पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२२०

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किवा ७३४ ककवा–संज्ञा पुं० हि० क ई का पुं०] दे० 'कथा' । ककुप, ककुभू-सा स्त्री० [स०] १ दिशा । २ शोभा । सौंदर्य । ककसा- सज्ञा भी० [सं० कक्षा, प्रा० कक्षा] काँख । ३ चपक की माला । ४ शास्त्र । ५ एक 31गिनी । ६ अ कान ककसी--सुज्ञा स्त्री॰ [स० फर्कश, प्रा० ककसा] एक प्रकार की का चतुथति । ७ प्रवास । ८ अनदत कैश या पूछ, जैसे मछली । लटकते हुए जाल [को॰] । विशेप-यह गा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, सिधु अादि नदियो मे होती ककुभ- सज्ञा पुं० [सं०]१ अजुन का पेड़ । २ वा वा एक अगे । है । इसका मास रूखा होता है। वीणा के ऊपर का वह अंग जो मृडा रहता हैं । प्रसेवक । ककहा - संज्ञा स्त्री॰ [ क + क +है+रा (प्रत्य॰)] क से 5 तक विशेप-कोई कोई नीचे के तुबे को भी ककुम कहते है। वर्णमाला । वरतनिया ।। | ३ एक राग । ४ एक छद जो तीन पदो का होता है । इसके । विशेप-वालको को पढ़ाने के लिये एक प्रकार की कविता होती है पहले पद में ८, दूसरे में १ अर तीसरे मे १८ वणं होते हैं । जिसके प्रत्येक चरण आदि में प्रत्येक वर्ण क्रम से माता है । ५ दिशा । ६ कुटज फुन (को०) । ७ वैश्यों के एक राजा का ऐसी कविना में प्रत्येक वर्ष दो वीर रखा जाता है, जैसे- नाम (को०] । क का कमल किरन में पावै । ख खा चाहे खोरि मनावें । ककुभविलावल-सज्ञा १०[स० ककुभ + विलावल]एक मिथित राम ।। ---कोर (शब्द॰) । | ककुभा- सज्ञा पुं० [सं०]१ दिशा । ३. दक्ष की एक पुत्र जो धर्म की । ककहा--सज्ञा पुं॰ [स० कडूती, प्रा० ककइ, ५ किफही का पुं०] पत्नी थी । ३ भालकोस राग की पचवीं रागिनी जो संपूर्ण । | दे० 'कघा' । जाति की है। इसे दिन के दूसरे पहर में गाना चाहिए। ककही -सज्ञा स्त्री॰ [स० कडूती, प्रा० क कई] १ एक प्रकार की क ककुम्मती संज्ञा स्त्री० [सं०] एक वैदिक घद जिसके तीन चरणों में । कपास जिसकी रुई कुछ लाल होती है । २ चौबगला ।। | पाँच पाँच और एक में छह वण होते हैं । कही- सज्ञा स्त्री॰ [सं० कडूती, प्रा० के कइ ] दे० 'कघी'। ककुल-मज्ञा पुं॰ [हिं॰] दे० कक' । उ० - कुन ववुन मिव कका –मज्ञा पुं० [हिं० फाका] दे० 'काका' । | देखिए रे, वीरंतु, कडू न दिखाई, राजा मतई रे --पोद्दार । ककाटिका–संज्ञा पुं० [सं०] सिर के पीछे का माग किये] । अभि० ग्र०, १० ६३३ । ककार--सज्ञा पुं० [सं०] व्यजन का प्रयम वर्ण । 'क' अक्षर या | ककून-सज्ञा पुं० [अ० फूल] रेशम के कीड़े द्वारा निर्मित कावः ।। उसकी ध्वनि । ककेडा--सज्ञा पुं० [ स० ककंटक, ककटक ] एक वैन जिसक कुकी--सज्ञा पुं० [स० काकी]मादा 'कोअर' । उ०—कक ककी मृत पील फल सपि के आकार के तेि हैं अौर तरकारी के काम में अति कुरगा। अवर चर सर छेदे अगा।-रा० रू०, पृ० ६७ । हैं। चिचड।। ककु जल-सज्ञा पु० [ककुञ्जल] चातक पक्षी (को०)।। क केरुक-- संज्ञा पुं॰ [सं०] उदर में होने वाला एक प्रकार का कीड़ा । ककु दर--सज्ञा पुं० [सं० ककुदर] जघनकप [को॰] । उदर कृमि ।—माधव०, १० ७१ । ककुत्स्थ-सज्ञा पुं० [सं०] इक्ष्वाकुवंशीय एक राजा । ककैया–वि० [हिं० ककही] कधी के प्रकार की (ईट)। विशंप-पुराणानुसार एक समय देवताओं और राक्षसों में युद्ध विदोप-यह शब्द ईंट के एक भेद के लिये प्रयुक्त होता है जो बहूते । हुआ था। देवतापो ने उस समय अयोध्या के राजा से सहायता राजा से सहायता , छोटी होती है और जिसे लखाव या लखौरी भी कहते हैं । माँगी। राजा की सवारी के लिये इद्र वल वनकर आया । ककोडा--सज्ञा प०सि० कर्कोटक, प्रा० फुक्कोडक] वैख सा । वैकलि' राजा ने उस वैल की पीठ पर चढ़कर लड़ाई में जा असुरो को उ०-कुदरू और ककोडा कौरे । कचरी चार चचेडा सौरे l-. परास्त किया । तवसे उसका नाम ककुत्स्थ पड गया। वाल्मी- सूर (शब्द०)। कीय रामायण में ककुत्स्य को 'भगीरये का पुत्र लिखा है, पर कही उसे इक्ष्वाकु का पुत्र और कहीं सोमदत्त का पुत्र भी ककोणि-संज्ञा पुं० [स० फोकमद, प्रा० कोकणग्न) (वर्णविपर्यय) ककोणय,<ककोणई = लाल अयवा देश ० ] रक्त । खून । लिखा है। ककुद्’---वि० [सं०] प्रधान । श्रेष्ठ (को॰] । उ०--श्रोणित रक्त कोणि पुनि रुधिर अमृक क्षतजात । ककूद--संज्ञा पुं० १ वेल के कधे का कुबड । डिल्ला । २ राजचिने । -नद ग्र०, १० ६२।। ३०--ककुद साधु के अग ।—केशव ग्र०, भा० १, पृ० ११६ ।। ककोरना-क्रि० स०[हिं० फोडना खरोचना । खुरचनः । खुरेदना ।। ककुद-वि० दे० 'ककुद' [] । ककौरा--- सज्ञा पुं० [हिं० ककोड़ा दे० 'ककोड़ा' 1--सूर० ककुद-सज्ञा पुं॰ [सं०] • ककुद्’ [क्ने] । | (राधा०), पृ० ४२० ।। ककुदमान-सच्चा पु० [सं०]१. वेल । २. पर्वत । ३ ऋषभ नाम की कक्कडे-- सज्ञा पुं० [सं० कर्कर] १ सुखी या सेकी हुई सुरती का एक अपधि । भुराभुरा चूर जिसमें पीनेवाला तमाखू मिला रहता है । इसे ककुदमी'---वि० [स० ककुमिन् ] चोटीवाला । डिल्लेवाला (को॰] । छोटी चिलम पर रखकर पीते हैं । २ दे० 'काकड'। ककुद्मी- सच्चा पु० १ डिल्लयुक्त वैल । २ विष्णु } ३ रैवतक यौ–कक्कडखाना=(१) जहाँ कई आदमी वैठकर हुक्का पीते नामक राजा की पुत्री जो वलराम को ब्याही यी [२] । हो। () चड़खान । भटियारखाना । बुरी जगह । कपकड़बाज