त वेचून, कच्छ की छाल, धवढा के पत्ते झादि उपयोगी चीजें यहां काफी पाई कच्ची सडक- संज्ञा स्त्री० [हिं० फच्ची == सडक] वह सडक जिसमें । जाती हैं ।-शुक्ल० भ० ॥ ० विविध), पृ० १४।। काकई आदि ने पिटा हो । कच्छ-सा पुं० [सं० कच्छप कछु । उनहि तव मच्छ कच्ची सिलाई-सया स्त्री॰ [हिं० कच्ची+सिलाई] १ वह दूर दूर कच्छ बाराहा ।- -कवीर श॰, पृ० १४६। । पड़ा हुआ डोभ या टाँका जो वखिया करने के पहले जोड़ो को कच्छप---सा पुं० [सं०] [चौ० कच्छपी] १. कछुआ। २. विष्णु । मिलाए रहता है। यह पीछे पोल दिया जाता है। लगर । के २४ अवतारों में से एक । उ०—परम रूपमय कच्छप कोका । २ किवावो की वह सिलाई जिसमें सव फरमे एक सोई । —मानस, १२४७ । ३ कुवेर को नव निधियो में