पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२२१

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बँक = जो बहुत तमावू पीता हो। इक्के की लेतवाला । कक्कड़ कक्षावेक्षक- संज्ञा पु० [सं०] १ अत पुर निरीक्षक । २ चित्रकार। वाला = वह अादमी जो पैसे लेकर लोगों को हुवक पिलाता ३ अभिनेन । ४ कवि । ५ राजकीय माली या उद्यानपाल । फिरत हो । द्वारपाल । दरवान । ७ नट। दुराचारी । ६ प्रेमी या कवका– संज्ञा पु०वि० के केय] एक देश भिसे प्राचीन काल मे के कये प्रेमिका । ६ भावी वेश । मावशक्ति को०] । कहते थे। यह अब काश्मीर के अंतर्गत एक प्रत है। यहाँ कक्षी–सुज्ञा पु० [सं० कक्षिन्। दे० 'कच्छ' । उ०-दुराव अरवी के रहनेवाले कक्करवाले या गवकर कहलाते हैं । | तुक्कै अ कक्षी ।--पृ० ० (उ०), पृ० १६७ । कवका- सज्ञा पुं० [स०] नगाडा । दृदुभी । कक्षीवत-सुज्ञा पुं० [म० कक्षौवत्] दे० 'कक्षीवान् । कक्का-संज्ञा पुं० [हिं० काका] दे॰ 'काका' । कक्षीवान-सज्ञा पुं० [सं०] एक वैदिक ऋषि का नाम ।। कक्का- सुज्ञा पुं० सिख जिनके यहां कदै, केस कडा, कच्छ कहि कक्षोत्था-सुज्ञा स्त्री० [सं०] नागरमोथा। | इन पंव क कारों का व्यवहार है ।। कक्ष्या-- सज्ञा स्त्री० [सं०] १ अगिन । २ चमड़े की रस्सी । तति । कुक्क' -सा ही॰ [देश॰] एक प्रकार का छोटा वृते जिसकी नाडी । ३. हाथी बाँधने की रस्सी । ४ महल । अत पुर । ५ पत्तियां चारे के काम आती हैं। वि० दे० 'कठमैमल' । ड्योढी । ६ हौदा । अमारी । ७ धुची । ८ समानता । कक्की.- संज्ञा पुं० [स० कडू] दे॰ गाँसीदार दाम् । सादृश्य । ६ रत्ती । १० उद्योग । ११ अँगुली। उँगली कुक्कोल–सज्ञा पुं० [सं० कङ्कोल] दे॰ 'ककोल' । (को०)। १३ आंचल । अनल (को०)। १३ घेरा । प्राचीर कक्वट--वि० [सं०] कठिन । कठौर । (को०) । १४ उपरना। दुकून (को॰) । कक्रो ---संज्ञा स्त्री० [सं०] खडिया [को०] ।। कखवाली-सुज्ञा स्त्री० [हिं० कख* वाली (प्रत्य॰)] दे० 'काली' । कक्ष-सज्ञा पु० [सं०] १ काँख । बगल । २ कॉछ । कछोटा। लोग । कुखौरी-सज्ञा स्त्री० [हिं० कख +ौरी (प्रत्य॰)] १ दे० 'कवि' । ३ कछार । कक्ष। ४ कास । ५. जगल । ६ सूखी घास । १ बगल का फोड] । काँख का फोडा। ७ सूखा वन । ६ 'भूमि । ६ मत । पाखा । १० घर । कगदी संज्ञा स्त्री[हिं० कागद + ही (प्रत्य० 11 बस्ता जिसमें कागज कमरा । कोठरी। ११• पाप । दोप। १२ एक रोग । कोख पत्र वैवै हो । २ कागज, किवाव अादि का ढेर । का फोडा 1 कचरवार । १३ दुपट्ट का वह अचल या छोर कगर-सज्ञा पुं० [सं० क = जल+अग्न = काग्र> कगर]१ कुछ उठा जिसे पीठ पर हालते हैं। अचल । १४ दज । श्रेणी । हुआ। किनारा 1 कुछ ऊँचा किनारा । २ बाट । ठ । बारी । य –समकक्ष = बराबरी का। ३ मैड 1 बीड । ४ छत या छाजन के नीचे दीवार में रीढ़ सी १५ तराजू का पल्ला । पल । पलड़ा) १६ बेन । लता ।। उमडी हुई लकर जो खूबसूरती के लिये बनाई जाती है। १७ पेटी। कमरवद । पटका । १८ अत पुर। रनिवासको०]। कारनिस । कंगनी । १९. जंगले का भीतरी भाग (को०)। २ दलदली भूमि । कगर–क्रि०वि० [हिं० कगार]१ किनारे पर। किनारे । २ समीप । (को०) । २१. सेना का दक्षिण अौर वाम पाश्वं (को०) । २२ । निकट । ३ अलग । दूर । उ०—नसुमति तेरो वारो अतिहि कटिवध (को०)। २३ नौका का एक भाग (को०)। २४ ग्रह अचगरो । दुध, दही माखन ले डार दियो मगरो । नियों दियो का पथ । प्रहकदा (को०)। २५. गुप्त या छिपने का स्थान । कछु सोऊ डारि देहु कग।-सूर (शब्द॰) । (को०) । २६ प्राचीर । चारदीवारी (को०) । २७ महिए । कही-सज्ञा स्त्री॰ [स० कङ्की, प्रा० ककइ, फही] ३० भैसा (को०)। २८ तारा (को०)। २९ फाटक 1 द्वार (को०)। ‘कधी' । उ०- निये अतर कंगही करन, सरस सुगध ममाज । कक्षा--सज्ञा चौ० [सं०] १ परिधि ! २ ग्रह के भ्रमण करने का चुटिया गुयन कारने हिय हुलसत वजराज |-व्रज०, ग्र०, मागं । वह बतु'लाकार मार्गं जिसमें कोई ग्रह या उपग्रह भ्रमण ।। पृ० ११८ । । कगार–सा पु० [हिं० कगर] १ ऊँचा किनारा । २ नदी का करता है। उ०—इस ग्रहकक्षा की हलचन री, तरन गरल करी । २. ऊँचा टीला । की लघु लहरी -कामायनी, पृ० ५।३ तुलना । समता । कगिरी-सज्ञा पु० दिश०] एक प्रकार का वृक्ष जिसके दून से रवड़े बराबरी । ४ वेणी । दज । ५ ड्यो । देहली । ६ काँख । बनता है । वि० दे० 'रबर्ड-२'।। ७ कखरवार। एक रोग जिसमे बगल में फोड़ा होता है। कगेडी–सद्यः पुं० [देश॰] एक पेड का नाम जो हिंदुस्तान में प्राय सब ८ किमी घर की वार या पाव। ६ फॉछ । कछोटा। जगह होता है। इसकी लकड़ी इमारतों में नहीं लगत। १० हाथ बांधने की रस्सी । ११ एक तौल । रती । १२ कगार-सपा पु० [हिं०] ६० 'कगर'। कमर । कटि (को०)। १३ पटुका । कटिबध (को०)। १४ कम्ग'--वि० [सं० काक, हि० काग] बुट। ढोठ । उ०—संकट प्राचीर । चहारदीवारी (को०) । १५ प्रागण । अगिन (को०)। व्यूह मजि सुमग कग चामडे अग्ग करि ।-पृ० ० (उ०), १६ अ त पुर (c) । १७ ग्रापत्ति । विरोध (को०)। १८, पृ॰ ६२२। कट या छकई का एक माँग (को०)। 18 पल्ला । पलडा कग्ग -सेवा पु०स० काके, प्रा० फग्ग०'कगि काँग्रा बायन । (को॰) । उ०-घर कारन विक्रम कियो कगामिव भइवन (-१० कक्षापट–सुज्ञा पुं॰ [स०]१. गछौटा। २. कोपीन या कटवस्त्र[स्रो०] । रा०, १६३२।

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