पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२२

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उखाड क्य उक्थ-सज्ञा पुं० [सं०] १ भिन्न भिन्न देवताओं के वैदिक स्तोत्र । २ उखड़ना= किसी की ओर से उदासीनता होना । विरक्ति यज्ञ में वह दिन जब उक्थ का पाठ होता है । ३ प्राण।४ होना । वम उखडता = (१) बँधी हुई साँस टूटना । ( २ ) ऋपभक नाम की अष्टवर्गीय ओषधि । गाते गाते या बात करते करते स्वर भग होना । ( ३ ) दम उक्थी--वि० [सं० उक्थिन् ] स्तोत्र का पाठ करनेवाला (को०] । निकलना । प्राण निकलना । पैर या पांव उखड़ना=(१) उक्दा ---सच्चा पु० [अ० उक्दह] १ ग्र थि । गाँठ । २ भेद । रहस्य । ठहर न सकना । एक सय पैर जमा न रहना । जैसे-नदी के उ०-- यह वह उक्दा है जो किसी से अब तक नहीं खुला बहाव से पाँव उखड़े जाते हैं। लेने के लिये सामने न खड़ा प्यारे ।--भारतेंदु य ०, भा॰ २, पु० २०३।। रहना । मागना । जैसे-वैरियो के घाबे से उनके पाँव उक्षण–सझा पुं० [सं०] १ जल छिडकने की क्रिया। २. जल से । उखड़ गए अभिषेक करना (को०] । उखडवाना-क्रि० स० [हिं० उखाड़ना का 92 रूप ] किसी को उक्षा--सच्चा पुं० [सं०] १ सूर्य । २. वैल । ३. सोम (को०)। ४ । | उखाडने में प्रवृत्त करना मरुत (को०)। ५ अग्नि (को०)। ६ ऋपभक नामक अष्टवर्गीय उखदq---सज्ञा स्त्री॰ [ सं० षधि, हि० ओखघ ] ६० ‘ोपधि'। ओपधि (को॰) । उa---- चतुर विध वेद प्रणीत चिकित्सा । ससत्र उवद में तैव उक्षाल-वि० [सं०] १ तेज । क्षिप्र । वेगयुक्त । २ विशाल । सुदि १-वेलि०, ६० २०४। श्रेष्ठ (को०] । उखना--सज्ञा स्त्री॰ [सं० उषण] मिरचे । काली मिरच [को०] . उसाल.-सज्ञा पुं॰ कपि । वदर [को०] । उखभोज-सज्ञा पुं० [ हि० अख+स० भोज ] ईख की बोआई का उक्षालपु–सुज्ञा स्त्री० [हिं० उछाल ] उछाल । छलाँग । कुद । पहला दिन । इस दिन किसान उत्सव मनाते हैं। उ०—पलाने तह तेज ताजी तुरगा। पर उच्च उक्षालु मानी उखमपु--सज्ञा पुं० [सं० ऊष्म] गरमी । ताप । कुरगा ----१० रा०, पृ० १६७ ।। उखमज -सज्ञा पुं॰ [स० ऊमज] १ ऊष्मज जीव । क्षुद्र कीट। उखटना--क्रि० अ० [सं० उत्कर्पण] १ अडखडाना। चलने मे उ०----पिंडज ब्रह्म में लीन्ह बनाई। उखमज सव विश्नू ते | इधर उधर पैर रखना। आई ।--सै० दरिया, पृ० ६। २ झगडा, वखेडा या उपद्रव उखटना--क्रि० स० [ उत्खण्डन, प्रा० उखडण 1 खोटना । करने के लिये मन में मानवाला कुविचार ( वोल० ) । कुतरना । उखर--संज्ञा पुं० [हिं० अख] ईख वो जाने के पीछे हल पूजने की उखड़ना-क्रि० अ० [सं० उत्कृष्ट, पा० उक्कक्ख अथवा सं० उत्खनन, रीति । हुरजी। पा० उक्खन ] १ किसी जमी या गडी हुई वस्तु का अपने उखरना--कि अ० [हिं० उखड़ना] दे० 'उखड़ना' । स्थान से अलग हो जाना । जड सहित अलग होना । स्वदना । उखराज-सज्ञा पुं० [हिं० ऊख +राज] ईख की बोआई का पहला जमना की उलटी। जैसे-अाँधी आने से यह पेड़ जड़ से उखड | दिन । इस दिन किसान उत्सव मनाते हैं। गया । २ किसी दृढ़ स्थिति से अलग होना । जैसे—अंगूठी | उखया)--[हिं० उखरना+ऐया (प्रत्य॰)] उखाड़नेवाला । उ० से नगीना उखड़ गया । ३ जोड़ से हट जाना । जैसे--कुश्ती भूमि के रेया उखरैया भूमिघरनि के विधि विरचे प्रमाउ में उसका एक हाथ उखड़ गया। ४ ( घोडे के संबध में ) जाको जमजई है --तुलसी ग्र०, पृ० ३१२ । चाल में भेद पड़ना। तार या सिलसिले का टूटना । जैसे—यह घोडा थोड़ी ही दूर मे उखड़ जाता है । ५ स गीत में वेताल उखवल-सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार की घास [को०] । और वेमुर होना । जैसे-वह अच्छा गवैया नही है, गाने में उखली-सज्ञा सौ° [स० उदर्भल, उलूखेल, पा० उच्खल, प्रा० उक्खल उखड़ जाया करता है । ६ ग्राहक का भडक जाना। जैसे- उऊखल, उकल] मोढ़े के प्रकार का लकडी का बना हुआ दलालों के लगने से गाहक उखड गया ! ७, एकत्र या जमा न एक पात्र । अोखली । ईडी । रहना । तितर बितर हो जाना। उठ जाना । जैसे-वर्षा के । विशेष—इसके बीच में एक हाथ से कुछ कम गहरा गड्ढा होता कारण भेला उखड़ गया । ८ हटना । अलग होना। जैसे- है । इस गड्ढे में डालकर मूसीवाले अनाजों की मूसी मूसल जब वह वहाँ से उखडे तव तो किसी दूसरे की पहुँच वहाँ हो। से कूटकर अलग की जाती है। कहीं कही ऊखली पत्थर की ६ टूट जाना । जैसे—तुक्कल हत्थे पर से उखड़ गई । १० | भी बनती है जो जमीन में एक जगह गाड दी जाती है। सीवन या टीके का खुलना। उखा-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] देग । बटनोई । संयो॰ क्रि०–साना ।-जाना ।-पाना । ' उखा ---सज्ञा स्त्री० [सं० उपा] ६० ‘उपा' । ११ परस्पर की बातचीत में क्रोध या प्रवेश में अना (बोल0) उखाड़---सज्ञा पु० [ हि० उखाडना ] १ उखाड़ने की क्रिया । मुहा०:-- उखडी उडी बातें करना=बेलौस बातें करना । उत्पाटन । २ कुश्ती के पेंच का तोड़ । वह युक्ति जिससे कोई उदासीनता दिखाते हुए बात करना ।' विरक्तिसूचक बात पेंच रद किया जाता हैं । ३ कुश्ती का एक पंच। उखेड। करना । उसडी पुखड़ी सुनाना= ऊँचा नीचा सुनाना। अडबड ऊचकाव। सुनाना। उखाड़ी उखड़ना= कुछ किया हो सकना । जैसे-- । 'विशेष---यह उस समय काम में लाया जाता है जब विपक्षी पठ पही तुम्हारी कुछ भी उखाड़ी ने उखसी । पीपत मा मत होकर हाथ मौर पैर जमीन में भाग लेता है । इसमें विपक्षी ने