पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२२७

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केची जोड़े ७४ कच्ची घड़ी कुच्चा जोड़ सज्ञा पु० [हिं० फच्चा+जोड़]बर्तन बनानेवालों की बोली कच्चा हाथ–सुज्ञा पुं० [हिं० कच्चा+हाय] वह हुथ जो किसी में वह जोड़ जो राँगे से जड़ा गया हो। कच्चा टाँका । काम में बैठा न हो। विना मॅज हुआ हाथ । अनभ्यस्त हथि। विशेप—यह जोड़ उखड़ जाता है और बहुत दिनों तक कच्चा हाल-सच्चा पुं० [हिं० कच्चा+हाल]सच्ची कथा । पुरा और रहता नहीं। ठीक ब्योरा ।। कुच्चा टाँका–संज्ञा पु० [हिं० कच्चा+टाका] दे० 'कच्चा' जोड। कच्ची?--वि० [हिं० कच्ची का भी०] कन्चा । अपरिपुष्ट । ३०कच्चा तागा--संज्ञा पु० [हिं० कच्चा+तागा] कता हुअा तागा | इस लौंडे की उम्र अभी कच्ची है ।—प्रेमघन॰, भा॰ २, जो वटा न गया हो। २ कमजोर चीज़। नाजुक चीज । पृ० ६७ ।। कच्चा धागा-सुज्ञा पुं० [हिं० कच्चा+धागा। दे० 'कच्चा तागा' । कुर्ची-सच्चा स्त्री०कच्ची रसोई । केवल पानी में पकाया इशा अन्न । कुण्चा नील-संज्ञा पुं० [हिं० कच्चा+नील] एक प्रकार का नील । अन्न जो दूध या घी में न पकाया गया हो। 'पक्की' का | नीलवरी। प्रतिजोम शब्द । सखरी। जैसे,—हमारा उनका कच्ची का विशेप कारखाने में मथाई के बाद हौज में पूरा का गोंद मिला व्यवहार है ।। कर नील छोड दिया जाता है। जब वह नीचे जम जाता है। विशेप-द्विजातियों में लोग अपने ही सूबध या विरादरी के तब ऊपर का पानी हौज के किनारे के छेद से निकाल दिया। लोगों के हाथ की काञ्ची रसोई खा सकते हैं । जाता है। पानी के निकल जाने पर नीचे के गड्ढे में नील के १०

  • कच्ची असामी--सज्ञा बी० [हिं० कच्ची+असामी 1 बह काम या

| जगह जो योड़े दिनो के लिये हो । चदरोजी जगह । जमे हुए मठ या कोचर को कपड़े में बांधकर रात भर कच्ची कली-संज्ञा स्त्री० [हिं० कच्ची कली] १. वह कन्नी जिसके लटकाते हैं। तुबेरे उसे बोलकर राख पुर घूप में फैला देते खिलने में देर हो । मुहवेधी कली। २ स्त्री जो पुरुष समागम हैं। सूखने पर इसी कच्चा नील या नीलवरी कहते हैं। के योग्य न हो। अप्राप्तयौवना । ३ जिस स्त्री से पुरुषसमागम इसमे पक्के नील से कम मेहनत लगती है, इसी से यह सस्ता विकता है । न हुआ हो । अछूती ।। कच्चापन—संज्ञा पुं० [हिं० कच्चा + पन (प्रत्य॰)] कन्चे होने की। मुहा०—कच्ची कली टूटना =१ थोडी अवस्थाबाले का मरना । स्थिति या भाव । कचाई । अपरिपक्वता । उ०---मुख के उस २ बहुत छोटी अवस्थावाली या कुमारी का पुरुष से कच्चेपन से, मैं नही समझता वह पाउडर होगा, कौमार्य की संभोग होन।। । पुष्टि हो रही थी।-- पिंजरे०, पृ० ४७ । कच्ची कुर्की-संज्ञा स्त्री० [हिं० कच्ची+कुर्की] वह कुर्की जो प्राय कच्चा पैसा---संज्ञा पुं० [हिं० कञ्चा+पैसा] वह छोटा ताँबे का महाजन लोग अपने मुकदमे का फैसला होने से पहले ही इस चिक्का या पैसा जिमका प्रचार सब जगह न हो और जो अशका से जारी करते हैं जिसमें मुकदमे का फैसला होने तक राज्यानुमोदित न हो । जैसे, गोरखपुरी, बालासाही, मघूसाही मुद्दालेह अपना माल असवावे इधर उधर न कर दे । वि० दे० नानकसाही ।। ‘कुक' ।। कच्चा वाना–संज्ञा पुं० [हिं० कच्चा+बाना] १. रेशम का वह कच्ची गोटी-सच्चा स्त्री० [हिं० कच्ची+गोटी] चौसर के खेल में होरा जो वटा न हो । २ वह रेशमी कपड़ा जिसपर कृलफ न वह गोटी जो उठी तो हो पर पक्की न हो। चौसर में वह गोटी किया गया हो । जो अपने स्थान से चल चुकी हो, पर जिसने अाधा रास्ता पर कृप्चा माल-संज्ञा पुं० [हिं० कच्चा +माल १ वह रेशमी कपडे न किया हो । उ०—कच्ची वारहि वार फिरासी । पक्की तो जिसपर कलह न किया गया हो। २ झूठा गोटा पट्टा। फिर थिर न रहासी ।-जायसी (शब्द०)। ३. वे मूल द्रव्य जिनका उपयोग विविध शिल्पों में उत्पादन विशेष—चौसर में गोटियो के चार भेद हैं। कार्य के लिये होता है। जैसे चीनी मिल के लिये गन्ना, वस्त्र मुहा०—कच्ची गोटो खेलना= नतिजुर्वेकार रहना । अशिक्षित मिल के लिये ई, कागज मिल के लिये वस, ईख की छोई, बने रहना। अनाडीपन करना । जैसे,—उसने ऐसी कच्ची सन और लौह के कारखानो के लिये कच्चा लोहा ग्रादि गोटियां नहीं खेली हैं जो तुम्हारी बातों में आ जाय। 'कच्चा माल' हैं। कच्ची गोली–सझा स्त्री॰ [हिं० कच्ची+गोली] मिट्टी की गोली जो कच्चा मोतियाबिंद-सज्ञा पुं० [हिं० केउची+मोतियाबिंब] वह | पकाई न गई हो । ऐसी गोली खेलने में जल्दी टूट जाती है । मोतियाबिंद जिसमें अव की ज्योति बिल्कुल नहीं मारी जाती, मुहा०—कच्ची गोली खेलन= नावजुरुवे हना । नतजुरबेकार केवल घुघला दिखाई देता है। ऐसे मोतियाबिंद में नश्तर नहीं होना । अनाड़ीपन करना । उ०—यही किसी ने कच्ची गोलियाँ लगता। नही खेली हैं। क्या मुफ्त की अफयां हैं ।—फिसाना, कच्चा रेजा--संज्ञा पुं० [हिं० कच्ची+रेजा] दे० 'कच्चा माल-१'। भा० ३, पृ० ५५३ । दे० 'कच्ची गोटी खेलन' ।। कच्ची शोरा-से ज्ञा पुं० [हिं० कच्चा+शोरा]वह शोरा जो उबाली कच्ची घड़ी-सद्मा जी० [हिं० कच्ची+घडी] काल का एक माप दुई नोनी मिट्टी के खारे पानी में जम जाता है। इजी को फिर जो दिन रात के साठवें अश के बराबर होता है । २४ मिना साफ करके कलमी शोरा बनाते हैं। झा माल । ।