पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/२१

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उकार ५३५ उक्तियुक्ति उकाव उड़ रही है कि महाराज साहेब जापान जानेवाले उकेरना--क्रि० स० [सं० उत्+कृ> किर, प्रा० उस्किटर] लकडो, हैं । -(शब्द॰) । पत्थर लोहा अादि कडी चीज पर छेनी इत्यादि से नवकाशी उकार--- संज्ञा पु०[म०] १ '3' स्वर । २. शिव (को०]] करना । चित्र बनाना। विशेष रूप से बेलबूटे इत्यादि बनाना। उकारात--वि० [सं० उकारान्त] वह शब्द जिसके अंत मे उ हो, जैसे उकेलना-क्रि० स० [हिं० उझलना, ३० उप्कॅल्लाविय]१ उचाडना। साधु । तह या पतं से अलग करना । नोचना । जैसे- वहाँ का चमड़ा उकालना--क्रि० सं० [हिं० उकलना] दे॰ 'उकेलना' । मत उकेलो, पक जायगा । २ लिपटी हुई चीज को छुड़ाना या उकास---सा लौ० [हिं० उकासना] उकासने की क्रिया या भाव। अनग करना । उधेडना । जैसे----चारपाई की पटिया से रस्सी कासना -क्रि० स० [ हिं० उकसाना ] उभाड़ना ! ऊपरेको । उकेल लो ।। फेंकना । ऊपर को सींचना। उ०—-मैयां विधरि चली जित उकेला'---सज्ञा पुं॰ [दश०] वाना। तित को सखा जहाँ तहँ पैरें। वृप म ग सो धरनि उकासत विशेप-गडरिए कबल बुनने में बाना को उकेला बोलते हैं । वल मोहन तुन हेरे ।--सुर० (शब्द॰) । उकेला..-क्रि० स० [हिं० उकेलना ] 'उकेरना' क्रिया का मूत- उकासी -सज्ञा स्त्री॰ [ हि० उकसना ] सामने से परदे का इट। | कालिक रूप ! जाना। खुल जाना । उ०--राखी ना रहत जऊ हाँसी कसि। उकोथ, उकौथा--सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'उकबथ'। राखी देव नमुक उकासी मुख ससि से उलसि उठे |--देव उकना-सच्ची पु० [सं० उत्क+औना (प्रत्य॰); देशी० ग्रोक्किय, (शब्द०)। हिं० पोकाई ?] गर्भवती स्त्री में होनेवाली अनेक प्रकार की उकासी- सज्ञा स्त्री० [सं० अवकाश] छुट्टी । फुरसत । प्रबल इच्छाए। दोहद । क्रि० प्र०—उठना । उकिठा -वि० [हिं० उकठा] ६० ‘उकठा'। उ०---उकिंठा बन । फूनै हरियाय-कीर श०, भा० १, पृ० १२ । उक्कत-- तुझा स्त्री० [सं० उक्ति ] ६० ‘उवित' । उ० ---पग मुक्कत उकिडना-क्रि० अ० [हिं० उकलना ] दे॰ 'कनना' । उक्कत लिपिय । न्निप निय नयन निहारि -- उकिरना--क्रि० अ० [सं० उत्कीण] उमड़ना। ऊपर होना। रा० ६६२४० ।। । उ०—-रस सरस कुच कहि चदं । उर उकिर आनँद कद । उक्कतीf —संज्ञा स्त्री॰ [ सं० उक्ति ] दे॰ 'उति'। उa- | पृ० रा०, १४१५३ । ‘मरम छैह लेणी अगम असकस उद्यम उक्कती। कर भाव पार उकिलना-क्रि० अ० [हिं०] दे० 'इकलना। गुण सर करण माची नामें सरस्वती ||--० ०, पृ० ६ । उकिलवाना---क्रि० स० [हिं०] दे० 'उकलवाना' । उक्त'-- वि० [सं०] कथित् । कहा हुआ। उकिसना-क्रि० अ० [हिं०] दे० 'उकसना'। उक्त –संज्ञा स्त्री० [सं० उक्ति] दे॰ 'उक्नि'। उ०—कहै मछ कवि उकीरना--क्रि० स० [ स० उत्कृ > उकिरण = ऊपर फेंकना, | जिकणर्ने उक्त सदाहिज अणि --रा० ०, पृ० ३६। उभारदार लिखना ] १ उभाड़ना । उखाड़ना। २. उचाइना । उक्तनिर्वाह---संज्ञा पुं० [सं०] अपनी कही हुई बात की रक्षा या उकैलना। ३. खोदना । ४ नक्काशी करना। उकेरना। समर्थन (को०] । ४०-इदु के उदोत ते उकीरी ऐसी काही सुचव सारस सरस उक्तत्रत्युक्त सच्चा पु० [सं०] १ लास्य के दस अगों में से एक। ३ सोमानार तें निकारी सी ।--केशव प्र ०, भा० १, पृ० १६०i (नाट्य शास्त्र के अनुसार) उक्ति प्रतियुक्ति से युक्त, उपालन उकोल--सद्मा पुं० [अ० वकील] दे॰ 'वकील'। उ०—-प्रवल उकील के सहित,-अलीक (अप्रिय या मिथ्या) सा प्रतीत होनेवाला नू जी अादर कुरव दे अवधेस ।-रघु० ९०, पृ० ८१ ।। और विलासपूर्ण अर्थ से सुसपन्न गान। उकुण–संज्ञा पुं॰ [०] दे० 'उकुण' (ौ । उक्तवाक्य'--वि० [सं०] जो अपना विचार या कथन कह चुका उकुति -सा जी० [सं० उक्ति ] दे॰ 'क्ति' । उ०—भनहि हो (को०]।। विद्यापति एहो रम गाव । अभिनव कामिनि उकुति बुझाव - उक्तवाक्य-सच्चा पुं० निर्णय । फैसला [को॰] । विद्यापति, पृ० २१०।। उक्तानुशासन–सा पु० [सं०] ग्रादेशप्राप्त व्यक्ति। वह व्यक्ति जिसको अादेश मिला हो [को०)। उकुति जुगुति -सज्ञा स्त्री० [सं० उक्ति युक्ति] दे॰ 'उक्ति युक्ति' ।।

उकुरु-राधा पु० [सं० उत्युदुक, प्रा० उक्कुडुय] दे॰ 'उकडे'। उक्ति-सी स्त्री० [सं०] १ कयन । वचन । २ अनोखा वाक्य । जैसे- उकुरू-सी पुं० [हिं०] दे॰ 'उकुडे'। उ०—झूलत पाट मी डोरी कवियों की उक्ति । उ०—काव्य का मारा चमत्कार उक्ति में गहे पटुनी पर बैठन ज्यौं उपुल की ।भारतेंदु °, 'भा० १, ही है, पर कोई उक्ति काव्य तनी है जर उमके मूल में भाव हो !-रस०, १० ३ । ३. पृ० ३९१ । महत्वपूर्ण कथन (को॰) । उकसना ४. घोषणा (को०)। ५ अभिव्यक्ति (को॰) । -क्रि० स० [हिं० उकासना] उजाड़ना। उधेड़ना। उक्तियुक्ति-सधा बी० [सं०] समति और उपाय । न वाहू और उ०—उकुत्ति कुटी तेहि छन तृण काटी। मूरति चई कित तदोर। पायर पाटी (t--रघुराज (शब्द॰) । दि० १०-भिड़ाना ।—लगाना ।