पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२२२

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कॅग्दै कंचपेच कग्मद--संज्ञा पुं० [हिं० कागद ३० ‘कागद' 1 उ०—सुनिय राज कचकना—क्र० प्र० [हिं० कचक + ना (प्रत्य०)] १ कुचलना। चहुअन वर दीय कम्गद फिर तेह --पृ० रा०, ५।१०।। दवना । २. वैस लगना । ठोकर खाना । कग्गर -सज्ञा पुं० [हिं० कागद, कागर] ६० ‘कागद' । उ०—समर संयो॰ क्रि०—उठना ।--जाना ।। सिंघ रावर दिसा दै कांग्गर चहु प्रान --पृ० रा०, २६।५२ । कैचकानाf-क्रि० स० [हिं० कचकना] १ कच से वैसान ।। कघुतो -सज्ञा स्त्री० [हिं० काग ज] मध्य और पूर्वी हिमाय में होने | मोकना । २ किसी खरी पतली चीज को हाय से दबाकर वाली एक प्रकार की झाडो । अरैली । तोडना या फोहना। कचकेला-संज्ञा पुं० [हिं० कठकेला] एक प्रकार का केला जिसके विशेप-यह नेपाल, भूटान, वरमा, चीन और जापान में बहुत | फल बडे बल्ले और खाने में रूखे या फीके होते हैं । अधिक होती है । नेपाली कागज इसी के डठी से बनता है। कचकोल--सज्ञा पुं० [फा० कजकोल] १ दरियाई नारियल का । और नेपाल में इसीलिये यह झाइ बहुत लगाई जाती है । भिक्षापात्र जिसे फकीर लिये रहते हैं । उ० ---सो कचकोल कचगन--सज्ञा पुं॰ [स० कचङ्गन]भुक्त हाट । खुली बाजार । वह हाद साबित तवक्कुल किया ।—दक्खिनी॰, पृ० १४६ । २ | जहाँ कोई सीमाशुल्क या कर न लागू हो [को०)। काल । कासा । कचगल-सज्ञा पुं॰ [सं० कचङ्गल] समुद्र । सागर (को०)। कचग्रह–सुज्ञा पुं० [सं०] केश पकडना । कामकेलि की एक क्रिया । कच'-- सज्ञा पुं० [सं०] १ बान (विशेपतया सिर का) । उ०—धरि । उ०--बिथरी अलक मुकताली छबि छोडि माँग, मुख छवि कच विरथ कीन्ह महि गिर। |--मान से, ३२३ । २ सूखा अडी कन्नर कैचग्रह गरे में ।—पजनेस०, पृ० १९ । फोड़ा या जखम । पपडी । ३ 'झुङ । ४ अँगरखें की पल्ली। कचट--सज्ञा स्त्री० [हिं० कचोट] दै० १ ‘कचक' । २ चुभने । ५ वादल । ६ वृहस्पति का पुत्र । वि० ३• 'देवयानी' ।। उ०—उने गीतों में अाशा, उपाल भ, वेदना र स्मृतियों की सुगावाला । ८ कुवती का एक पेच जिसमें एक अादमी दूसरे कचट, वैस और उदास भरी रहती ।--प्रकाश०, पृ० १०७ । की वगल मे से हाथ ले जाकर उसके कधे पर चढाता है और कचड़ा-सझा पु० [हिं०] दे० 'कवर' । गर्दन को दवाती है । कचदिला--वि० [हिं० कच्चा+फ० दिल + हि० श्री (प्रत्य०)] मुहा०-- कच वाँधना=किसी की बगल से हाथ ले जाकर कच्चे दिल का । जो कडे जी का न हो । जिसे किसी प्रकार का उसके कधे पर चढ़ाना और उसकी गरदन को दबाना । कष्ट, पीडा अादि सहने का साहस न हो । ६ मेघ । वादल (को॰) । कचनार--सच्चा पु० [स० काञ्चनार] पतली पतली हालियो का एक कच-सज्ञा पुं० [अनु॰] १ चॅमने या चुभने का शब्द । जैसे,--उसने छोटा पेड़ । कच से काट लिया। कांटा कच से चुभ गया । २ कुचले जाने विशेप-प्रह कई तरह का होता है और भारतवर में प्रार की शव्द ।। हर जगह मिलता है । यह लता के रूप में भी होता है । इसकी कच--वि० [हिं० कच्चा का अल्पा० समास रूप[ दे० 'कच्चा' । पत्तियां गोल और सिरे पर दो भागों में कटी होती हैं। यह जैसे,—-कचदिला = कच्चे दिल का । कच्ची पेंदी का । ठूल पेड़ अपनी क नी के लिये प्रसिद्ध है । क की तरकारी होती मुल । कचलहू = रक्त को पछा । लसिका। कचपैदियो= हैं और अवार पड़ता है। कचनार वसत ऋतु में फलता है । (१) कच्ची पेंदीवाला । (२) ढुलमुल । जिसको बात का फूलो मे भीनी भीनी सुगंध रहती है। फो के झड जाने ठिकाना न हो । पर इसमें लबी लवी चिपटी फलियाँ लगती हैं। कचनार कई प्रकार के फुलवाले होते हैं। किसी में लाल फूल लगते कचक-सज्ञा स्त्री० [हिं० कचट] वह चोट जो दबने से लगे । कुचल हैं किसी में सफेद और किसी में पीले । लाल फूलवाले को जाने की चोट ! ही सस्कृति में कचनार कहा जाता हैं । कचनार शीतल अौर क्रि० प्र०—लगना । कसैला समझा जाता है और दवा में बहुत काम आता है। कचकच-सज्ञा पुं० [अनु॰] वायुद्ध । वकवाद । झकझक । कचनार की जाति के बहुत पेह होते हैं। एक प्रकार का क्रि० प्र० करना ।—मचाना ।—लगाना ।—होना । कचनार कुल या कदला कहलाता है जिसकी गोद 'प्रेम कचकचाना--क्रि० अ० [अनु० कचकच] १ कचकच शब्द करना। की गोद' या 'सेमला गोद' के नाम से विकती है। यह वैसाने या चुमाने का शब्द करना । खूब दाँत घेसाना । जैसे,— कतीरे के तरह की होती है शोर पानी में घुलती नही । यह उसने कचकचाकर दौत से काट लिया । २ दाँत पीसना । दे० देहरादून की ओर से आती है और इद्रिय जुलाव तथा रज ‘किचकिचाना' । खोलने की दवा मानी जाती है। एक प्रकार का कचनार कचकड–सज्ञा पुं० [हिं० कच्छ- कछया + से० काण्ड हड्डी] १ बनराज कहलाता है जिसकी छाल के रेशो की रस्सी कछुए का खोपडा। २ कछुए या ह्वल की हड्डी जिससे चीन बनती है । जापान में खिलौने बनते हैं । ३ सेल्युलाइड । कचप-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ तृण । २ शाकपत्र (को॰] । कचकड़ा--संज्ञा पुं० [हिं० कचकडू] दे॰ 'कवई' । कुचपच-सम पुं० [अनु०] १. योद्धे से स्थान में बहुत सी चीज या -